Satire: कर्नाटक के नतीजों से पहले सचिन ने आलाकमान का मुंह का स्वाद किया कसैला

Satire: कर्नाटक के नतीजों से पहले सचिन ने आलाकमान का मुंह का स्वाद किया कसैला

Satire: मोदीजी भी सोचते हैं कि देश के जननायक होने पर भी वसुंधरा हमारी सुनती नहीं, वहीं गहलोत के सामने किसी को गिनती नहीं. प्लान तो यही था कि अडवाणीजी, और मुरली मनोहरजी का अकेलापन दूर किया जाए.

नई दिल्ली: कांग्रेस आला कमान को समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी और सरकार को राजस्थान में कौन चला रहा है. कर्नाटक चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले राजस्थान कांग्रेस में कतारें बाहर निकल आईं. गहलोत साहब ने भी सोच रखी है, आना तो वैसे भी नहीं अगली बार, लेकिन सियासत सचिन की भी चलने नहीं देनी है. तो सचिन काल करे सो आज करने में अड़ गए हैं. आला कमान खामखां में है परेशान, चुनाव से पहले ही बीजेपी के तंबू-कनात गड़ गए हैं.

जानकार बता रहे हैं कि राजस्थान में पार्टी और सरकार पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाहजी चला रहे हैं. गलत नहीं बोला सचिन पायलट ने गहलोत की नेता सोनिया गांधी नहीं वसुंधरा राजे सिंधिया हैं. तो गहलोत खेमें का भी मानना है कि पायलट के नेता अमित शाह हैं. राहुल गांधी के माउंट आबू आने का इंतज़ार कर रहे सचिन भड़क उठे हैं. राहुल के पहुंचते ही माननीय मुख्यमंत्री के खिलाफ जनसंघर्ष यात्रा का ऐलान कर चुके हैं. कर्नाटक के नतीजे आने से दो दिन पहले पार्टी हाईकमान के मुंह का स्वाद कसैला कर दिया. कहां तो सब मिठाई खाने के इंतज़ार में थे. बाद में मिठाई पहले करो फैसला पायलट ने कह दिया.

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सीएम गहलोत लगातार सचिन पायलट पर बोले रहे है हमला

सचिन का तजुर्बा भी कहता यह है कि पिताजी राजेश पायलट को भी इसी तरह दस जनपथ ने वफादारी के इम्तिहान में हाशिए तक पहुंचा दिया था. अब गहलोत भी सचिन की सियासत को बर्फ से लगा रहे हैं. खुले आम गद्दार,निकम्मा और कोरोना बता रहे हैं. कहने को तो राहुल और प्रियंका धीरज रखने की बात समझा रहे हैं. लेकिन सचिन अनुशासन के नाम पर आत्म सम्मान से समझौता करें भी तो आखिर कब तक. सचिन ने गहलोत को जन्मदिन की बधाई दे डाली तो मुखमंत्रीजी ने भी धौलपुर में पायलट समर्थक विधायकों को नसीहत दे डाली. कहा कि सरकार गिराने के लिए जो पैसे दिए गए थे, वो शाह साहब के पैसे लौटा दो.

इसके बाद तो पायलट समर्थक राशन पानी लेकर अपन नेता पर चढ़ गए. कह रहे हैं कि हमारे चुप रहने से गहलोत के भाव बढ़ गए. शाह के पैसे को लेकर गहलोत को क्यों चिंता है. गद्दी और गहलोत का वही रिश्ता है, जो सरकार बचाए वही फरिश्ता है. गहलोत भी गद्दी पर कुंडली मारे बैठे हैं, कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक को तैयार नहीं हुए. गुजरात के प्रभारी बनाए गए तो वहां पार्टी का हाल क्या किया, कहने की ज़रूरत नहीं. अब सोनिया पर अपनी ही सरकार बचाने का अहसान जता रहे हैं.

वसुंधरा की वजह से ऑपरेशन लोटस की मिली जानकारी बता रहे हैं. जो नहीं बता रहे हैं वो ये कि इसी अहसान के बोझ के तले दबे हैं गहलोत साहब, इसीलिए पिछली सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच नहीं बिठा रहे हैं. वो ये भी नहीं बता रहे हैं कि कहने को भले ही सरकार कांग्रेस की हो, लेकिन गहलोत साहब बीजेपी की मिलीभगत से ही चला रहे हैं. यही वजह है कि पीएम मोदी जब भी राजस्थान आते हैं, ज़रूरत से ज्यादा इज्जत बख्श कर गहलोत को जाते हैं.

बीजेपी की भीतरखाने की जंग में ठीकरा कांग्रेस पर फूटेगा

मोदीजी भी सोचते हैं कि देश के जननायक होने पर भी वसुंधरा हमारी सुनती नहीं, वहीं गहलोत के सामने किसी को गिनती नहीं. प्लान तो यही था कि अडवाणीजी, और मुरली मनोहरजी का अकेलापन दूर किया जाए. शिवराज,रमन सिंह, वसुंधरा राजे समेत पुराने दो-दो- तीन-तीन बार सीएम बनें सियासतदानों को मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया जाए. राष्ट्रहित भी सधेगा, मोदी-शाह की पसंद का कोई नया लड़का सीएम बनेगा. बीजेपी की भीतरखाने की जंग में ठीकरा कांग्रेस पर फूटेगा.

सचिन गहलोत के हमले से तिलमिला गए हैं. कह रहे हैं कि एक तरफ बीजेपी सरकार गिराने का काम कर रही थी तो सरकार बचाने का भी काम कैसे कर सकती है. गहलोत खुलासा बताएं. अपने बयान को खुल कर समझाएं. तो सचिन भी 2020 की बगावत का पूरा राज बताने को तैयार नहीं. गहलोत को अब आस्तीन में छिपे इन राजों की झलक दिखाने से इंकार नहीं.कांग्रेस आलाकमान दखल दे भी तो कैसे. सचिन की तरफ से चाल अमित शाह चल रहे हैं तो वसुंधरा की तरफ से गहलोत मचल रहे हैं.

वसुंधरा राजे और अमित शाह में चल रही है रस्साकशी

शाह और वसुंधरा आमने सामने आने से बच रहे हैं. तोआला कमान सचिन या गहलोत पर अनुशासन की कार्रवाई से हिचक रहे हैं. सिर पर चुनाव है, इसीलिए मुंछमुंडे नेता भी मूंछों पर ताव दे रहे हैं. वहीं कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार पार्टी को जिताने के लिए सारे मतभेद भुला कर एक साथ तस्वीर खिंचवा रहे हैं. लेकिन राजस्थान में दोनों धुरंधर आपस में मिल कर पार्टी को हराने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं.

दरसल रस्साकशी तो वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीच चल रही हैं. नुकसान कांग्रेस भुगत रही है. वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कराएंगे तो गहलोत उनका साथ गंवाएंगे. अभी तो बीजेपी में टिकटों का बंटवारा होना है. सचिन समर्थकों के खिलाफ बीजेपी के मजबूत उम्मीदवार उतारने में फिर महारानी ही काम आएंगी. अगर नाराज हो गईं तो गहलोत के हाथ से जीती हुई बाजी निकल जाएगी. बेटे का राजनीतिक भविष्य भी चौपट होगा. वसुंधरा भी चाहती है कि राजस्थान में वहीं करेंगी बीजेपी की सरकार की अगुआई.

वरना गहलोत में है कौन सी बुराई. वैसे भी पीएम मोदी की उनसे पूरी सहानुभूति है. अडानीजी भी खजाना खोलने को तैयार हैं. ऐसे में सचिन को राहुल गांधी का समर्थन हासिल भी हो तो गहलोत के लिए ये चुनाव आर-पार है. उन्होंने वसुंधरा राजे की तारीफ कर एक तीर से दो निशाने साधे. अमित शाह को बता दिया कि ऑपरेशन लोटस के वो भी राजदार हैं. तो सचिन पर फिर एक बार तोहमद लगा दी. समझा जा रहा था कि कर्नाटक से निपटने पर आला कमान निपटाएगा राजस्थान. सो उन्हें भी चेता दिया. अहसास करा दिया बर्र के छत्ते में हाथ डालने का अंजाम. सचिन की दिक्कत ये है कि अब वो शाह के मुसाहिब बन कर इतरा नहीं सकते. अधूरी बगावत के बाद अब गहलोत को आमने-सामने की लड़ाई में हरा नहीं सकते.

वसुंधरा की सरकार नहीं आनी चाहिए

वसुंधरा के चलते बीजेपी में शामिल होना अब भी आसान नहीं है. सिर पर चुनाव हैं सो गहलोत सरकार गिरा कर जाने पर भी वहां पूछ नहीं है. लिहाजा कांग्रेस आला कमान पर दबाव बनाने की पूरी कोशिश है. क्योंकि बिना मांगे तो मां भी दूध नहीं पिलाती. कम से कम अपने लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलवा सकेंगे, संगठन में भी ज्यादा पदों की मांग उठा सकेंगे.

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर कांग्रेस को जिलाने में जुटे हैं तो सचिन जनसंघर्ष की आड़ में कांग्रेस तोड़ो यात्रा का ऐलान कर चुके हैं. आला कमान भले ही हो परेशान लेकिन इसे नूरा कुश्ती बताया जा रहा है. कहते हैं कि सरकार और विपक्ष दोनों का रोल जानबूझ कर अदा किया जा रहा है. बीजेपी को सुर्खियों का टोटा पड़ने लगा है. आधी सुर्खियां तो जादूगर पैसे के जादू से खरीदने लगा है. तो बची सचिन की सुर्खियों के लिए दिल्ली से भुगतान हो रहा है. शाह साहेब की कोशिश है कि वसुंधरा की सरकार नहीं आनी चाहिए. किसी की भी रहे लेकिन सरकार कांग्रेस की भी नहीं बननी चाहिए. लिहाजा आम आदमी पार्टी को भी मरुस्थल में मृगमरीचिका सताने लगी है. सचिन पायलट में उम्मीदों की रोशनी नज़र आने लगी हैं. कहते हैं कि दिल्ली दरबार के पास दोनों कठपुतलियों की जान है. इसी वजह से कांग्रेस आला कमान परेशान है.

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