Shabari Jayanti 2023: कहां है माता शबरी का पावन धाम, जानें इनकी पूजा विधि और धार्मिक महत्व

Shabari Jayanti 2023: कहां है माता शबरी का पावन धाम, जानें इनकी पूजा विधि और धार्मिक महत्व

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती के रूप में मनाया जाता है. सनातन परंपरा में इस दिन की पूजा एवं व्रत का महत्व जानने के लिए पढ़ें ये लेख.

Shabari Jayanti 2023: सनातन परंपरा में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती के रूप में एक ऐसा पावन पर्व मनाया जाता है, जिसमें न सिर्फ भगवान बल्कि उसके परम भक्त की भी पूजा और व्रत किया जाता है. रामायण काल में भगवान राम के वन गमन के दौरान जिस माता शबरी ने उन्हें अपने झूठे बेर खिलाए थे आज उनकी जयंती है. सनातन परंपरा में जिस मां शबरी को ईश भक्ति का बड़ा पर्याय माना जाता है, वर्तमान में उनका पावन धाम कहां पर स्थित है और उनकी पूजा करने पर क्या फल मिलता है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.

कहां है माता शबरी का पावन धाम

पौराणिक मान्यता के अनुसार रामायण काल में जिस स्थान पर श्रमणा यानि माता शबरी का अपने प्रभु श्री राम से मिलन हुआ था, वह स्थान वर्तमान में छत्तीसगढ़ में शिवरीनारायण के नाम से जाना जाता है. प्राचीन शिवरीनारायण नगर बिलासपुर से 64 कि. मी. की दूरी पर महानदी के तट पर स्थित है. माता शबरी भील सामुदाय के शबर जाति से संबंध रखती थीं. मान्यता है कि शबरी का विवाह एक भील से तय हुआ था और विवाह से पहले जब सैकड़ों जानवरों की बलि देने की तैयारी की जाने लगी तो उन्हें बहुत बुरा लगा और वे विवाह से एक दिन पहले घर छोड़कर भाग गईं. जिसके बाद दंडकारण्य में मतंग ऋषि उन्हें अपने आश्रम में शरण दी. अपने अंत समय में मतंग ऋषि ने शबरी से कहा कि एक दिन इसी आश्रम में भगवान राम और लक्ष्मण उनसे मिलने आएंगे, इसलिए वे उनका यहीं इंतजार करें. इसे बाद जब भगवान राम उनके पास गए तो उन्होंने बड़े प्रेम से उन्हें मीठे बेर खिलाए.

कैसे करें माता शबरी की पूजा

शबरी जयंती की पूजा करने के लिए शबरी जयंती के दिन प्रात:काल उठनके के बाद सबसे पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद सबसे पहले सूर्य नारायण को अर्घ्य दें क्योंकि माता शबरी जिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की पूजा करती थीं, वे स्वयं सूर्य देवता की पूजा किया करते थे क्योंकि वे सूर्यवंशी थे. सूर्य की साधना करने के बाद शबरी माता के व्रत एवं पूजा को विधि-विधान से करने का संकल्प लें इसके बाद भगवान राम और माता शबरी वाली फोटो या मूर्ति को एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर रखें और उसके बाद उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं. इसके बाद भगवान राम और माता शबरी को पुष्प, फल, चंदन, धूप-दीप आदि से पूजा करें. शबरी जयंती के दिन शुभ फलों की प्राप्ति के लिए बेर का भोग जरूर लगाएं. इसके बाद भगवान राम की स्तुति करें और अंत में आरती करने के बाद सभी को प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें.

शबरी जयंती की पूजा का उपाय

शबरी जयंती पर माता शबरी के साथ भगवान श्री राम की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व है. मान्यता है कि शबरी जयंती पर यदि कोई भक्त पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ श्री रामचरित मानस का पाठ करता है तो उस साधक पर बिल्कुल वैसे ही प्रभु श्री राम की कृपा बरसती है, जैसे रामायण काल में भगवान राम ने शबरी पर बरसाई थी.

शबरी ने क्यों खिलाए भगवान राम को जूठे बेर

मान्यता है कि भगवान राम के वनवास काल में जब जंगल में उनकी मुलाकात शबरी से हुई तो शबरी ने अपने आराध्य को भोजन के लिए बेर लाकर दिए. पौराणिक कथा के अनुसार माता शबरी नहीं चाहती थींं कि उनके प्रभु खट्टा बेर खाएं, इसलिए उन्होंने प्रभु श्री राम को चख-चख कर मीठे बेर ही खाने को दिए. मान्यता है कि भगवान राम अपने भक्त की इस भक्ति से प्रसन्न हुए और अंत समय में माता शबरी वैकुंंठ को प्राप्त हुईं.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)