मेरे दोस्त को किसी ने झूठी बातों की भांग पिलाई…फडणवीस की ठाकरे से दूरियां कम करने की कोशिश?

मेरे दोस्त को किसी ने झूठी बातों की भांग पिलाई…फडणवीस की ठाकरे से दूरियां कम करने की कोशिश?

BJP नेतृत्व को साफ समझ आ चुका है कि जब तक महाविकास आघाड़ी की एकता कायम है, बीजेपी के लिए 'बहुत कठिन है डगर पनघट की'. लेकिन राउत के रहते ठाकरे को आघाड़ी से दूर ले जाना आसान नहीं है.

मुंबई: महाराष्ट्र में डे टू डे की राजनीति चाहे कुछ भी रहे, बयानबाजी चलती रहे लेकिन एक बात साफ है कि आने वाले कल में महाराष्ट्र की राजनीति दो बातों से ही तय होगी. 2024 तक शरद पवार की चलेगी या देवेंद्र फडणवीस की? पवार की चली तो ठाकरे गुट आघाड़ी से फविकॉल के जोड़ की तरह चिपके रहेगा. संजय राउत इन दोनों के बीच फेविकॉल बने रहेंगे और यह जोड़ मजबूत बनाते रहेंगे. अगर फडणवीस के हिसाब से चीजें हुईं तो संभावना यही है कि महाविकास आघाड़ी में अब और सेंध लगे, संजय राउत पर हमले बढ़ें और उद्धव ठाकरे को बीजेपी के करीब लाने की कोशिशें तेज की जाएं.

उद्धव जब तक राउत की सुनेंगे, तब तक ठाकरे गुट को आघाड़ी से हिलाना बीजेपी के लिए मुश्किल है. पवार की सबसे बड़ी ताकत ठाकरे गुट में राउत का वर्चस्व होना है. यह बात अब शायद देवेंद्र फडणवीस अच्छी तरह से समझ चुके हैं. वे यह भी समझ चुके हैं कि बीजेपी और ठाकरे के बीच दूरियां तब तक कम नहीं हो सकती हैं, जब तक संजय राउत मजबूत हैं. यह सिर्फ संयोग नहीं है कि बीजेपी पहले राउत को कम आंकने की या इगनोर करने की नीति पर चला करती थी, अब वही फडणवीस हर दो-तीन दिनों में संजय राउत पर किसी ना किसी तरह से बयान देकर हमले करते हैं. इसलिए होली के मौके पर मुंबई में उत्तर भारतीयों की एक सभा में शामिल होते हुए देवेंद्र फडणवीस ने जो बयान दिए, उस पर जरा गौर फरमाएं.

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‘हमने कहा था कि हम बदला लेंगे, हमने उन्हें माफ किया, यही हमारा बदला है’

फडणवीस ने कहा, ‘ हमने विधानसभा में कहा था कि लोगों ने हमें बहुत परेशान किया है. उन सबसे हम बदला लेंगे. हमने उन सभी लोगों को माफ किया है. यही हमारा बदला है.’ अब इसी के साथ दूसरा बयान यह रहा, ‘हमारे कुछ मित्र हैं. उन्हें कुछ समय पहले किसी ने झूठी बातों की भांग पिलाई. उसके बाद जो कुछ दिनों का खेल चला, वो देख कर मजा आया. कोई गाना गा रहा था, कोई रो रहा था.’

‘मतभेद और मन भेद भुलाकर महाराष्ट्र के हित के लिए काम करें’

फडणवीस के करीबी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने थोड़ा और स्पष्ट होकर बात रखते हुए कहा कि हमारा आह्वान है कि मतभेद और मन भेद भुलाकर आइए मिलकर महाराष्ट्र के लिए काम करें. लेकिन ठाकरे और बीजेपी के साथ आने में सबसे बड़ा रोड़ा संजय राउत हैं, इस बात को होली के ही मौके पर फडणवीस के करीबी नेता मोहित कंबोज ने यह कह कर जता दिया कि होली के दिन मैं संजय राउत से यही उम्मीद करूंगा कि वे अपनी पोपट वाली जुबान को जरा लगाम दें.

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आघाड़ी की एकता कायम रही तो BJP के लिए डगर है मुश्किल, कठिन सफर है

हफ्ते भर पहले महाराष्ट्र के दो विधासभा उपचुनावों का परिणाम सामने आया अब थोड़े ही दिनों में मुंबई, नासिक, ठाणे, पुणे और औरंगाबाद की महानगरपालिकाओं के चुनाव का ऐलान होना है. इन दोनों चुनावों का संदेश साफ है. आघाड़ी की एकता बनी रही तो पुणे के कसबा जैसा बीजेपी का मजबूत किला भी ढह गया. चिंचवड़ में एकता में सेंध लगी और शिवसेना का बागी उम्मीदवार आघाड़ी के अधिकृत उम्मीदवार के सामने खड़ा हो गया तो बीजेपी के लिए सीट निकालना आसान हो गया.

बीजेपी के लिए सिर्फ शिंदे गुट और राज ठाकरे के सहारे महाराष्ट्र में अगला चुनाव जीतने की बात, ‘बहुत कठिन है डगर पनघट की’ लग रहा है. इसलिए फडणवीस के बयानों में ठाकरे गुट के लिए मुलायमियत बढ़ रही है. पर सौ बात की एक बात संजय राउत के चंगुल से ठाकरे को छुड़ाएं कैसे. क्योंकि घुमफिर के वही एक बात जब तक राउत का वर्चस्व है, तब तक ठाकरे और पवार में नजदीकियां बनी रहेंगी. तब तक आघाड़ी की मजबूती कायम रहेगी. तब तक बीजेपी के डगर में बहुत अगर-मगर है…