कार पार्किंग पर छिड़ी मूंछ की लड़ाई में 88 लाख फुंके, 7 साल बाद कोर्ट में भी समाधान नहीं निकला!
कार पार्किंग को लेकर हास्यास्पद लड़ाई का यह किस्सा है पश्चिम लंदन का. इस मजेदार झगड़े में दो पक्ष हैं
नाक और मूंछ की लड़ाई के खत्म होने की कोई हद नहीं होती है. भले ही क्यों न एक रूपए की जगह लाखों खर्च हो जाएं मगर, जिद तो फिर जिद है. वो जिद भी क्या जो इंसान को बर्बाद किए बिना छोड़ दे. कार पार्किंग को लेकर दो पड़ोसियों के बीच बीते 7 साल से चली आ रही बे-नतीजा लड़ाई का सच्चा किस्सा इसका सबसे मजबूत नमूना. वह लड़ाई जिसमें कार पार्किंग की चंद इंच जमीन को अपना-अपना बताने वाले दो पड़ोसियों में से एक ने अब तक करीब 88 लाख रुपए (1 लाख यूरो) फूंक डाले. इसके बाद भी कार पार्किंग की समस्या या कहिए झगड़ा, 7 साल पुरानी वाली हालत में जहां का तहां खड़ा है. अब तो झगड़ा कोर्ट में भी घसीट कर पहुंचा दिया गया है. वहां भी हाल-फिलहाल तो झगड़े में कोई काम का फैसला नहीं हो सका है.
कार पार्किंग को लेकर हास्यास्पद लड़ाई का यह किस्सा है पश्चिम लंदन का. इस मजेदार झगड़े में दो पक्ष हैं. एक पक्ष इवान सोरेस और दूसरा पक्ष मनीष कोठारी. मनीष कोठारी मूल रुप से भारत के रहने वाले हैं. वे बीते कई साल से पश्चिम लंदन में ही सपरिवार रह रहे हैं. दोनों परिवारों में कार पार्किंग को लेकर बीते करीब 7 साल से विवाद चल रहा है. दोनो ही पक्षों के अपने-अपने दावे हैं. दोनो पक्ष एक दूसरे को गलत ठहराते हैं. जब जब मिल-बैठकर बात करके समस्या का समाधान करने की नौबत आई, तभी दोनों पक्षों में उस हद की गर्मा-गर्मी हो गई कि, समझौते की बात जहां से शुरू हुई वहीं धरी रह गई.
पड़ोसियों ने भी की झगड़ा सुलझाने की कोशिश
53 साल के इवान सोरेस और 41 साल के मनीष कोठारी जबसे पड़ोसी बने हैं. तभी से उनके बीच कार पार्किंग को लेकर बवाल मचा हुआ है. शुरुआती दिनों में झगड़े को पड़ोसियों ने भी सुलझवाने की कोशिश की. बाद में जब पड़ोसियों की समझ में भी आ गया कि झगड़ा कार पार्किंग का कम, नाक और मूंछ की लड़ाई का ज्यादा है. दोनों ही पक्ष किसी भी कीमत पर लड़ाई को खत्म करना ही नहीं चाहते हैं. तो पड़ोसियों ने भी दोनों पक्षों के बीच आएदिन होने वाली तूतू मैं मैं से किनारा कर लेने में ही भलाई समझी. गंभीर समझिए या फिर हास्यासपद कि, इस कई साल की नाक की लड़ाई में अब तक 1 लाख यूरो यानी करीब 88 लाख रूपए फूंके जा चुके हैं. इसके बाद भी कार पार्किंग की चंद इंच जमीन को लेकर चली आ रही बे-सिरपैर की जंग खतम होने का नाम नहीं ले रहे हैं.
इस सबका नतीजा सामने है कि सन् 2015 में इवान सोरेस और मनीष कोठारी के बीच धींगामुश्ती बदस्तूर जारी है. इनकी इस बेसिर-पैर की मगर बेहद महंगी साबित हो चुकी लड़ाई का अब पड़ोसी भी आनंद लेने लगे हैं. दोनों ही पक्षों का एक दूसरे के ऊपर आरोप है कि, वे अपनी-अपनी कारों को बहुत करीब सटाकर खड़ी करते हैं. उस हद तक का करीब कि, जिसके चलते कार के दरवाजे खोलने तक में परेशानी होती है. दोनों ही उच्च शिक्षित परिवार, दिलों में एक-एक कदम पीछे हटने का माद्दा रखकर, अगर अपनी अपनी कारों को जरा सा भी आगे पीछे कर लें. तो शायद 7 साल से चली आ रही मूंछ की यह कीमती लड़ाई चंद सेकेंड में खतम हो सकती है.
कोठारी पक्ष का क्या है दावा?
कोठारी पक्ष का दावा है कि उनके भाई संदीप और उनकी पत्नी बिंदु को पड़ोसी बे-वजह ही, कार पार्किंग का अतिक्रमण करके परेशान कर रहा है. जबकि वहीं दूसरी ओर घर के पास ही रहने वाले अन्य परिवार, कोठारी परिवार को ही इस सब झगड़े की जड़ मान रहा है. मिरर की एक खबर के मुताबिक, मनीष कोठारी परिवार का दावा है कि, उनके पड़ोसी सोरेस और उनकी पत्नी जानबूझकर अपनी गाड़ियों को, दोनों घरों के बाहर केवल कुछ इंच की दूरी पर पार्क कर देते हैं. जिससे कोठारी परिवार की कारों को खड़े होने में दिक्कत होती है. वहीं मनीष कोठारी का सा ही आरोप उनके ऊपर, मनीष के पड़ोसी और झगड़े में दूसरे मुख्य रहने वाले सोरेस दंपत्ति, झगड़े के लिए मनीष कोठारी पक्ष के सिर जिम्मेदारी का घड़ा फोड़ते हैं.
फिलहाल यह लड़ाई अब कुछ दिन पहले स्थानीय कोर्ट में पहुंच चुकी है. जहां वकीलों की फीस में ही 100,000 यूरो तक खर्च हो चुके हैं. लड़ाई का मामला सेंट्रल लंदन काउंटी कोर्ट में पहुंचा है. मामले को देखने के बाद न्यायाधीश साइमन मोंटी भी हैरान रह गए. कोर्ट ने जब मुकदमे की फाइल पढ़ी तो उसने भी, बे-सिरपैर की लड़ाई को कोर्ट से बाहर ही पड़ोसियों के साथ मिल-बैठकर आपसी समझौते के तहत सुलझा लेने का मश्विरा दिया. कोर्ट का हालांकि यह नेक मश्विरा दोनों ही पक्षों में से किसी के भी मन को नहीं भाया है. कहानी का एक पक्ष यह भी सामने निकल कर आया है कि अनुचित पार्किंग के इस झगड़े में, सितंबर 2018 में हुए समझौते को सोरेस दंपत्ति ने बीच में ही तोड़ दिया था. झगड़ा लंबा चले आने की एक प्रमुख वजह यह भी है.
नाक इस लड़ाई को अदालत में मनीष कोठारी लेकर पहुंचे हैं. मनीष कोठारी कहते हैं कि दूसरे पक्ष ने इस झगड़े को इतना ज्यादा पेचीदा बना डाला है जिसके चलते, अब इसमें कोर्ट को ही हस्तक्षेप करना होगा. तभी इस समस्या का समाधान हो सकेगा. मिरर की खबर के मुताबिक, बीते साल तो झगड़ा उस हद तक बढ़ गया था कि, प्रतिवादी (मनीष कोठारी पक्ष) ने कार को पार्किंग में खड़ा करना तक बंद कर दिया. अब कोठारी पक्ष इस झगड़े को लेकर हुई परेशानी के चलते कोर्ट के जरिए मुआवजा भी लेने पर अड़े हुए हैं. इस बीच, मिस्टर और मिसेज सोरेस के वकील मैक्सवेल मायर्स ने शुरुआत में यह तर्क देते हुए कि, उनके क्लाइंट के पास, कोठारी के घर के सबसे करीब दाईं ओर की जगह है. वास्तव में कौन सी पार्किंग की जगह है, इस पर विवाद चल रहा है.
साल 2006 से पार्किंग विवाद
सोरेस दंपत्ति का कहना है कि कि जब उन्होंने सन् 2006 में घर खरीदा था, तभी से वे पार्किंग विवाद से जूझ रहे हैं. मनीष कोठारी का कहना है कि सोरेस दंपत्ति जिस तरह से अपनी कारों की पार्किंग करते हैं. उससे उनकी कार किसी बक्सेनुमा जगह में बंद सी हो जाती है. जिसे निकालने की कोई गुंजाइश तो बाकी बचती ही नही हैं. अपनी कोर्ट में पहुंचे इस अजीबोगरीब मुकदमे/शिकायत को लेकर जज मोंटी को एक पक्ष ने कहा है कि,”हमने हर कीमत पर कोई सरल तर्कसंगत रास्ता तलाशने की कोशिश की. हम शिक्षित और सभ्य हैं. ऐसे में भी हमारी हर कोशिश दूसरे पक्ष द्वारा नाकाम ही कर दी गई. लिहाजा अब कोर्ट ही कोई रास्ता तलाश सकता है. जिसे दोनो पक्ष मानने को कानूनन बाध्य होंगे. हालांकि इस पूरे विवाद में कई पड़ोसी यह भी कहते हैं कि, कार पार्किंग के इस झगड़े में सोरेस दंपत्ति ने कोठारी दंपत्ति की कार पार्किग की जगह नहीं कब्जाई है.
पड़ोसियों के मुताबिक तो, दोनो पक्षों को झगड़ने की कोई जरूरत है ही नहीं.बशर्ते दोनों बेवजह की जिद छोड़कर कोई शांतिपूर्ण रास्ता निकालना चाहें तब. क्योंकि कार पार्किंग के लिए समुचित जगह मौजूद है. शिकायत पर सुनवाई कर रहे जज मोंटी ने कहा कि, “अगर दोनों पक्ष पार्किंग के कुछ फीट जगह को लेकर बहस पर अड़े रहकर मुकदमे में 50 हजार यूरो खर्च करना ही चाहते हैं, तो वे करें इस पर कोर्ट को कोई आपत्ति नहीं है. फिलहाल इस मामले को न्यायाधीश मोंटी ने अगले साल तक के लिए स्थगित कर दिया है. अब अगले साल होने वाली सुनवाई की तारीख को कोर्ट यह तय करेगी कि अब तक इस लड़ाई में जो एक लाख यूरो (करीब 88 लाख रुपए) खर्च हो चुके हैं. उसके बिलों का भुगतान कौन सा पक्ष करेगा?