अजब-गजब बिहार! 5 साल पहले मांगी गई थी जानकारी, सूचना आयोग ने अब दिया जवाब
बिहार में सूचना आयोग का काम भी अजब-गजब ही है. बक्सर के रहने वाले एक व्यक्ति ने पांच साल पहले सूचना आयोग से एक जानकारी मांगी थी, जिसका जवाब आयोग के द्वारा अब दिया गया है. वहीं सूचना आयोग के जवाब से व्यक्ति भी हैरान है.
बिहार के राज्य सूचना आयोग से गजब की खबर है. राज्य सूचना आयोग से पांच साल पहले सूचना मांगी गई थी, जिसका जवाब अब पांच साल बाद दिया गया है. इस सूचना को लेकर जिस शख्स ने आरटीआई लगाई थी, वह भी अब सूचना आयोग के इस जवाब के बाद हैरान है. सूचना भी यही दी गई है कि आरटीआई द्वारा मांगे गए मामले पर आयोग के स्तर पर अब सुनवाई की जाएगी. यानि मुकम्मल जानकारी नहीं दी गई है. प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी गई है.
दरअसल, बक्सर के रहने वाले शिवप्रकाश राय ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकारी यात्रा से जुड़ी सूचना के साथ ही चार अन्य अलग-अलग सूचनाओं पर राज्य सूचना आयोग से जानकारी मांगी थी. इसमें उन्होंने 2005 से 2020 तक सीएम नीतीश कुमार के द्वारा की गई सरकारी यात्रा में हुए खर्च की जानकारी मांगी थी. इसके अलावा राज्य सूचना आयोग में विभिन्न पदों पर स्वीकृत कार्यबल और रिक्त पदों की संख्या, सूचना आयोग में पत्रकारिता के क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले किस प्रतिनिधि को रखा गया है?
चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वीसी पर व्यय की गई राशि की जानकारी मांगी गई थी. शिवप्रकाश बताते हैं कि इन सभी सूचनाओं को देने के लिए आरटीआई के माध्यम से उन्होंने मार्च 2020 में आवेदन लगाया था. इसके बारे में राज्य सूचना आयोग की तरफ से यह कहा गया है कि इस संबंध में अब सुनवाई की जाएगी.
अब दिया गया है जवाब
शिव प्रकाश बताते हैं कि करीब पांच साल के बाद राज्य सूचना आयोग की तरफ से जानकारी दी गई कि उनके द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई दो सूचनाओं की सुनवाई दिसंबर में और दो की सुनवाई जनवरी माह के अंत में होगी. इनमें दिसंबर महीने में सीएम नीतीश कुमार की यात्रा और सूचना आयोग में स्वीकृत कार्यबल और रिक्त कार्यबल की सुनवाई की जानकारी शामिल थी.
इसमें भी दिसंबर महीने में जिन सूचनाओं के बारे में सुनवाई की बात कही गई थी, उनमें दो में से एक ही सूचना के बारे में सुनवाई होगी. दूसरी सूचना की सुनवाई कब होगी, इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई है. वहीं जनवरी महीने में सूचना जनसंपर्क विभाग में मीडिया के प्रतिनिधि के लिए किसकी संस्तुति की गई थी और चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वीसी पर व्यय की गई राशि की जानकारी वाली सूचना पर सुनवाई की जानकारी दी गई.
एक महीने में देनी होती है सूचना
शिवप्रकाश कहते हैं कि सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत 30 दिनों में सूचना देनी होती है, नहीं तो प्रथम अपील होगा. इसके 70 दिन बाद अपीलीय अधिकारी भी सूचना नहीं दिला पाए तो मामला राज्य सूचना आयोग में चला जाता है. मेरी सूचना के मामले में भी यही हुआ है. पांच वर्ष होने जा रहा है. इसके लिए गठित शीर्ष आयोग ही इस कानून के बिंदुओं को अनदेखा कर रहा है.
आयोग के स्तर से न सूचना मिल पा रही है और न ही दोषी अधिकारी दंडित हो रहे हैं. वह आरोप लगाते हुए कहते हैं कि सरकार ने जान-बूझकर वैसे लोगों को आयुक्त बनाया है, जो इस कानून को खत्म कर दें. प्रति वर्ष करीब 10 करोड़ रुपए का खर्च इस आयोग के संचालन में होता है. अगर सही वक्त पर सूचना ही नहीं मिले तो ऐसे आयोग को बंद ही कर देना चाहिए. इससे जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा तो बच जाता.
आयोग की आगे की कार्रवाई का इंतजार
शिवप्रकाश बताते हैं कि इनमें एक मामला, सूचना आयोग में स्वीकृत कार्यबल और रिक्त कार्यबल की सुनवाई हुई, लेकिन सीएम नीतीश कुमार की यात्रा की जानकारी नहीं दी गई. वह कहते हैं कि सूचना कमीश्नर ने उनसे ही सवाल किया है कि आप बताएं कि प्रावधान क्या है, फंड कैसे मिलता है?
शिव प्रकाश कहते हैं कि पहले सूचना आयोग में डबल बेंच, ट्रिपल बेंच भी हुआ करता था. उद्देश्य यही होता था कि अगर किसी सूचना से आवेदक संतुष्ट नहीं है तो वह मुख्य सूचना आयुक्त उसकी सुनवाई करे या फिर डबल या ट्रिपल बेंच को बनाकर के सुनवाई करे. पहले यह प्रक्रिया थी. अगर सुनवाई के बाद जो जवाब मुझे मिला, वह संतोषजनक रहा तो ठीक है नहीं तो फिर मैं आगे की प्रक्रिया का सहारा लूंगा.