दिल्ली में शराबबंदी करने वाले गुमनाम सीएम की कहानी, नेहरू के कहने के बाद भी निहाल सिंह ने नहीं हटाया था बैन
दिल्ली के पहले सीएम रहे ब्रह्म प्रकाश यादव से 12 फरवरी 1955 को इस्तीफा ले लिया गया था. इसके बाद 13 फरवरी 1955 को गुरुमुख निहाल सिंह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला. सीएम बनते ही निहाल सिंह ने पूरी दिल्ली में शराबबंदी का फैसला किया. इसके चलते सियासी हंगामा मच गया. बात इतनी बढ़ी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को गुरुमुख निहाल सिंह को चिट्ठी लिखनी पड़ी.
दिल्ली की सियासत में चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव भले ही इत्तेफाक से सीएम बने थे लेकिन सियासी टकराव के बाद जब उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी तो मुख्यमंत्री पद पर गुरुमुख निहाल सिंह विराजमान हुए. निहाल सिंह सिख समुदाय से दिल्ली में पहले और इकलौते मुख्यमंत्री बनने वाले नेता हैं. इतना ही नहीं दिल्ली में शराबबंदी करने जैसा फैसला सात दशक पहले निहाल सिंह ने लिया, जिसे लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चिट्टी तक लिखी थी. इसके बावजूद निहाल सिंह शराबबंदी के फैसले से नहीं हटे लेकिन दिल्ली की सियासत में गुमनाम हैं.
गुरुमुख निहाल सिंह साल 1952 के चुनाव में दिल्ली की दरियागंज सीट से विधायक चुने गए थे. कांग्रेस के दिग्गज नेता और तत्कालीन गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत के कहने पर निहाल सिंह ने चुनाव लड़ा था. दिल्ली के सीएम की कुर्सी भी उन्हें गोविंद वल्लभ पंत के चलते ही मिली. ऐसे में एक साल ही सत्ता की कमान संभाल सके लेकिन उन्होंने इतने कम समय में कई अहम कार्य किए. आइए जानते हैं दिल्ली के सीएम की कहानी की फेहरिश्त में गुरुमुख निहाल सिंह का किस्सा…
गुरुमुख निहाल सिंह का जन्म 14 मार्च, 1895 को अविभाजित पंजाब में हुआ था. लंदन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में बीएससी की पढ़ाई किया और दिल्ली विश्वविद्यालय से लेकर देश बीएचयू सहित देश के कई विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम किया. निहाल सिंह वैचारिक रूप से कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे. गोविंद वल्लभ पंत के कहने पर निहाल सिंह ने सियासत में आने का निमंत्रण दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार किया और दिल्ली की दरियागंज सीट से विधायक चुने गए और विधानसभा स्पीकर बने.
निहाल सिंह कैसे बने सीएम
दिल्ली के 1952 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री की शपथ देशबंधु गुप्ता लेने वाले थे लेकिन उनका एक्सीटेंड में उनका निधन हो गया. इसके चलते ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, उस समय उनकी उम्र 34 साल थी. वह सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, उस समय दिल्ली के मुखिया चीफ कमिश्नर हुआ करते थे, जो सीएम और मंत्रियों के सुझावों पर फैसले लेते थे. ऐसे में तत्कालीन चीफ कमिश्नर आनंद डी पंडित पर तत्कालीन गृह मंत्री रहे गोविंद वल्लभ पंत के करीबी थे, जिनके साथ चौधरी ब्रह्म प्रकाश के रिश्ते ठीक नहीं थे.
आनंद डी पंडित के साथ ब्रह्म प्रकाश की इतना ज्यादा तनातनी हुई कि कई अहम फैसले को लेकर दोनों के बीच सहमति नहीं हो पा रही थी. ऐसे में चौधरी ब्रह्म को मुख्यमंत्री पद से 1955 में इस्तीफा देना पड़ा. ब्रह्म प्रकाश के बाद कांग्रेस ने गुरुमुख निहाल सिंह को सीएम बनाया. पंत ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनवाने में अहम भूमिका अदा की थी क्योंकि गोविंद वल्लभ पंत को लगता था कि कई कॉलेज में प्रिंसिपल रहा व्यक्ति बोलने में ही अच्छा होगा बल्कि उद्दंड नेताओं को ठिकाने से भी रखेगा.
13 फरवरी 1955 को निहाल सिंह सीएम बने
दिल्ली के पहले सीएम रहे ब्रह्म प्रकाश यादव से 12 फरवरी 1955 को इस्तीफा ले लिया गया और 13 फरवरी 1955 को गुरुमुख निहाल सिंह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री का पदभार संभाल लिया. मुख्यमंत्री बनते ही निहाल सिंह ने पूरी दिल्ली में शराबबंदी का फैसला किया. शराब बंद किए जाने के चलते सियासी हंगामा मच गया. बात इतनी बढ़ी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सीएम गुरुमुख निहाल सिंह को चिट्ठी लिखनी पड़ी.
जवाहरलाल नेहरू ने 26 जुलाई 1956 को सीएम को खत में लिखा कि हमारी (केंद्रीय) स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने दिल्ली में शराबबंदी की नीति के बारे में बताया. मैं इस विषय में ज्यादा जानकारी नहीं रखता. हम शराबबंदी के पक्ष में हैं लेकिन निषेध के साथ एक खतरा भी बना रहता है. इससे अवैध शराब निर्माण और तस्करी बढ़ सकती है. इस तरह का उपचार बीमारी से ज्यादा खतरनाक है. हेल्थ मिनिस्टर का कहना है कहीं-कहीं तो अवैध शराब का धंधा शुरू भी हो गया है. मुझे उम्मीद है कि आपकी (निहाल सिंह) सरकार इस पहलू को ध्यान में जरूर रखेगी.
शराबबंदी बैन के पक्ष में खड़ी कांग्रेस लॉबी भारी पड़ गई
पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा दिए गए तर्क-वितर्क के बाद भी गुरुमुख निहाल सिंह ने दिल्ली में शराबबंदी से बैन नहीं हटाया. कांग्रेस पार्टी के अंदर भी इस पर खूब बहस चली. ऐसे में शराबबंदी बैन के पक्ष में खड़ी कांग्रेस लॉबी भारी पड़ गई. इस लॉबी के मुखिया थे दिग्गज कांग्रेसी नेता मोरारजी देसाई, जो शराबबंदी के पक्ष में मजबूती से खड़े रहे. इसके चलते ही निहाल सिंह भी शराबबंदी से फैसले से नहीं टिके.
हालांकि, दिल्ली की सियासत में यह भी खबर उस समय उठी कि गुरुमुख निहाल सिंह ने अपने बेटे की शराब की लत से परेशान होकर पूरी दिल्ली में शराब बंद करवा दी थी. निहाल सिंह अपने फैसले पर कायम रहे और शराबबंदी से बैन नहीं हटाया. केंद्र की कांग्रेस सरकार ने एक नवंबर 1956 को दिल्ली को यूनियन टेरिटरी बना दिया गया और विधानसभा भंग कर दिया, जिसके चलते गुरुमुख निहाल सिंह की कुर्सी भी चली गई.
निहाल सिंह महज एक साल 263 दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे. दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद निहाल सिंह दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हट गए थे. कांग्रेस ने उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाकर भेज दिया. 18 नवंबर 1956 को गुरुमुख निहाल सिंह को राजस्थान का गवर्नर बनाया गया और 1962 तक उस कुर्सी पर रहे. दिल्ली की सियासत में गुरुमुख निहाल सिंह को बहुत कम ही लोग जानते हैं. इस तरह गुमनाम सीएम बनकर रह गए.