एक रात 140 पासपोर्ट, कई दिन नहाया नहीं… तुर्की की मदद के लिए NDRF वीरों ने ऐसे गुजारे दिन

एक रात 140 पासपोर्ट, कई दिन नहाया नहीं… तुर्की की मदद के लिए NDRF वीरों ने ऐसे गुजारे दिन

हिंदुस्तान की फौज जहां पर कदम बढ़ा देती है वहां पर लोगों की उम्मीद जाग जाती है. एनडीआरएफ टीम ने जो किस्से सुनाएं वो आंसू छलका देने वाले हैं. किसी ने अपने दुधमुंहे बच्चों को छोड़ा तो किसी ने अपने बूढ़े मां-बाप को. सब निकल पड़े सिर्फ तुर्की की मदद को...

हिंदुस्तान का तिरंगा विश्व के किसी भी कोने में लहराता है वहां एक उम्मीद जागती है. तुर्की में भयंकर तबाही के बीच जब भारतीय रेस्क्यू यूनिट (NDRF) टीम पहुंची तो वहां के लोगों का भी भरोसा जाग गया. उनको लगने लगा कि अब ये वीर हमको जरूर बचा लेंगे. पूरी रेस्क्यू टीम भारत वापस आ चुकी है. पीएम मोदी ने उनसे मुलाकात की. स दौरान एनडीआरएफ वीरों ने जो कहानियां सुनाई वो गर्व से सीना चौड़ा करती हैं. वो कहानियां पुश्ते याद रखेंगी. रातों-रात 140 से अधिक पासपोर्ट बने. अपने घर में बताने के लिए कुछ वक्त मिला. रेस्क्यू टीम में शामिल एक महिला अपने 18 महीने के जुड़वा बच्चों को छोड़कर निकल गई. ये बताता है कि भारत वो देश है जो मानवता के लिए हमेशा सबसे आगे खड़ा मिलता है.

रेस्क्यू यूनिट भारत लौट आई मगर उनमे से अभी भी कुछ को लग रहा है कि शायद हम वहां होते तो और लोगों की जान बचा सकते थे. कुछ लोग ऐसे थे अभी भी वहां की दशा को भूल नहीं पा रहे. लेकिन उनको तसल्ली है कि जितने भी दिन वो वहां रहे दिन-रात सिर्फ लोगों को बचाने में निकाल दिए. कॉन्सटेबल सुषमा 18 महीने के जुड़वा बच्चों को घर पर ही छोड़कर निकल गई. सैकड़ों कागजों को रातों-रात तैयार किया गया. रातों-रात 140 से अधिक पासपोर्ट तैयार करना भी बड़ा टास्क था. मगर एक टीम के तरह सभी ने अपना-अपना रोल निभाया. रेस्क्यू टीम 10 दिनों तक नहा नहीं पाए. भूकंप प्रभावित तुर्की में एनडीआरएफ का मिशन चुनौतियों से भरा था. वो चुनौतियां थीं भावनात्मक, पेशेवर और व्यक्तिगत.

7 फरवरी से शुरू हुआ ‘ऑपरेशन दोस्त’

भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में 152 सदस्यीय तीन राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) टीम और छह स्पेशल डॉग्स तुर्की में पहुंचते ही ऑपरेशन में लग गए. NDRF टीम वहां के लोगों से भावनात्मक रिश्ते से जुड़े. किसी ने अपने सीने से लगाया तो किसी ने दूसरे के आंसू पोंछे. उन्होंने कहा कि उन्होंने उन लोगों के साथ एक बंधन विकसित किया, जिनकी उन्होंने अपने सबसे कमजोर समय में मदद की. टीम ने 7 फरवरी को अपना ऑपरेशन शुरू किया था, जिसमें दो युवा लड़कियों को जिंदा बचाया गया था और पिछले हफ्ते भारत लौटने से पहले मलबे से 85 शव निकाले गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार ने 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने सरकारी आवास पर उनका अभिनंदन किया.

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जुड़वा बच्चों को ससुराल में छोड़ा और निकल गई मदद के लिए

सेकेंड-इन-कमांड (ऑपरेशन) रैंक के अधिकारी राकेश रंजन ने कहा, “तुर्की ने हमारी टीमों को आगमन पर वीजा दिया और जैसे ही हम वहां उतरे, हमें नूरदगी (गजियांटेप प्रांत) और हटे में तैनात कर दिया गया. कॉन्स्टेबल सुषमा यादव (32) उन पांच महिला बचावकर्मियों में शामिल थीं, जिन्हें पहली बार किसी विदेशी आपदा से निपटने के अभियान में भेजा गया था. इसका मतलब अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को पीछे छोड़ना था. लेकिन उन्होंने एक बार भी इस बारे में नहीं सोचा और तुर्की के लिए रवाना हो गईं. उन्होंने कहा कि क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?”

मैं और एक अन्य पुरुष सहकर्मी एनडीआरएफ टीम के दो पैरामेडिक्स थे. हमारा काम हमारे बचावकर्मियों को सुरक्षित, स्वस्थ और पोषित रखना था ताकि वे शून्य से नीचे के तापमान में बीमार हुए बिना अपना काम कर सकें जो शून्य से 5 डिग्री नीचे था.

मैंने अपने जुड़वां बच्चों को अपने ससुराल वालों के पास छोड़ दिया था और यह पहली बार था जब मैंने उन्हें इतने लंबे समय के लिए छोड़ा था. लेकिन ऑपरेशन के लिए स्वेच्छा से जाने में कोई कठिनाई नहीं हुई- सुषमा यादव

सब-इंस्पेक्टर शिवानी अग्रवाल ने कहा कि ऑपरेशन के लिए जाते समय उसके माता-पिता को कोई समस्या नहीं थी, लेकिन उसकी कुशलक्षेम जानने के लिए चैट की लालसा करना मुश्किल था.

घरवालों को एक फोन का इंतजार…

शिवानी अग्रवाल ने कहा कि भारत और तुर्की के बीच लगभग 2.5 घंटे का समय अंतराल है. इसलिए जब तक मैं फ्री हुई और घर फोन किया तब तक रात के 11:30 बज चुके थे. इसके बावजूद घरवालों ने पहली घंटी में फोन उठा लिया जैसे कि वो बस फोन में मेरी राह ही देख रहे हों. आईटीबीपी से 2020 में बल में शामिल होने वाली कांस्टेबल रेखा ने कहा कि वे आपदा की चपेट में आई महिलाओं तक पहुंचीं, जबकि उन्होंने बचाव दल के लिए रसद तैयार करने में मदद की.

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शाकाहारी भोजन की मदद

डिप्टी कमांडेंट दीपक ने कहा, “अहमद को किसी तरह पता चल गया कि मैं शाकाहारी हूं. कई दिनों तक, वह मेरी तैनाती की जगह का पीछा करता रहा, जहां भी मैं नूरदगी में काम कर रहा था और चुपके से सेब या टमाटर जैसी कुछ भी शाकाहारी सौंप दी। उसने काली मिर्च लगा दी। इसे स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक या स्थानीय मसालों के साथ।” दीपक ने कहा, “उसने मुझे गले लगाया और मुझे बिरादर कहा। यह ऐसी चीज है जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा।”