राम मंदिर-ट्रिपल तलाक मामले में जज थे अब्दुल नजीर, बने आंध्रा के राज्यपाल

राम मंदिर-ट्रिपल तलाक मामले में जज थे अब्दुल नजीर, बने आंध्रा के राज्यपाल

जस्टिस नज़ीर पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ से तीसरे न्यायाधीश हैं जिन्होंने सरकार से रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति प्रदान की है. पूर्व CJI रंजन गोगोई, जिन्होंने खंडपीठ का नेतृत्व किया था,इनको राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था

राष्ट्रपति ने आज 13 राज्यों के राज्यपालों को नियुक्त और फेरबदल किया हैं. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा भी मंजूर कर लिया गया है. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है. एक और नाम सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस अब्दुल नजीर का है. इनको आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. जस्टिस नजीर (Justice Abdul Nazeer) ने सुप्रीम कोर्ट में रहते राम मंदिर, ट्रिपल तलाक जैसे अहम मामलों की सुनवाई की है. राम मंदिर मामले को सुलझाने के लिए बनी पांच जजों की पीठ में पूर्व जस्टिस नज़ीर भी थे.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर उस बेंच का हिस्सा थे, जिन्होंने अयोध्या भूमि विवाद और तीन तलाक चुनौती जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों की सुनवाई की थी. 4 जनवरी को उनके रिटायर होने के ठीक पांच सप्ताह बाद नामांकन आता है. जस्टिस नज़ीर पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ से तीसरे न्यायाधीश हैं जिन्होंने सरकार से रिटायरमेंट के बाद नियुक्ति प्रदान की है. पूर्व CJI रंजन गोगोई, जिन्होंने खंडपीठ का नेतृत्व किया था,इनको राज्यसभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था, जस्टिस अशोक भूषण को उनके रिटायरमेंट के चार महीने बाद 2021 में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.

अयोध्या मामले में पांच जजों की बेंच में जस्टिस नजीर

जस्टिस नजीर का जन्म 5 जनवरी, 1958 को हुआ था और उन्होंने 18 फरवरी, 1983 को वकालत पेशे की शुरुआत की थी. 17 फरवरी, 2017 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया था. अल्पसंख्यक समुदाय के एक जस्टिस को शामिल करने और बेंच में विविधता सुनिश्चित करने के कदम के रूप में कोलेजियम से उनकी सीधी पदोन्नति को उचित ठहराया गया था.

जस्टिस नज़ीर के प्रमोशन से कई जज ख़फा

हालांकि, न्यायमूर्ति नज़ीर ने कई वरिष्ठ न्यायाधीशों को पछाड़ दिया और इस फैसले ने कानूनी हलकों में भौंहें चढ़ा दीं. शपथ लेने से एक दिन पहले कर्नाटक हाई कोर्ट के उनके वरिष्ठ सहयोगी, न्यायमूर्ति एचजी रमेश ने मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनने के कदम को ठुकरा दिया. न्यायमूर्ति रमेश ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर को एक पत्र में कहा, “भारत का संविधान उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में धर्म या जाति के आधार पर आरक्षण प्रदान नहीं करता है.

कई महत्वपूर्ण केसों का हिस्सा रहे जस्टिस नजीर

सुप्रीम कोर्ट में अपने पांच साल और 10 महीने के कार्यकाल में जस्टिस नज़ीर कई बेंचों का हिस्सा थे जिन्होंने महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की और फैसला किया. अयोध्या के फैसले में जस्टिस नज़ीर पांच-न्यायाधीशों के सर्वसम्मत फैसले का हिस्सा थे, जिसने हिंदुओं के पक्ष में विवाद का फैसला किया था. उन्होंने पहले 4: 1 के बहुमत के विचार के खिलाफ असहमति जताई थी, जिसने इस मुद्दे को एक बड़ी बेंच को संदर्भित करने से इनकार कर दिया था.