स्विंग वोटों की सियासत: जिस पैटर्न से बीजेपी को महाराष्ट्र-हरियाणा में मिली सत्ता, वही दिल्ली में चला तो पड़ सकता उल्टा
पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के नतीजों में स्विंग वोटर्स की भूमिका काफी अहम रही है. ऐसे में क्या 2024 के दिल्ली के विधानसभा में स्विंग वोटर्स बीजेपी के साथ बने रहेंगे या फिर वो दूसरी पार्टी पर स्विच करेंगे, आइए समझते हैं.
दिल्ली का विधानसभा चुनाव काफी रोचक बनता जा रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव के आठ महीने के बाद दिल्ली में चुनाव हो रहे हैं. उससे पहले महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हो चुके हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महाराष्ट्र और हरियाणा में नुकसान उठाना पड़ा था. लेकिन पांच महीने बाद दोनों ही राज्यों का सियासी सीन बदल गया. लोकसभा में मिली हार से सबक लेते विधानसभा में वापसी करने में कामयाब रही.
हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी ने जिस तरह से पांच महीने में ही सारे गेम बदलने में कामयाब रही है, उसके पीछे सबसे अहम भूमिका स्विंग वोटर्स की रही है. लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के पक्ष में वोटिंग करने वाले मतदाताओं ने दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पक्ष में मतदान कर सारा खेल ही बदल दिया था. दिल्ली चुनाव में भी ऐसे ही पैटर्न पर वोटिंग रही तो फिर बीजेपी के लिए सियासी वनवास 5 साल के लिए बढ़ जाएगा.
लोकसभा के बाद दिल्ली का चुनाव
दिल्ली का वोटिंग पैटर्न देखें तो पिछले दो लोकसभा और दो चुनाव में स्विंग वोटर्स ही सियासत की दशा और दिशा तय करते रहे हैं. लोकसभा के बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और पिछले दो बार से अरविंद केजरीवाल पूर्व बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहे. एक बार होता तो संयोग माना जा सकता था, लेकिन पिछले दो बार से यही पैटर्न दिख रहा. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जिताने वाली दिल्ली की जनता विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के पक्ष में मजबूती से खड़ी नजर आती है. इसके चलते बीजेपी दिल्ली की सत्ता से महरूम रही और आम आदमी पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही.
वोटिंग पैटर्न के बदलने से बदलता गेम
दिल्ली में 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 32.9 फीसदी, बीजेपी को 46.4 फीसदी और कांग्रेस को 15.1 फीसदी वोट मिले थे. दिल्ली की सभी सातों सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही. इसके आठ महीने के बाद 2015 के विधानसभा चुनाव हुए तो पूरा सीन ही बदल गया. आम आदमी पार्टी को 54.5 फीसदी, बीजेपी को 32.2 फीसदी और कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले. आम आदमी पार्टी को 21.6 फीसदी वोटों का फायदा हुआ जबकि बीजेपी को 14.1 और कांग्रेस को 5.4 फीसदी का नुकसान हुआ.
2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 18.1 फीसदी वोट मिले. बीजेपी को 56.8 फीसदी और कांग्रेस को 22.5 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन एक साल के बाद विधानसभा चुनाव हुए सीन बदल गया. 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 53.6 और बीजेपी का 38.5 फीसदी रहा. कांग्रेस ने 4.3 फीसदी वोट हासिल किए. बाकी अन्य के खाते में गए. इस तरह से आम आदमी पार्टी को 35 फीसदी का फायदा तो बीजेपी को 18 फीसदी और 18 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ा.
दिल्ली में 20 से 25 फीसदी स्विंग वोटर्स
दिल्ली के चुनावी वोटिंग पैटर्न देखें तो करीब 20 से 25 फीसदी मतदाता स्विंग वोटर हैं, जो लोकसभा में अलग और विधानसभा में अलग वोटिंग करता है. पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजों से यही साफ होता है कि दिल्ली बड़ी संख्या में वोटर हैं जो केंद्र सरकार के लिए मोदी को और दिल्ली में केजरीवाल को चुनते हैं. ये स्विंग वोटर्स ही दिल्ली के सियासी रुख को तय करते हैं.
दिल्ली के वोटिंग पैटर्न से जो बड़ी तस्वीर निकलकर सामने आई है, वो ये कि जिसके जितने वोट घटते हैं, दूसरी पार्टी के करीब-करीब उतने ही वोट बढ़ते हैं. विधानसभा वाली बाजी लोकसभा में बिल्कुल पलटी हुई नजर आती है. लोकसभा में बीजेपी जो बढ़त बनाती है तो विधानसभा में वही बढ़त आम आदमी पार्टी बना लेती है. दिल्ली की चुनावी धुरी इन्हीं 20 से 25 फीसदी स्विंग वोटर्स के इर्द-गिर्द घूमती है.
2024 के लोकसभा चुनाव का सीन
दिल्ली में 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था और सभी सातों सीटें जीतने में कामयाब रही. इस तरह से वोट प्रतिशत देखें तो बीजेपी को 54.3 फीसदी, आम आदमी पार्टी को 24.2 फीसदी और कांग्रेस को 18.9 फीसदी वोट मिले थे. दिल्ली लोकसभा चुनाव के नतीजों को विधानसभा सीट के लिहाज से देखें तो बीजेपी को 52 विधानसभा सीटों पर बढ़त मिली थी. आम आदमी पार्टी को 10 और कांग्रेस को 8 सीटों पर बढ़त मिली थी. इस तरह बीजेपी की कोशिश लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी मतदाताओं पर पकड़ बनाए हुए है.
बीजेपी के सामने सबके बड़ी चुनौती उन स्विंग वोटर्स को बनाए रखने की है, जिन्होंने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिया था. वहीं, आम आदमी पार्टी की कोशिश 2015 और 2020 की तरह स्विंग वोटर्स को साधने की है, जिनके जरिए सत्ता अपने नाम करना चाहती है. स्विंग वोट पर ही सारा गेम दिल्ली चुनाव टिका हुआ है. ऐसे में देखना है कि दिल्ली में स्विंग वोटर्स क्या फिर अपना मिजाज बदलेंगे या फिर मजबूती के साथ बीजेपी के संग जुड़े रहेंगे.