उत्तराखंड: 75 साल का संघर्ष…संविधान सभा से लेकर शाहबानो केस तक; UCC की कहानी

उत्तराखंड: 75 साल का संघर्ष…संविधान सभा से लेकर शाहबानो केस तक; UCC की कहानी

संविधान सभा की बैठकों से लेकर सुप्रीम कोर्ट के गलियारों तक 75 साल तक हिचकोले खाने वाली समान नागरिक संहिता बिल उत्तराखंड के रास्ते आकार लेने वाली है. उत्तराखंड कैबिनेट ने इस बिल को पास कर दिया है और सोमवार को इसे विधानसभा में रखा गया है. हालांकि विपक्ष इसके विरोध में है, बावजूद इसके उम्मीद है कि इसे लागू करने की राह में कोई अड़चन नहीं आएगी.

देश में 75 साल से हिचकोले खा रहा समान नागरिक संहिता का मुद्दा आखिरकार उत्तराखंड के रास्ते साकार होने की ओर है. उत्तराखंड की कैबिनेट ने संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इसके बाद इस विषय को विधानसभा में पेश किया गया है. विपक्ष इस मुद्दे के विरोध में है, बावजूद इसके उम्मीद है कि यहां भी यह कानून पास हो कर अमली जामा पहन लेगा.वैसे तो यह मुद्दा साल 1978 तक केवल विभिन्न सदनों की चर्चा तक ही सिमित रहा, लेकिन शाहबानो केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई.

इसलिए आज बहुत जरूरी है कि इस मुद्दे के संघर्ष की कहानी पर चर्चा की जाए. देश में समान नागरिक कानून की बात कोई नया नहीं है. पहली बार यह मुद्दा 9 अप्रैल को 1948 को संविधान सभा की बैठक में उठा था. संविधान सभा की सदस्य रोहिणी कुमार चौधरी ने प्रस्ताव रखते हुए देश के सभी नागरिकों में विवाह और उत्तराधिकार के लिए एक नियम की बात की थी. उन्होंने कहा था कि यह व्यवस्था किसी जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर सबके लिए समान होनी चाहिए.

संविधान सभा की बैठक में हो चुकी है चर्चा

इसके बाद 12 दिसंबर 1948 को हरि विनायक पाटस्कर ने यह मुद्दा हिन्दू कोड पर चर्चा के दौरान उठाया. वहीं डॉ. बीआर अंबेडकर ने भी इस कानून का समर्थन करते हुए कहा था कि इससे सभी लोगों को समान अधिकार मिलेंगे और भेदभाव खत्म होगा. इसी क्रम में 5 फरवरी 1951 को प्रोविजनल पार्लियामेंट में हिन्दू कोड पर चर्चा के दौरान भी कई सदस्यों ने इसका समर्थन किया था. वहीं, संविधान लागू होने के बाद भी इस मुद्दे पर समय समय से चर्चा होती रही.

शाहबानो केस से शुरू हुआ विमर्श

मध्य प्रदेश के इंदौर में रहने वाली महिला शाहबानो का केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद इस मुद्दे पर व्यापक विमर्श शुरू हुआ. दरअसल शाहबानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने शादी के 40 साल बाद और 62 साल की उम्र में उन्हें तलाक दिया था. उस समय उनके पास पांच बच्चे थे, ऐसे में वह भरण पोषण के लिए जिला अदालत पहुंची, जहां से फैसला तो उनके पक्ष में आया, लेकिन महज 25 रूपये हर महीने गुजारा भत्ता देने की बात कही गई थी. ऐसे में शाहबानो ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां से उन्हें 179.20 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश हुआ.

कानून के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी चिंता

इस फैसले के बाद शाहबानो के पति सुप्रीम कोर्ट चले गए. यहां भी साल 1995 में फैसला शाहबानो के ही पक्ष में आया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई कि आखिर आजादी के 48 बाद भी देश में यूसीसी कानून क्यों लागू नहीं हो पाया. सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार के बाद देश में इस मुद्दे पर खूब चर्चा हुई. इससे तत्कालीन कांग्रेस सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. बावजूद इसके सरकार ने इस कानून को लागू करने की दिशा में इसे रोकने का ही कानून बना दिया था. हालांकि यह कानून नल एंड वाइड ही रहा.

जनसंघ के जमाने से बीजेपी का मुद्दा

इधर, जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी इस मुद्दे को हवा देती रही है. उत्तराखंड में तो पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने इस मुद्दे को चुनावी घोषणा पत्र में भी रखा था. वहीं सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी ने इस दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर दिया. इसी क्रम में राज्य सरकार ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय कमेटी को इस बिल को तैयार करने की जिम्मेदारी दी.

740 पन्ने का है मसौदा

इस कमेटी ने बीते शुक्रवार को ही चार खंडों में 740 पन्नों का मसौदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को को सौंपा था. वहीं कैबिनेट में मंजूरी के बाद सोमवार को सरकार ने यह मसौदा विधानसभा के पटल पर रख दिया था. ऐसे में कानून के बनने के बाद उत्तराखंड देश का दूसरा ऐसा राज्य होगा जहां यूसीसी कानून लागू होगा. इससे पहले गोवा में यह कानून लागू है. हालांकि यहां पुर्तगाली शासन के दौरान ही इसे लागू कर दिया गया था.

UCC बिल में क्या-क्या है?

  • बिल में विवाह पर सभी धर्मों में एक समान व्यवस्था होगी.
  • बहुविवाह पर रोक का प्रस्ताव रखा गया है.
  • बहुविवाह को मंजूरी नहीं दी जाएगी.
  • सभी धर्म के लोगों को शादी का पंजीकरण कराना होगा.
  • लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 साल
  • लड़कों के लिए शादी की उम्र 21 साल
  • सभी धर्म के लोगों में बच्चों को गोद लेने का अधिकार की वकालत की गई है.
  • मुसलमानों में होने वाले इद्दत और हलाला पर रोक लगे.
  • लिव-इन रिलेशनशिप रहने पर इसकी जानकारी अपने माता-पिता को देनी जरूरी होगी.
  • सभी धर्मों में तलाक को लेकर एक समान कानून और व्यवस्था हो.
  • पर्सनल लॉ के तहत तलाक देने पर रोक लगाई जाए.
  • बेटी को विरासत में बराबरी का हक