बिहार: कांग्रेस अपने विधायकों के इतिहास से घबराई, यूं ही पटना से नहीं भेजा हैदराबाद?

बिहार: कांग्रेस अपने विधायकों के इतिहास से घबराई, यूं ही पटना से नहीं भेजा हैदराबाद?

बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने और नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भी सियासी ड्रामा अभी तक खत्म नहीं हुआ है. रविवार को कांग्रेस ने अपने 19 में से 16 विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट कर दिया है. कांग्रेस की ओर से अपने विधायकों को हैदराबाद भेजे जाने के पीछे नेताओं का पुराना इतिहास भी जुड़ा हुआ है.

बिहार में सियासी बदलाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 12 फरवरी को अग्नि परीक्षा का सामना करना होगा यानी विधानसभा में बहुमत साबित करना है. सूबे में जेडीयू और बीजेपी के विधायकों की संख्या के लिहाज से नीतीश कुमार आसानी से फ्लोर टेस्ट पास कर लेंगे, लेकिन कांग्रेस को अपने विधायकों के टूटने का खतरा सता रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने अपने 19 से 16 विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से हैदराबाद भेज दिया है और बाकी तीन विधायक सोमवार को पहुंच जाएंगे. बिहार के विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने के बाद ही कांग्रेस के विधायक अब दोबारा से पटना लौटेंगे?

कांग्रेस ने यूं ही अपने विधायकों को पटना से हैदराबाद नहीं भेजा बल्कि उसके पीछे एक सोची समझी रणनीति है. बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक 2020 विधानसभा चुनाव में जीतकर आए थे, जिनमें 12 विधायकों का बैकग्राउंड खांटी कांग्रेसी हैं जबकि 7 विधायकों का इतिहास दलबदल का रहा है. कांग्रेस को डर यह सता रहा है कि कहीं उनके विधायक 2017 की तरह फिर से टूटकर जेडीयू खेमे में न चले जाएं, क्योंकि एनडीए गठबंधन कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका देने के साथ और मंत्री पद का लोभ देने का दांव चल सकती है. यही वजह है कि कांग्रेस ने अपने बिहार के विधायकों को सुरक्षित रखने के लिए पटना से हैदराबाद भेज दिया है, जहां पर कांग्रेस पार्टी की सरकार है.

हालांकि, बिहार में कांग्रेस विधायकों को तोड़ने के लिए 19 में से 13 विधायकों को अपने साथ मिलना होगा, क्योंकि दलबदल कानून के जद में आने से तभी बचा जा सकता है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पहले ही कह दिया है कि खेला तो बिहार में अब शुरू होगा तो दूसरी तरफ एनडीए घटक दल हम पार्टी के सुप्रीमो जीतन राम मांझी एक और मंत्री पद की मांग कर चुके हैं. वे आगे कुछ भी फैसला ले सकते हैं. इसलिए एनडीए की नजर महागठबंधन की पार्टियों पर है. ऐसे में सबसे सॉफ्ट कार्नर कांग्रेस नजर आ रही है.

2017 में नीतीश कुमार महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए में आए थे तो उस समय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके अशोक चौधरी के साथ दिलीप चौधरी, रामचंद्र भारती और तनवीर अख्तर जैसे नेता जेडीयू में शामिल हो गए थे. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार भी अपने विधायकों को लेकर सतर्क है और पहले से ही उन्हें सुरक्षित रखने में लगी हुई है ताकि ऑपरेशन लोटस से बचाया जा सके. कांग्रेस के 19 में से 7 विधायक ऐसे हैं, जो किसी दूसरी पार्टी में रहे हैं.

विजय शंकर दुबे की गिनती पुराने नेताओं में होती है

महाराजगंज के विधायक विजय शंकर दुबे पार्टी के पुराने नेताओं में से हैं, वर्ष 1998 में बीजेपी के टिकट पर सिवान से लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर हार गए तो वापस कांग्रेस में आ गए थे. मनोहर प्रसाद सिंह नीतीश कुमार के काफी नजदीकी हैं. 2010 में जेडीयू के टिकट पर जीते. 2015 में जदयू में रहते हुए नीतीश कुमार की सहमति पर कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते. वीरेंद्र चौधरी मुजफ्फरपुर से विधायक हैं. उनके पास कई पार्टियों में रहने का अनुभव है. जॉर्ज फर्नांडिस के समर्थन से निर्दलीय भी जीत चुके हैं. 2015 में जेडीयू के टिकट पर हार गए थे.

विश्वनाथ राम राजपुर से कांग्रेस के विधायक हैं, लेकिन 2015 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. 2020 में बीजेपी से टिकट मिलने के बाद उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी. कांग्रेस विधायक संजय कुमार तिवारी बक्सर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी से नजदीकी माने जाते हैं. कांग्रेस में विधायक दल के नेता भागलपुर के विधायक अजीत शर्मा को जेडीयू के अध्यक्ष रहे ललन सिंह का करीबी माना जाता है. कहा जाता है कि वो जेडीयू से 2020 में चुनाव लड़ने के फिराक में थे, लेकिन बीजेपी ने उनकी सीट नहीं छोड़ी थी. शकील अहमद खान सीमांचल के कदवा से दूसरी बार विधायक हैं. उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी वामपंथी पार्टी से शुरू की थी और एलजेपी के टिकट पर अररिया सीट से चुनाव लड़ चुके हैं.

खांटी कांग्रेस विधायक

कांग्रेस के विधायक सिद्धार्थ दूसरी बार विधानसभा पहुंचे हैं. अबिदुर रहमान अररिया से विधायक हैं और उनके पिता मंत्री रह चुके हैं. पुराने कांग्रेसी हैं. इजहारुल हुसैन किशनगंज से जीतकर पहली बार विधायक बने हैं और पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं. अफाक आलम तीन टर्म विधायक हैं. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके हैं. प्रतिमा दास पहली बार कांग्रेस से विधायक बनी हैं. महिला कांग्रेस से जुड़ी रही हैं. क्षत्रपति यादव खगड़िया से जीत कर पहली बार विधायक बनी हैं. इनके पिता कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. नीतू कुमारी हिसुआ से विधायक हैं. अखिलेश सिंह की समर्थक मानी जाती हैं. इनका परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है और ससुर स्व.आदित्य सिंह कई बार हिसुआ से विधायक रहे हैं. बिहार सरकार में मंत्री भी थे। गोतनी आभा सिंह जिला कांग्रेस की अध्यक्ष रही हैं.

मुरारी प्रसाद चेनारी सीट से जीते थे

डॉ. अजय कुमार सिंह जमालपुर से विधायक हैं. मुरारी प्रसाद गौतम चेनारी सीट से दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते हैं. कांग्रेस की कद्दावर नेता मीरा कुमार के खेमे के माने जाते हैं. संतोष कुमार निराला करगहर से जीत कर पहली बार विधायक बने हैं. कांग्रेसी परिवार से आते हैं. उनके पिता पंडित गिरीश नारायण मिश्र कई वर्षों तक विधायक रहे. राजेश कुमार कुटुंबा से चुनाव जीते हैं. दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा पहुंचे और उनके पिता स्व. दिलकेश्वर राम कांग्रेस की सरकार में कई बार मंत्री रहे हैं. ऐसे ही आनंद शंकर औरंगाबाद से दूसरी बार विधायक हैं. इनके पिता भी जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे और खांटी कांग्रेसी माने जाते हैं.

कांग्रेस आरजेडी के बैसाखी के सहारे राजनीति कर रही

दरअसल, कांग्रेस बिहार की सत्ता से लंबे समय से बाहर है और आरजेडी के बैसाखी के सहारे राजनीति कर रही है. कांग्रेस के तमाम कद्दावर नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़ चुके हैं, जो बचे हैं वो खांटी कांग्रेसी हैं. इसके अलावा महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ने से कई नेता दूसरे दलों से आए हुए हैं, जिसके चलते कांग्रेस को अपने विधायकों के पार्टी छोड़ने का डर सता रहा है. कांग्रेसी नेता अशोक चौधरी के जेडीयू में बढ़े सियासी कद से भी वाकिफ हैं. इसीलिए कांग्रेस अपने विधायकों को बीजेपी के पाले में जाने से बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है.

विधायक टूटे तो कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका होगा

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से पहले अगर जेडीयू या बीजेपी उसके विधायक को अपने साथ मिला मिलाती है तो कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी झटका होगा. ऐसे में कांग्रेस ने बिहार से दूर तेलंगाना में अपने विधायकों को सेफ रखने की रणनीति अपनाई है. राहुल गांधी की यात्रा 14 फरवरी को यूपी में दाखिल हो जाएगी. उससे पहले 12 फरवरी को फ्लोर टेस्ट है, उसी समय कांग्रेस अपने विधायकों को हैदराबाद से पटना लाएगी. देखना है कि कांग्रेस की कोशिश अपने विधायकों को बचाए रखने की कितनी सफल होती है?