अनाथालय, अडॉप्शन और फिर वापस वहीं… 4 साल के मासूम के टूटे सपनों की दर्दभरी कहानी
बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले ने एक अनाथ बच्चे को फिर से अनाथ कर दिया है. दरअसल इस बच्चे को एक दंपती ने पिछले साल 2023 में गोद लिया था लेकिन 5 महीने बाद उससे भावनात्मक लगाव नहीं हो पाने के कारण उसे वापस करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर दी. माता पिता ने शिकायत की बच्चा ज्यादा खाता है और उसका बर्ताव सही नहीं है.
दुनिया में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जो इतने खुशनसीब नहीं होते कि पैदा होते ही माता-पिता का प्यार नसीब हो. अनाथालय ही इन बच्चों का घर होता है. लेकिन दुनिया में ऐसे लोगों की भी तादाद कम नहीं है, जिन्हें औलाद का सुख नहीं मिल पाता. एक कंप्लीट फैमिली के लिए ये दोनों ही एक-दूसरे के लिए उम्मीद की किरण होते हैं. यानी माता-पिता को संतान मिल जाए और जो अनाथ हैं उन्हें माता-पिता का साया. इसी बुनियादी ज़रूरत की वजह से तय होती है बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया. लेकिन गोद लेने के बाद कई केसे ऐसे भी सामने आते हैं जब बच्चे को अनाथालय वापस छोड़ दिया जाता है.
एक ऐसा ही केस हाल फिलहाल में मुंबई से आया है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 साल के बच्चे के हित में उसका एडॉप्शन रद्द कर दिया. वजह जानकर आपको हैरानी होगी. कोर्ट को ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि बच्चे से दंपति का भवनात्मक लगाव नहीं हो पाया. हालांकि बच्चे का जुड़ाव माता-पिता से हो चुका था. आगे इस लेख में जानेंगे कि कितने आम हैं, इस तरह के केस, गोद लेने का फैसला करने से पहले पैरेंट्स को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले पूरा केस समझ लीजिए
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साल 2023 और अगस्त महीने की बात है. कोर्ट ने बच्चे को दंपती को एडॉप्शन में दिया था. अडॉप्शन के 5 महीने बाद दंपती बाल आशा ट्रस्ट पहुंच गया. वजह थी बच्चे का बुरा बर्ताव और आदत. फिर ट्रस्ट ने बच्चे के व्यवहार को समझने के लिए काउंसलिंग का सुझाव दिया. काउंसलिंग में पता चला कि बच्चा खाना ज्यादा खाता है. यही नहीं शिकायत में दंपती ने बच्चे के कूड़ेदान से खाना उठाने की बाएडॉप्शनत भी बताई थी. अब बच्चा ऐसा क्यों कर रहा है ये पता लगाने के लिए डॅाक्टर की सलाह ली गई. ब्लड टेस्ट के बाद पता चला कि बच्चा लेप्टिन और डायबिटीज के बॉर्डर लाइन पर है. जिसकी वजह से वो मोटापे और डायबिटीज जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हो सकता है. उसके बाद दंपती के हलफनामे के साथ ट्रस्ट ने एडॉप्शन रद्द करने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी. जिसपर कोर्ट ने अब फैसला सुना दिया है. साथ ही एडॉप्शन एजेंसी को बच्चे को दोबारा अडॅाप्शन के लिए रजिस्टर करने को कहा.
कितने आम हैं इस तरह के केस?
गुड़गांव के कोलंबिया हॉस्पिटल में साइकोलोजिस्ट श्वेता शर्मा से हमने बात की, वो कहती हैं कि “इस तरह का केस अपने आप में रेयर है, क्योंकि भावनात्मक लगाव न हो पाने की वजह से एडॉप्शन कैंसिल होने के मामले बहुत कम आते हैं. ज़्यादातर अडॉप्शन तब रद्द होते हैं, जब बच्चे का शोषण हुआ हो, चाहे वो सेक्सुअल हो या फिजिकल. या तो तब जब गोद लेने के बाद कपल में किसी बात को लेकर अनबन इतनी बढ़ गई कि तलाक तक बात पहुँच जाए.
इस केस से सबक लेने की जरूरत है
बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए दो लाख रुपये की निवेश निधि भी पैरेंट्स को CARA यानी सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी में जमा करना होगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं कि ”इस केस में कई तरह के सवाल खड़े होते हैं”
पहला– कारा संस्था ने बच्चे को वापस लेने पर सहमति जताई. लेकिन ऐसे मामलों में नाबालिग बच्चे के पक्ष को भी बेहतर तरीके से समझने की जरुरत होनी चाहिए.
दूसरा– अगर लड़के के बजाए यह मामला नाबालिग लड़की से जुड़ा होता तो फिर उस मामले में फैसले की प्रक्रिया क्या होती?
तीसरा– गोद लेने की प्रक्रिया पूरी होने के पहले बच्चे की मेडिकल फिटनेस रिपोर्ट होना जरूरी है. उसके बावजूद सिर्फ परेशानी और सही रिश्ता नहीं बन पाने के आधार पर क्या गोद लेने की प्रक्रिया को निरस्त करना चाहिए.
चौथा-अगर कोई पेरेंट्स अपने जैविक संतान के व्यवहार या रवैये से नाखुश है तो क्या वह बच्चे को कारा के माध्यम से अनाथ आश्रम में दे सकता है?
विराग गुप्ता ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का जिक्र करते हुए कहा कि ”प्रस्तावित कानून में शादी, तलाक और लिव-इन जैसे विषयों पर प्रावधान किये गए हैं. युवाओं में विवाह के प्रति रुझान कम होने से सरोगेसी और गोद लेने के मामले बढ़ रहे हैं. महाराष्ट्र के इस मामले से सबक लेते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों को गोद लेने और रिवर्स करने के बारे में स्पष्ट और प्रभावी प्रक्रिया और कानून बनाने की जरुरत है.”
पेरेंट्स को बच्चे से जुड़ाव के लिए क्या करना चाहिए?
साइकोलोजिस्ट श्वेता शर्मा श्वेता बताती हैं कि “समाज में आज भी अडॉप्शन को लेकर लोग अच्छा नहीं सोचते. जो गोद लेना का फैसला करते हैं वो भी कई तरह के गिल्ट में रहते हैं. उसमें सबसे ज्यादा ये भाव हावी रहता है कि उनका अपना बच्चा नहीं है. जब इस तरह के गिल्ट और अधूरेपन से लोग फैसला लेंगे तो बच्चों में पहले ही दिन से फर्क देखने लगेंगे और उसके साथ घुलने मिलने में समस्या होती है.
2017-2019 CARA एक रिपोर्ट आई. रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान भारतीय परिवारों ने करीब 7 हज़ार बच्चों को गोद लिया. पर इन गोद लिए बच्चों में से करीब 300 बच्चों को परिवार वापस छोड़ गए. वापस छोड़े गए ज्यादतर बच्चों के साथ कुछ परेशानी थी, जैसे बॉम्बे हाई कोर्ट वाले केस में बचे को बोर्डरलाइन डायबिटीज थी. इन केसेस में होता है ये है कि परिवार बच्चों के साथ सामंजस्य बनाने में पूरी तरह नाकाम होते हैं. डॉक्टर श्वेता ऐसे में सलाह देती है कि “अडॉप्शन का फैसला लेने से पहले थेरेपी या काउंसलिंग करवा लेना चाहिए. ताकि ये पता चल सके कि आप सच में बच्चा गोद लेने के लिए तैयार हैं या नहीं”
बच्चा अडॉप्ट करने की शर्तें
अमूमन किसी संस्था से बच्चे को गोद लेने के लिए मां-बाप को कई तरह के प्रोसेस से गुज़रना होता है. उनके पास दो विक्लप होते हैं. या तो हिंदू अडॅाप्शन और मेंटेनेंस एक्ट 1956 (HAMA) के तहत गोद ले सकते हैं, दूसरा CARA यानी सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी की मदद से. CARA का का काम होता है अनाथ, छोड़ दिए गए और आत्म-समर्पण करने वाले बच्चों का अडॉप्शन कराना. पर ये इतना भी आसान नहीं है. आप सिर्फ ऐसे ही बच्चों को गोद ले सकते हैं जो कानूनी रूप से वैध हों. माने जिसे बाल कल्याण समिति ने कानूनी तौर पर गोद लेने के लिए फ्री का दर्जा दिया हो. HAMA अब एक पुराना कानून हो चुका है जो सिर्फ हिंदुओं और एक-दूसरे को जानने वाले लोगों को ही गोद लेने देता है. यह बड़े पैमाने पर अजनबियों के बीच गोद लेने को बढ़ावा नहीं देता है.
कैसे ले सकते हैं बच्चा गोद, क्या हैं नियम?
सबसे जरूरी नियम है मां-बाप को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक तौर पर सक्षम होना. दूसरा यह भी बताना होगा कि आपको कोई जानलेवा बीमारी तो नहीं है. पैरेंट्स की उम्र और बच्चे के उम्र के बीच एक गैप रहना ज़रूरी है. जैस अगर कपल को चार साल या उससे छोटा कोई बच्चा गोद लेना है, तो दोनों पैरेंट्स की उम्र का जोड़ 90 से ज्यादा नहीं होना चाहिए, ऐसे ही सिंगल पैरेंट के केस में उम्र 25 से 45 के बीच होनी चाहिए. जिन लोगों के पहले से ही तीन या इससे ज्यादा बच्चे हैं वे लोग बच्चा गोद लेने के लिए योग्य नहीं हैं. लेकिन कुछ स्थितियों में वे भी बच्चा गोद ले सकते हैं.
भारत में कितने अनाथ बच्चे हैं?
CARA के मुताबिक भारत में 2 करोड़ 96 लाख अनाथ बच्चे हैं. जिनमें से 5 लाख भी अनाथालय तक नहीं पहुंच पाते हैं. सिर्फ हर साल 3000 से 4,000 बच्चे ही गोद लिए जाते हैं. जुलाई 2022 तक, भारत में 16,000 से ज्यादा संभावित माता-पिता अडॉप्ट करना चाहते थे. लेकिन गोद लेने के लिए कानूनी रूप से मौजूद बच्चों की संख्या इससे बहुत कम है. इसके अलावा, देश में 7,000 बाल देखभाल संस्थानों में लगभग 2 लाख 60 हज़ार बच्चे रहते हैं.
भारत में गोद लेने की दर कम क्यों?
इसके पीछे कई वजहें हैं. सबसे पहला कारण तो यही है कि गोद लेने के लिए पर्याप्त बच्चे नहीं हैं. क्योंकि जितनी संख्या अनाथ बच्चों की है और उनमें से जितने को संस्थागत देखभाल मिलती है, उनका अनुपात कहीं ज्यादा असंतुलित है. और उसमें से भी कई बच्चे ऐसे हैं जो अडॉप्शन के लिए वैध नहीं है. इस खाई को और बढ़ावा देता है कभी न खत्म होने वाले जाति, वर्ग जैसे सामाजिक कलंक. आज भी भारत में, ज्यादातर परिवार ऐसे बच्चे को गोद लेने से बचते हैं जिसके बैकग्राउंड के बारे में पता नहीं होता है.
यहां तक कि वो मां बाप भी जिन्हें अपने बच्चे का सुख नहीं मिल पाता. पर विडम्बना देखिए जहां लाखों बच्चे बिना माता-पिता के हैं, वहीं इंफरटाइल कपल्स की संख्या भी बढ़ रही है. इस आंकड़े पर गौर फरमाइए, इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्शन के मुताबिक, शहरी भारत में रहने वाले 27 करोड़ 50 लाख कपल या दूसरे शब्दों में लगभग छह में से एक कपल में प्रजनन संबंधी समस्याएं हैं.