हाइजैक किया ट्रेन… बलिया से लखनऊ पहुंचे क्रांतिवीर, नाम रखा- आजादी एक्सप्रेस; 82 साल पुरानी कहानी

हाइजैक किया ट्रेन… बलिया से लखनऊ पहुंचे क्रांतिवीर, नाम रखा- आजादी एक्सप्रेस; 82 साल पुरानी कहानी

देश में पहली आजादी एक्सप्रेस ट्रेन बलिया में चली थी. यह ट्रेन बलिया के युवाओं ने बलिया रेलवे स्टेशन फूंकने के बाद लखनऊ तक चलाई थी. बलिया से जब यह ट्रेन चली तो लखनऊ तक जगह जगह इस ट्रेन का स्वागत किया गया था.

स्थान उत्तर प्रदेश में बलिया का रेलवे स्टेशन, तारीख 15 अगस्त 1942 और समय दोपहर के 1 बजे. छुक-छुक की आवाज हुई और लखनऊ के लिए पहली आजादी एक्सप्रेस चल पड़ी. इस ट्रेन के अंदर लोग कम थे, लेकिन इंजन और बोगियों के ऊपर तिरंगा लहराते युवाओं का जोश देखते ही बन रहा था. यह वही आजादी एक्सप्रेस ट्रेन थी, जिसे बलिया के छात्रों ने रेलवे स्टेशन फूंकने के बाद कब्जा ली थी और बरतानिया हुकूमत को चैलेंज करते हुए बलिया से लखनऊ तक चलाया था. यह पूरा घटनाक्रम आजादी के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है.

चूंकि मौका आजादी की वर्षगांठ है, इसलिए दस्तूर है कि हम उस घटनाक्रम को एक बार फिर याद करें. इस प्रसंग में हम बताने की कोशिश करेंगे कि यह सबकुछ कैसे हुआ था. इसलिए आइए, शुरू से शुरू करते हैं. दरअसल बलिया जिले को सीमाओं में बांधने वाली गंगा और घाघरा दोनों ही नदियां उफान पर थीं और खुद ही अपनी सीमाएं तोड़ने को आतुर थीं. उधर, दूसरी ओर बलिया के लोग गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर बाहर आने के लिए बेताब थे. मुंबई में महात्मा गांधी की गिरफ्तारी के साथ शुरू हुई अगस्त क्रांति बलिया में आते आते ‘बलिया क्रांति’ में तब्दील हो चुकी थी.

दोपहर में फूंक दिया था बलिया रेलवे स्टेशन

9 अगस्त से ही लोग अंग्रेज सरकार को सीधा टक्कर देने लगे थे. रोज सुबह जत्थे का जत्था निकलता और शाम तक अंग्रेजों की नाक में पानी भर दे रहा था. 15 अगस्त को भी बलिया वालों की कुछ ऐसी ही योजना थी. उस दिन जिले के बड़े बुजुर्ग कलक्ट्रेट पर धावा बोलने वाले थे, लेकिन युवाओं के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. सूर्य की लालिमा दिखने के साथ ही अपने घरों से निकले जिले भर के युवा 10 बजते बजते बलिया रेलवे स्टेशन पहुंच गए. वहां सभा की और करीब 12 बजे रेलवे स्टेशन में आग लगा दी.

पहली बार देश में चली आजादी एक्सप्रेस

स्टेशन से उठती आग की लपटें अभी थमी भी नहीं थी कि गाजीपुर की ओर से चलकर एक ट्रेन बलिया स्टेशन पर पहुंच गई. करीब दो सौ से अधिक युवाओं ने इस ट्रेन को घेर लिया. ड्राइवर को बंधक बनाकर करीब एक बजे इस ट्रेन को आजादी एक्सप्रेस के नाम से चला दिया. उस समय यह सभी युवा ट्रेन के इंजन से लेकर बोगियों की छत पर तिरंगा लेकर चढ़ गए और पूरे रास्ते तिरंगा लहराते और आजादी के गीत गाते हुए अगली सुबह लखनऊ पहुंचे थे. बलिया से चली इस ट्रेन का गाजीपुर, फैजाबाद और बाराबंकी में आजादी के दिवानों ने स्वागत किया और इस ट्रेन में चढ़ गए.

18 अगस्त को सभी तहसीलों पर हो गया था क्रांतिवीरों का कब्जा

लखनऊ पहुंचते पहुंचते यह ट्रेन अंदर से बाहर तक खचाखच भर गई थी. 17 अगस्त की सुबह यह ट्रेन लखनऊ पहुंची, इधर बलिया में यही 17 और 18 अगस्त अंग्रेज सरकार पर भारी पड़ गए. बलिया वालों ने जिले की सभी तहसीलों पर कब्जा कर लिया था. आलम यह था कि पुलिस और प्रशासन के लोग खुद अपना बचाव करने में लग गए. एक दिन पहले तक जो अफसर अंग्रेजों के आदेश पर भीड़ में घोड़े दौड़ा रहे थे, कोड़े फटकार लग रहे थे, वहीं अफसर भीड़ के सामने खुद को भारतीय होने और जान बख्श देने की दुहाई दे रहे थे.

क्रांतिवीरों ने तोड़े जेल के ताले तो फरार हो गए कलेक्टर

चूंकि उस दिन बलिया के लोग भी पूरी तैयारी के साथ घर से निकले थे. पुरुषों के हाथ में लाठी और डंडे थे तो महिलाएं झाडू, बेलन और चिमटा आदि लेकर इस जंग में शामिल हुई थीं. इन लोगों ने देखते ही देखते बैरिया थाने पर कब्जा कर लिया. उस समय थानेदार समेत सभी पुलिसकर्मियों को उन्हीं के लॉकअप में बंद कर दिया गया था. हालात को देखते हुए 18 अगस्त की ही रात को कलेक्टर जगदीश्वर निगम ने अंग्रेज सरकार को लिख दिया कि बलिया को रोक पाना संभव नहीं. सुबह होते ही उन्हें खबर मिली कि क्रांतिवीरों ने जेल के ताले तोड़ दिए हैं और कलेक्ट्रेट की ओर आने वाले हैं. इस सूचना से ही उनकी पैंट गिली हो गई और कुर्सी छोड़ कर फरार हो गए थे. इसके बाद वीर सेनानी चित्तूपांडे ने बलिया की कमान संभाली. इस प्रकार बलिया देश की आजादी से पांच साल पहले 19 अगस्त 1942 को ही आजाद हो गया.

इनपुट: मुकेश मिश्रा, बलिया (UP)