उत्तर भारत का पहला जू बना कानपुर, गुजरात से कंगारुओं का लाया गया जोड़ा

उत्तर भारत का पहला जू बना कानपुर, गुजरात से कंगारुओं का लाया गया जोड़ा

उत्तर प्रदेश के कानपुर के जू में गुजरात के जामनगर से कंगारुओं के दो जोड़ों को लाया गया है. ऐसे में कानपुर उत्तर भारत का पहला जू है, जहां पर कंगारू की प्रजाति अब मौजूद हैं. कंगारुओं को देखने के लिए लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है.

आपने कंगारुओं के बारे में बहुत सुना होगा और टीवी में देखा भी होगा. अगर आप रियल लाइफ में कंगारू देखना चाहते हैं और कानपुर में रहते हैं, तो अब ये मुमकिन है. आप कानपुर जू आकर कंगारू प्रजाति के छोटे कंगारू (वालाबी) देख सकते हैं. कानपुर जू में दो जोड़ों को लाया गया है. जू में कंगारुओं के आने से लोगों में काफी उत्साह है. इन कंगारू को गुजरात के जामनगर से कानपुर जू लाया गया है.

कंगारू एक दिलचस्प प्राणी है. खासकर मार्सुपियम यानी अपनी थैली की वजह से इस जानवर को देखना काफी दिलचस्प होता है. ज्यादातर कंगारू ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं और यह वहीं की प्रजाति भी है, लेकिन अगर अब आपको कंगारुओं को टीवी से बाहर आमने-सामने देखना है, तो आप कानपुर जू आकर देख सकते हैं. कानपुर जू के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर नावेद इकराम ने बताया कि इन कंगारुओं को बाटर डील के चलते जामनगर से लाया गया है.

कानपुर उत्तर भारत का पहला जू

रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर नावेद इकराम ने बताया कि कानपुर उत्तर भारत का पहला जू है, जहां पर कंगारू की प्रजाति अब मौजूद है. यहां पर कंगारुओं के दो जोड़ों को लाया गया, जिसमें से एक जोड़ा सफेद है और दूसरा जोड़ा ग्रे रंग का है. RFO ने बताया कि इनके लिए जामनगर की तरह मौसम अनुकूल बनाकर रखा जाएगा. यह कंगारू शाकाहारी होते हैं और पेड़ों की पत्ती इनका मुख्य आहार होता है.

कंगारुओं को होती है दांत की बीमारी

कानपुर जू के डॉक्टर नासिर ने बताया कि कंगारुओं को सबसे बड़ी बीमारी दांत की होती है. उसकी ही वजह से इनकी मौत भी होती है. इसलिए कानपुर जू में इनके दातों का खास ख्याल रखा जा रहा है. उन्होंने बताया कि जू में हर तरह का इलाज मौजूद है. कंगारू 240 दिन में बच्चे पैदा करते हैं. इसलिए प्रशासन को उम्मीद है कि जल्दी ही इनकी संख्या में इजाफा होगा.