क्या नीतीश की वजह से CAA को लेकर बैकफुट पर आ गई केंद्र सरकार?
नीतीश कुमार भले ही काफी लंबे समय तक एनडीए का हिस्सा रहे हों, लेकिन कई मसलों पर उनकी राय बीजेपी से अलग रही है. वह सीएए और एनआरसी के खिलाफ रहे हैं. नीतीश समावेशी विकास की बात करते हैं. सीएए और एनआरसी के अलावा नीतीश जहां जातिगत जनगणना के पक्षधर हैं तो वहीं बीजेपी इसके विरोध में रही है.
बिहार में तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदला और सियासी पहिया ऐसा घूमा कि यहां पर फिर से एनडीए की सरकार बन गई. कल रविवार सुबह तक नीतीश कुमार महागठंधन सरकार की अगुवाई कर रहे थे, लेकिन शाम होते-होते वह एनडीए सरकार के मुखिया हो गए. लोकसभा चुनाव से पहले इसे बड़ा बदलाव माना जा रहा है. लेकिन आज सोमवार को केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने दावा किया कि सीएए एक हफ्ते के भीतर लागू कर दिया जाएगा. बीजेपी कह रही है कि अभी कोई तैयारी ही नहीं है. ऐसे में क्या नीतीश की एनडीए में फिर से एंट्री के बाद यह संभव हो पाएगा.
नागरिक संशोधन कानून (CAA) को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उत्साहित नहीं रहे हैं. वह कह चुके हैं कि सीएए को हम अपने राज्य बिहार में लागू नहीं होने देंगे. देश में सीएए पर बहस की जरुरत है. नीतीश सीएए और एनआरसी दोनों के ही खिलाफ रहे हैं. लेकिन केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने एक हफ्ते के अंदर देश में सीएए लागू होने का दावा कर डाला. पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के मटुआ समुदाय बहुल बोंगांव से बीजेपी सांसद शांतनु ठाकुर ने कहा कि सीएए कानून को 7 दिनों के अंदर तेजी से लागू कर दिया जाएगा.
CAA लागू करने के पक्ष में बीजेपी
सीएए को लेकर 2020 में काफी विवाद हुआ था. साल 2019 में केंद्र की बीजेपी सरकार की ओर से लाए गए नागरिक संशोधन कानून का मकसद 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आकर भारत में बसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों समेत प्रताड़ना झेल चुके गैर-मुस्लिम प्रवासी लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है. हालांकि इस कानून को लेकर देश में भारी विरोध का सामना करना पड़ा.
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यह दावा ऐसे समय किया गया जब महीने की शुरुआत में खबर आई कि चुनाव के ऐलान से काफी पहले इस कानून के नियम अधिसूचित कर दिए जाएंगे. इस खबर और मंत्री के दावे के बीच बिहार में सियासी घटनाक्रम तेजी से बदला और नीतीश अचानक से एनडीए में आ गए. बीजेपी सीएए लागू करने के पक्ष में हमेशा से रही है. पिछले महीने दिसंबर में कोलकाता में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर दावा किया था कि सीएए अब देश का कानून बन चुका है. इसे लागू होने से कोई भी नहीं रोक सकता. उन्होंने ममता बनर्जी पर इस मसले पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया.
क्या अब बीजेपी के लिए होगा आसान
लेकिन अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में लौट आने के बाद क्या केंद्र सरकार के लिए सीएए लागू कर पाना आसान होगा. एक बारगी देखें तो ऐसा नहीं लगता क्योंकि इस मसले पर न तो बीजेपी और न ही सरकार की ओर से कोई औपचारिक ऐलान किया गया है. बीजेपी सूत्रों का कहना है कि सीएए पर फिलहाल अभी कुछ किया भी नहीं जा रहा है.
नीतीश कुमार भले ही काफी लंबे समय तक एनडीए का हिस्सा रहे हों, लेकिन कई मसलों पर उनकी राय बीजेपी से अलग रही है. वह सीएए और एनआरसी के खिलाफ रहे हैं. नीतीश समावेशी विकास की बात करते हैं. सीएए और एनआरसी के अलावा नीतीश जहां जातिगत जनगणना के पक्षधर हैं तो वहीं बीजेपी इसके विरोध में रही है. राम मंदिर के मसले पर भी बीजेपी की आक्रामकता से उलट रहे हैं.
400 सीट का लक्ष्य और लोकसभा चुनाव
बीजेपी और पार्टी के कई शीर्ष नेता लगातार सीएए और एनआरसी को लागू करने की बात करते रहे हैं जबकि पश्चिम बंगाल की तरह बिहार में भी इन कानूनों के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ था. राजधानी पटना के सब्जी बाग को अपनी प्रदर्शन की वजह से ‘बिहार का शाहीन बाग’ कहा गया था. साल 2020 में पूरे प्रदेश में भारी विरोध-प्रदर्शन हुआ था. यह विरोध सिर्फ बंगाल और बिहार तक ही सीमित नहीं रहा था. बल्कि असम समेत पूरे पूर्वोत्तर भारत, उत्तर प्रदेश के साथ ही देशभर में हर ओर से सीएए-एनआरसी को लेकर भारी विरोध हुआ था.
बीजेपी का लक्ष्य है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में 400 से ज्यादा सीटें जीतना है. इसके लिए उसे हर वर्ग से वोट चाहिए होगा. ऐसे में यह मुमकिन नहीं लगता कि सीएए- एनआरसी के मुद्दे को उठाते हुए यह संभव हो पाएगा क्योंकि इन कानूनों को लेकर देश में एक बड़े तबके ने विरोध जताया था. नीतीश के साथ आने से बिहार में बीजेपी को इस मसलों को किनारे रखना पड़ सकता है. बीजेपी का कई दलों के साथ गठबंधन है और हर राज्यों की अपनी अलग-अलग राजनीतिक परिस्थितियां होती हैं. ऐसे में 400 का लक्ष्य रखने वाली बीजेपी को फिलहाल चुनाव तक इस योजना को दरवाजे के पीछे रखना होगा.