ऑस्ट्रेलियाई पोस्टमैन जो बना क्रिकेटर, दिल्ली में किया टेस्ट डेब्यू, फिर…
ऑस्ट्रेलिया के इस बेहतरीन स्पिनर ने भारत के खिलाफ दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में टेस्ट डेब्यू किया था और इस गेंदबाज ने अपने करियर में भारत के खिलाफ ही सबसे ज्यादा टेस्ट मैच खेले.
क्रिकेट की दुनिया में चाइनामैन गेंदबाज काफी कम रहे हैं. चाइनामैन गेंदबाज यानी बाएं हाथ के कलाई के स्पिनर. इन गिने-चुने स्पिनरों में सबसे मशहूर नामों में से एक हैं ऑस्ट्रेलिया के लिए ब्रैड हॉग. ये नाम काफी मशहूर रहा है क्योंकि इस गेंदबाज को पकड़ना अच्छे से अच्छे बल्लेबाजों के बस का नहीं था. इस गेंदबाज की गुगली खतरनाक थी तो फ्लिपर उससे भी ज्यादा कातिलाना. बल्लेबाज अधिकतर मौकों पर हक्का-बक्का रह जाता था. लेकिन क्या आपको पता है कि अपनी उंगलियों पर दुनिया भर के बल्लेबाजों को नचाने वाला ये गेंदबाज पहले बल्लेबाज था? ब्रैड हॉग का आज जन्मदिन हैं. उनका जन्म छह फरवरी 1971 में हुआ था.
इस बल्लेबाज ने अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत एक बाएं हाथ के बल्लेबाज के तौर पर की थी. वह वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के लिए घरेलू क्रिकेट खेल रहे थे. इसी दौरान एक दिन नेट्स पर अभ्यास करते हुए उन्होंने गेंदबाजी की और टीम के कोच टोनी मान इससे काफी प्रभावित हुए. यहां से हॉग के एक गेंदबाज बनने की शुरुआत हुई और फिर वह विश्व पटल पर बेहतरीन चाइनामैन गेंदबाज के रूप में जाने गए.
डेब्यू में रहे फेल
हॉग ने ऑस्ट्रेलिया के लिए अपना पहला इंटरनेशनल मैच कोलंबो में 26 अगस्त 1996 में श्रीलंका के खिलाफ खेला. इसके दो महीने बाद उन्होंने टेस्ट में डेब्यू किया लेकिन इस बार जमीन भारत की थी और मैदान दिल्ली का फिरोजशाह कोटला था. भारत के खिलाफ खेले गए इस मैच में ये चाइनामैन गेंदबाज प्रभाव नहीं छोड़ सका. पहली पारी में उन्होंने 17 ओवरों में तीन मेडन के साथ 69 रन दिए और एक विकेट हासिल किया. दूसरी पारी में उनकी गेंदबाजी नहीं आई. भारत ने ये मैच सात विकेट से अपने नाम किया. ये हॉग का भारत में पहला और आखिरी टेस्ट मैच साबित हुआ. वह दोबार भारतीय जमीन पर टेस्ट मैच नहीं खेल सके. उन्होंने हालांकि सबसे ज्यादा टेस्ट मैच भारत के खिलाफ ही खेले. हॉग का टेस्ट करियर सिर्फ सात मैचों का रहा जिसमें से उन्होंने चार मैच भारत के खिलाफ खेले.दिल्ली के अलावा उन्होंने अपने टेस्ट करियर के आखिरी तीन मैच भी भारत के खिलाफ खेले और ये मैच उन्होंने क्रमशः मेलबर्न, सिडनी, एडिलेड में खेले. सात टेस्ट मैचों में उन्होंने 17 विकेट लिए.
जीते दो विश्व कप
हॉग के बारे में ये भी कहा जाता है कि वह स्टुअर्ट मैक्गिल की तरह शेन वॉर्न की छांव में दबकर रहे गए. शेन वॉर्न के कारण ही हालांकि उन्हें विश्व विजेता बनने का मौका मिला था. वॉर्न 2003 में साउथ अफ्रीका में खेले गए विश्व कप में बैन के कारण नहीं खेले थे. इसी कारण हॉग को मौका मिला. वह फाइनल मैच भी खेले और विकेट लेने में सफल रहे. वॉर्न के बाद तो हॉग ने ऑस्ट्रेलिया की सीमित ओवरों की टीम में अपनी जगह पक्की कर ली और वह 2007 में भी वेस्टइंडीज में ऑस्ट्रेलिया द्वारा जीते गए विश्व कप का हिस्सा रहे.
टेस्ट से ज्यादा हॉग ने वनडे में नाम कमाया. उन्होंने अपने देश के लिए 123 वनडे मैच खेले और 156 विकेट लिए. उन्होंने 2007-08 में संन्यास लेने का ऐलान कर दिया था लेकिन उन्होंने वापसी की. इंटरनेशनल क्रिकेट में तो वह फिर इसके बाद ज्यादा नहीं खेल पाए लेकिन टी20 लीगों में उन्होंने कमाल दिखाया. उनका करियर 47 साल की उम्र तक चला. इस बीच उन्होंने कॉमेंट्री भी की.
पोस्टमैन भी थे हॉग
हॉग पहले एक पोस्टमैन का काम करते थे. ईएसपीएनक्रिकइंफो वेबसाइट पर हॉग की प्रोफाइल में उनके हवाले से लिखा है, “मैं अपने राउंड फॉर्मूल वन ड्राइवर की तरह करता हूं.” द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2003 विश्व कप के लिए जब उन्हें वॉर्न की जगह चुना गया था तब उन्होंने कहा था, “मैं अपनी दिन की नौकरी नहीं छोडूंगा, चाहे कुछ भी हो जाए. ऑस्ट्रेलियन पोस्टल सर्विस ने मेरी काफी मदद की है. उन्होंने मुझे स्टेट मैचेस के लिए छुट्टियां दी और अभ्यास के मुताबिक मेरी शिफ्ट रखी.”