‘मैं जल्द घर आऊंगा,’ शहीद हर्बोला न निभा सके ये वादा, लेकिन 38 साल बाद शव पहुंचा घर
19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद सियाचिन में मिला है. इसकी सूचना सेना की ओर से उनके परिजनों को दी गई है.
शहीद चंद्रशेखर हर्बोला की पत्नी शांति देवी ने अपने पति के पार्थिव शरीर का इंतजार 38 साल किया है. इतने सालों में उन्हे एक विश्वास था कि एक दिन वो अपने पति के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन जरूर करेंगी. जिस समय शांति देवी के पति शहीद हुए थे उस समय उनकी उम्र सिर्फ 28 साल थी. बहुत ही कम उम्र में शांति देवी ने अपने पति को खो दिया था. जिसके बाद उन्होंने अकेले ही मां और पिता की भूमिका निभाते हुए दोनों बेटियों का लालन-पालन किया.
इस दौरान सेना की ओर से उन्हें पूरी मदद दी गई जिस वजह से परिवार के पालन पोषण में उन्हें काफी मदद मिली. दोनों ही बेटियां बहुत छोटी थी जब पिता का साया उनके सर से उठ गया था. बड़ी बेटी की उम्र उस समय सिर्फ साढे़ चार साल और छोटी बेटी की उम्र सिर्फ डेढ़ साल थी. इस कारण दोनों बेटियों के पास पिता की ज्यादा यादें नहीं हैं.
‘मैं जल्द वापस आऊंगा’
शांति देवी ने बताया कि जब जनवरी 1984 में वह आखिरी बार घर आए थे. तब वादा करके गए थे, इस बार जल्दी लौटकर घर आएंगे, लेकिन ये वादा अधूरा ही रह गया. शहीद चंद्रशेखर हर्बोला ने पत्नी से किए वादे की बजाए देश से किए हुए वादे को निभाया.
‘कभी तो पति की कोई खबर आएगी’
शांति देवी ने बताया कि 38 साल तक हर रोज कहीं न कहीं ये बात दिल में रहती थी कि कभी भी उनके पति को लेकर कोई खबर आ सकती है, आखिरकार आजादी के अमृत महोत्सव से ठीक एक दिन पहले मां भारती के सपूत के अंतिम बलिदान की सूचना आ गई. 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद सियाचिन में मिला है. इसकी सूचना सेना की ओर से उनके परिजनों को दी गई है. बताया जा रहा है कि सोमवार को उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी लाया जाएगा. इसके बाद सैनिक सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया जाएगा.
ग्लेशियर की चपेट में आए सैनिक
शहीद हर्बोला 1975 में सेना में भर्ती हुए थे. 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन के लिए युद्ध लड़ा गया था. भारत ने इस मिशन का नाम ऑपरेशन मेघदूत रखा था. भारत की ओर से मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी. इसमें चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे. सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं रही.