शहीद होने से एक दिन पहले की थी कैप्टन अंशुमान ने 50 साल की प्लानिंग, पत्नी ने रो-रोकर सुनाया दर्द
कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी स्मृति ने बताया कि शहादत की एक रात पहले यानि 18 जुलाई 2023 को स्मृति और अंशुमान की काफी देर तक बात हुई. ये महज सिर्फ बातें हीं नहीं थीं, अंशुमान और स्मृति के वो सपने थे, जिसे आने वाले 50 सालों में वो पूरा करते हुए देखना चाहते थे.
शहीद कैप्टन अंशुमान और पत्नी स्मृति की तस्वीरें सोशल मीडिया पर देख हर किसी भावना अंदर ही अंदर शोर मचाने के लिए काफी है. कॉलेज का प्यार, शादी और फिर एक पल में सबकुछ बिखरता हुआ देख पाना यूं आसान नहीं होता. चेहरे पर तमाम भावों समेटने की कोशिश करते हुए, जब पति के शहादत का सम्मान लेने स्मृति राष्ट्रपति भवन में अलंकरण समारोह 2024 में पहुंचीं तो हर किसी की आंखें नम थीं. शायद इस दर्द और तकलीफ को तस्वीरों से देखता हर वो शख्स महसूस कर पा रहा था.
कैप्टन से प्यार फिर 8 सालों के बाद शादी की कहानी बताते हुए स्मृति के चेहरे पर मुस्कान थी. शायद वो मुस्कान उसी दौर को बयां कर रही थी, जब वो दोनों साथ और खुश थे. उन्होंने बातों में स्वीकार किया कि कॉलेज के पहले दिन दोनों का मिलना लव ऐट फर्स्ट साइट था. दोनों ही इंजीनियरिंग कॉलेज में मिले, लेकिन बाद में कैप्टन ने मेडिकल में भी सेलेक्शन हो जाने कारण वहां एडमीशन ले लिया, फिर 8 साल बाद दोनों ने शादी कर ली.
शहादत की एक रात पहले बुने थे सपने
शादी के दो महीने के भीतर ही आर्मी मेडिकल कोर के कैप्टन अंशुमान सिंह की पोस्टिंग सियाचिन में हो गई. स्मृति ने बताया कि पोस्टिंग के दौरान ही कैप्टन और स्मृति की 18 जुलाई को आगे के 50 सालों के बारे में खूब सारी बाते हुईं. अगले 50 सालों की उनकी जिंदगी कैसी हो सकती है? दोनों ने अपने खूबसूरत आशियाना, बच्चों से लेकर हर उस पल के बातों ही बातों में सपने संजोए, जो वो करना चाहते थे. लेकिन अगली सुबह आई एक कॉल ने सपनों के उस सुंदर महल को ढहा दिया. 7-8 घंटे तक तो ऐसा हुआ जैसे मानों उनके पैरों तले जमीन खिसक गई हो. लेकिन कहते हैं न कि नियति को जो मंजूर है वो होकर ही रहता है.
नम आंखों में स्मृति ने बताया कि उन्हें अब तक यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि कैप्टन उनके साथ अब नहीं हैं, लेकिन जब कैप्टन अंशुमान के मरणोपरांत कीर्ति चक्र सम्मानित किया गया तब थोड़ा यकीन इस ओर बढ़ रहा कि हां वो अब सचमुच उनके साथ नहीं रहे.
क्या हुआ था सियाचिन में उस रात?
सियाचिन में हाड़ कपा देने वाली ठंड से सुरक्षा के लिए टैंकरों और बंकरों में आग जलाया गया था. कैप्टन अंशुमान सिंह पंजाब रेजिमेंट की 26वीं बटालियन के मेडिकल कोर के तौर पर तैनात थे. 19 जुलाई वो तारीख जब बंकर में आग लग गई. चल रही तेज सर्द हवाओं के कारण आग की लपटें बंकर में और बढ़ती चली गईं. कैप्टन ने तीन परिवारों की सुरक्षा के लिए अपनी जान की परवाह को दरकिनार कर दिया और आग में कूदकर उन सभी को बचा लिया. इस घटना में कैप्टन बुरी तरह झुलस गए. गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.
मेरी मौत साधारण नहीं होगी स्मृति
पत्नी से बातों में कैप्टन अंशुमान कहा करते थे, मैं यूं ही नहीं मर जाऊंगा और न ही इस दुनिया से मेरी विदाई सामान्य होगी. स्मृति ने कहा कि मानों अंशुमान की बात सच हो गई. उन्होंने तीन आर्मी परिवार को सुरक्षित कर लिया. अपनी जान देकर उन्होंने बंकर से दूसरे सैनिकों को सुरक्षित बाहर निकाला. धीरे-धीरे नियति का ये फैसला अब स्मृति स्वीकार रही हैं, और उन्हें कैप्टन की शहादत पर गर्व है.