शिवसेना के बाद अब मातोश्री भी जाएगा? क्या है उद्धव पर शिंदे गुट का अगला प्लान

शिवसेना के बाद अब मातोश्री भी जाएगा? क्या है उद्धव पर शिंदे गुट का अगला प्लान

शिवसेना की लगाम हाथ में लेने के बाद एकनाथ शिंदे का खेल अभी नहीं हुआ है खल्लास. शिंदे गुट का नेक्स्ट प्लान व्हिप जारी करने का हो सकता है. ठाकरे खेमे के विधायक क्या वो व्हिप मानेंगे? नहीं मानेंगे तो अंजाम भुगतना होगा.

मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति के सिनेमाघर में रहस्य और रोमांच से भरपूर जो पिक्चर शुरू है, उसका अभी इंटरवल भी नहीं हुआ है. अभी तो बस फर्स्ट हाफ में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच का ढिशूम-ढिशूम शुरू है. फिलहाल उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना का नाम और धनुष-बाण का निशान गया है. अब लड़ाई शुरू होगी 150 करोड़ के पार्टी फंड हथियाने की, पार्टी की प्रॉपर्टीज कब्जाने की, अलग-अलग कार्यालयों पर कब्जे की लड़ाई चलेगी. अब सवाल ये भी है कि क्या मातोश्री पर भी शिंदे गुट अपना दावा ठोंक सकता है? फिलहाल पिक्चर का अगला सीन 27 फरवरी को विधानसभा के बजट सत्र के वक्त दिखाई देने वाला है. शिंदे गुट पार्टी व्हिप जारी करने वाला है.

केंद्रीय चुनाव आयोग ने शिवसेना की बागडोर एकनाथ शिंदे के हाथ दे दी है. इस तरह से संविधान के जानकार उल्हास बापट की राय है कि पार्टी फंड शिवसेना (शिंदे) के पास जा सकता है लेकिन दादर का शिवसेना भवन और ठाकरे परिवार से जुड़ी अन्य प्रॉपर्टीज ठाकरे गुट के पास ही रहेगी. दरअसल ये प्रॉपर्टीज पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि शिवाई ट्रस्ट के नाम पर खरीदी गई है. संविधान के जानकारों की राय में ‘सामना’ अखबार पर भी फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि यह भी अलग से इससे जुड़े पब्लिकेशन के नाम पर है.

आने वाला है कहानी में ट्विस्ट…शिंदे गुट देगा अगला किक…जारी करेगा व्हिप!

टेक्निकली शिवसेना के वे 16 विधायक और 5 सांसद भी शिवसेना के व्हिप से जुड़े हैं, जो ठाकरे खेमे के हैं. यानी शिवसेना की कमान चुनाव आयोग द्वारा एकनाथ शिंदे को सौंपे जान के बाद अब शिवसेना के दो गुट होने की मान्यता रद्द हो गई है. अब शिवसेना मतलब शिंदे, शिंदे मतलब शिवसेना. इसलिए शिवसेना अगर कोई व्हिप जारी करती है तो ठाकरे खेमे के विधायकों के पास दो ही रास्ते बचते हैं. या तो वे व्हिप के खिलाफ जाएं, या शरणागति स्वीकार करें. अगर वे व्हिप के खिलाफ जाते हैं तो उन्हें पार्टी डिस्क्वालिफाई यानी अयोग्य घोषित कर देगी और अगर वे व्हिप के साथ जाते हैं तो इसका मतलब होगा सरेंडर. यानी अब आएगा कहानी में ट्विस्ट. शिंदे गुट यूं देने वाला है अगला किक!

राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस के प्रवक्ता संदीप देशपांडे ने तो ठाकरे गुट से आज ही यह सवाल उठा दिया है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन के फैसले को नहीं पलटा, उसे स्टे नहीं दिया तो क्या ठाकरे गुट के 15 विधायक शिवसेना के व्हिप को मान कर सरेंडर करेंगे या अपनी विधायकी त्याग कर इस्तीफा देंगे और चुनाव के रण में कूद कर मर्दानगी दिखाएंगे? शिंदे गुट के प्रवक्ता दीपक केसरकर का कहना है कि ठाकरे खेमें के विधायकों को व्हिप पालन करना ही होगा. यह संसदीय कार्यप्रणाली का जरूरी हिस्सा है.

फिर चुनाव में जाने के लिए दिल बनाएंगे मजबूत, या फिर से एक नई फूट?

कुछ हद तक आगे क्या होने वाला है, इसकी झलक उद्धव ठाकरे ने भी आज दे दी है. उद्धव ठाकरे ने आज ओपन कार पर चढ़कर अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कह दिया कि चुनाव की तैयारी में लगो. गद्दारों को गाड़ कर ही अब चैन से बैठो. पर सवाल यह है कि उद्धव खेमे के विधायक इस्तीफा देकर फिर चुनाव में कूदने का कलेजा रखते हैं, या वे अपना टेन्योर पूरा करने की मंशा रखते हैं? अगर वे चुनाव लड़ने से बचते हैं तो उनके लिए आसान रास्ता एकनाथ शिंदे की शरणागति हो सकती है. यानी ठाकरे के बचे-कुचे कैंप में फिर सेंध लग सकती है.

दूसरी तरफ ठाकरे खेमे के विधानपरिषद में नेता अंबादास दानवे का कहना है, शिवसेना नाम और निशान एक गुट को दिए जाने का मतलब यह नहीं कि दूसरा गुट अस्तित्व में नहीं. इसलिए ठाकरे खेमे पर व्हिप का कोई असर नहीं होने वाला है.

सुप्रीम कोर्ट इलेक्शन कमीशन का फैसला पलटेगा, इसकी उम्मीद कम है

रही बात सुप्रीम कोर्ट की, तो इस बात की उम्मीद कम है कि वह चुनाव आयोग जैसी स्वायत्त संस्था के फैसले को बदलने की या स्टे देने की कोशिश करे. अब तक कि मिसालों को देखें तो सुप्रीम कोर्ट स्वायत्त संस्थाओं के मामले में दखल देने से बचता रहा है.

लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया या फैसले को पलटा तो एक दूसरी स्थिति पैदा हो सकती है. भारत के मामले में संविधान सर्वोपरि है. और संविधान की व्याख्या का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास है. इसलिए एक तरफ तो इलेक्शन कमीशन का फैसला सुप्रीम कोर्ट पर कोई असर नहीं रखता है लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला आता है, तो वो इलेक्शन कमीशन पर प्रभावी होता है. देखना यह होगा कि खुद सुप्रीम कोर्ट क्या तय करता है.