हरदोई का रहस्यमई धोबिया आश्रम, यहां शिवलिंग से लगातार निकलती है जल की धारा
हरदोई जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर स्थित धोबिया आश्रम का बड़ा ही पौराणिक है. धौम्य ऋषि पांडवों के पुरोहित थे. पौराणिक मान्यता है कि यहां पर 84 हजार वैष्णवों ने नैमिषारण्य के आसपास तपस्या की थी.
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के मानचित्र में धोबिया आश्रम का अपना एक अलग ही महत्व है. आश्रम अपने रमणीय माहौल, प्राकृतिक खूबसूरती, जमीन से निकलने वाले प्राकृतिक जल के साथ-साथ शिवलिंग के शीर्ष से निकलने वाले रहस्यमई जल के कारण आध्यात्मिक रूप से श्रद्धा का केंद्र है. अब जिला प्रशासन के प्रयासों के चलते पर्यटन स्थल भी घोषित हो चुका है.
जिला मुख्यालय से इस स्थल की दूरी करीब 35 किलोमीटर है, जहां तक कार से पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगता है. प्राकृतिक सुंदरता को अपने आप में समेटे यह जंगली इलाका है. जंगल के बीचों-बीच जलधारा सदियों से बहती चली आ रही है, जो आगे गोमती नदी में जाकर के मिल जाती है. लेखक अतुल कपूर ने बताया कि धोबिया आश्रम धौम्य ऋषि की तपोभूमि है. यहां स्थित शिवलिंग पांडवों के द्वारा पूजित है. इसका उल्लेख कई पुराणों में मिलता है. धौम्य ऋषि ने नैमिष क्षेत्र के स्थान पर तपस्या की थी. यह 84 हजार ऋषियों की तपस्या में शामिल ऋषि माने जाते हैं. यह पांडवों के कुल गुरु पुरोहित थे.
लाखों की संख्या में आते हैं पर्यटक
बताते चलें कि नैमिषारण्य के आसपास का यह क्षेत्र धार्मिक आध्यात्मिक रूप से आकर्षण का केंद्र है. गोमती नदी के तट पर धोबिया आश्रम का घना जंगल सुंदर और दर्शनीय है. यहां पर लाखों की संख्या में पर्यटक आते रहते हैं. अभी कुछ दिन पहले ही आश्रम की देख-रेख करने वाले महान संत नेपाली बाबा ने समाधि ली है. हरदोई के सिटी मजिस्ट्रेट डॉ. सदानंद गुप्ता ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं और लेखों के अनुसार, धोबिया आश्रम में पाए जाने वाले जल स्रोत का महाभारत कालीन इतिहास है.
भगवान श्रीकृष्ण ने कर्ण से मांगा था दान
किवदंती यह है कि महाभारत काल में अर्जुन का बाण लगने के बाद जब कर्ण पृथ्वी पर अंतिम सांस ले रहे थे, तब भगवान कृष्ण उनकी परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण का रूप धारण करके कर्ण से दान मांगने के लिए पहुंचे थे. तब दानवीर कर्ण ने अपने दांत से सोना निकालकर उन्हें दान कर दिया था, जिसे भगवान ने अशुद्ध बता दिया था और लेने से इनकार कर दिया था.
पूर्व जिलाधिकारी ने कराया था जीर्णोद्धार
तब कर्ण ने पृथ्वी को बाण से भेदकर जल का स्रोत निकाला था. तभी से लेकर आज तक यह जल स्रोत लगातार बिना रुके चल रहा है. यह जल स्रोत शीतल और निर्मल है. जनपद के अलावा बड़ी दूर-दूर से पर्यटक यहां पर इस जल स्रोत और शिवलिंग से निकलने वाले जल के रहस्य और जंगल की मनोरम छटा को देखने के लिए आते रहते हैं. पूर्व जिलाधिकारी पुलकित खरे ने इस क्षेत्र में काफी बड़ा काम किया था. उन्होंने यहां का जीर्णोद्धार कराया था. तब से लेकर आज तक यह क्षेत्र प्रशासन के संरक्षण में है.