रामकृपाल के बाद श्याम रजक का भी RJD से मोहभंग, क्या लालू युग के अंत की ओर इशारा तो नहीं?

रामकृपाल के बाद श्याम रजक का भी RJD से मोहभंग, क्या लालू युग के अंत की ओर इशारा तो नहीं?

बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सियासत करवट बदलने लगी है. विपक्षी पार्टी आरजेडी में उथल-पुथल मची हुई है. रामकृपाल यादव के बाद अब श्याम रजक का भी आरजेडी से मोहभंग हो गया है. कई और भी ऐसे नेता हैं जिनकी गिनती लालू यादव के करीबियों में होती थी, लेकिन मौजूदा वक्त में वो किनारे लग चुके हैं.

आरजेडी से श्याम रजक के इस्तीफे के बाद लालू युग के समाप्ति की चर्चा जोरों पर है. कहा जा रहा है कि पहले रामकृपाल यादव और अब श्याम रजक का आरजेडी से मोहभंग होना इस बात की ओर इशारा है कि लालू प्रसाद का युग अब समाप्ति की ओर है. वैसे कुछ सीनियर नेता अभी भी पार्टी में मौजूद हैं जिनमें शिवानंद तिवारी, अब्दुल बारी सिद्दीकी, मोनाजिर हसन और जगदानंद सिंह शामिल हैं. इन नेताओं में जगदानंद सिंह को छोड़ बाकी नेता आरजेडी के फलक पर उतना एक्टिव नहीं दिखते हैं. इसलिए अब ये चर्चा उठने लगी है कि लालू प्रसाद का समय अब जा रहा है. इसलिए राम श्याम के अलावा कई और नेताओं पर भी खतरे की तलवार लटकने लगी है.

पटना में लालू प्रसाद के साथ साये की तरह दिखने वाले रामकृपाल यादव साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही लालू प्रसाद से किनारा कर चुके हैं. श्याम रजक दूसरी बार आरजेडी को छोड़कर जेडीयू की ओर जाने का मन बना चुके हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि बात-बात में अपने विरोधियों को घेरने वाले शिवानंद तिवारी इन दिनों चुप हैं, जो उनके स्वभाव के विपरीत है. इसलिए शिवानंद तिवारी सरीखे नेता का आरजेडी के मसले पर चुप्पी साधे रखना इस बात की ओर इशारा है कि शिवानंद तिवारी भी पार्टी में हाशिए पर धकेले जा चुके हैं.शिवानंद तिवारी का पार्टी के कोर ग्रुप से उनका रिश्ता अब दूर-दूर तक नहीं रहा है.

मोनाजिर हसन और अब्दुल बारी शिद्दकी का भी यही हाल

यही हाल मोनाजिर हसन का भी है जिन्हें पार्टी में उपाध्यक्ष तो बनाया गया है, लेकिन आरजेडी ने उन्हें टिकट देकर इस बार लोकसभा चुनाव में हीं उतारा है. मोनाजिर हसन बेगूसराय से चुनाव लड़ने के इच्छुक थे, लेकिन आरजेडी ने बेगूसराय लोकसभा सीट कम्युनिस्ट पार्टी की झोली में डाल दिया था. वहीं, अब्दुल बारी शिद्दकी एमएलसी तो बनाए गए हैं, लेकिन उनका जमाना भी हाथ से रेत की तरह फिसलता दिख रहा है.

जाहिर है जगदानंद सिंह प्रदेश के अध्यक्ष हैं और लालू प्रसाद के साथ तेजस्वी यादव भी उन्हें वफादार साथी जानकर तवज्जो दे रहे हैं. महागठबंधन की सरकार में जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह को कृषि मंत्री बनाकर यंग ब्रिगेड को प्रमोट करने की कोशिश आरजेडी में की गई थी. लालू प्रसाद वैसे तेजस्वी यादव को आरजेडी में जान फूंकने के लिए सलाह देते रहते हैं, लेकिन पार्टी में तेजस्वी युग चरम पर है, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है. इसलिए जय प्रकाश यादव सरीखे नेता जो बांका से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं उनके लिए आरजेडी में कोई बड़ी जगह पाना आसान नहीं दिखता है.

श्याम रजक क्यों हुई छुट्टी?

श्याम रजक धोबी समाज से आते हैं और लोकसभा चुनाव में जमुई या समस्तीपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे. आरजेडी ने जमुई से यंग नेता अर्चना रविदास को मैदान में उतारी. वहीं समस्तीपुर सीट कांग्रेस की झोली में डालकर महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी को टिकट दिलाने में अहम भूमिका निभाई. जाहिर है श्याम रजक को इस बात की पीड़ा हुई और पार्टी में अलग थलग पड़ कर उन्होंने आरजेडी को गुड बाय कहने में ही अपनी भलाई समझी. जानकार बताते हैं कि श्याम रजक को भरोसा हो चला था कि विधानसभा चुनाव में भी आरजेडी उनके साथ न्याय करने नहीं जा रही है.

इसलिए 2025 के चुनाव को देखते हुए उन्होंने एक बार फिर नया ठिकाना ढ़ूंढ़ने का मन बना लिया है. वैसे श्याम रजक का दर्द साल 2022 में भी बाहर आया था जब दिल्ली में राष्ट्रीय अधिवेशन के दरमियान तेजप्रताप के व्यवहार को लेकर उन्होंने हैरान करने वाली टिप्पणियां कर दी थी. तेजप्रताप के व्यवहार से जगदानंद सिंह भी दुखी रहा करते थे. लालू प्रसाद के स्वस्थ होते जगदानंद सिंह को मना लिया गया और तीन महीने तक पार्टी के कामकाज से दूर रहने वाले वापस पार्टी के लिए काम करने वापस आ गए.

पुराने नेताओं के लिए पार्टी में जगह सिकुड़ने लगी है

जाहिर है बूढ़े और पुराने नेताओं के लिए पार्टी में जगह सिकुड़ने लगी है. इसलिए पार्टी में नए नेताओं के तौर पर कई नए चेहरे को आजमाया जाने लगा है जिन पर तेजस्वी यादव बेइंतहा भरोसा कर रहे हैं. इन नेताओं में अभय कुशवाहा, मनोज झा, संजय यादव, आलोक मेहता, कारी शोएब, शिवचंद्र राम सरीखे नेता शामिल हैं जो आरजेडी में ज्यादा ताकतवर समझे जा रहे हैं. दलित चेहरे के तौर पर शिवचंद्र राम, अर्चना रविदास सरीखे नेताओं को पार्टी आजमा कर नए नेताओं की पौध तैयार करने में जुट गई है. इसलिए आरजेडी के एक वर्ग का मानना है कि तेजस्वी यादव अब मेहनतकश और जुझारू नेताओं की टीम बनाने पर जोर दे रहे हैं. ऐसे में पुराने नेताओं का साइड होना स्वाभाविक है.

आरजेडी अपने विस्तार के लिए नई जाति को जोड़ने के पक्ष में?

आरजेडी माइ से बढ़कर माइक तैयार करने में बहुत हद तक लोकसभा चुनाव में कामयाब दिखी है. मुस्लिम और यादव को कोर वोटर समझने वाली आरजेडी कुशवाहा पर डोरे डालने का भरपूर प्रयास कर रही है. इसलिए औरंगाबाद से जीतने वाले अभय कुशवाहा को संसदीय दल का नेता चुना गया है, लेकिन अपर कास्ट पर भी नजरें गड़ाए हुए है. इसलिए आरजेडी अब ए टू जेड की पार्टी बनने का लगातार प्रयास कर रही है. कहा जा रहा है कि इस बार विधानसभा के चुनाव में आरजेडी अपर कास्ट के उम्मीदवारों को भी खूब टिकट देगी.

इसलिए बक्सर से सुधाकर सिंह, वैशाली से मुन्ना शुक्ला सरीखे नेता को आरजेडी मैदान में उतारकर लोकसभा चुनाव के दरमियान अपर कास्ट के बीच पॉजिटिव सिग्नल देने का प्रयास करती दिखी है. लेकिन आरजेडी का ये प्रयास मुंगेर, बेगूसराय में उल्टा पड़ता दिखा है, जहां पार्टी के उम्मीदवार बैकवर्ड और फॉरवर्ड के मुद्दे पर चुनाव लड़ते हुए देखे गए हैं.

आरजेडी के नए स्वरूप में फिट नहीं नेता

जाहिर है आरजेडी दलित बिरादरी में भी कुमार सर्वजीत सरीखे नेता को गया से उतारकर पासवान समाज में भी सेंधमारी करने का प्रयास कर रही थी. यही वजह है कि पुराने नेताओं को अब आरजेडी के नए स्वरूप में वो तरजीह नहीं मिल रही है जिसके कभी वो हकदार रहे हैं. इसलिए कहा जाने लगा है कि लालू युग अब समाप्ति की ओर है और तेजस्वी युग अब आरजेडी में मजबूत पकड़ कायम करने लगा है.