पीएम मोदी से गुजराती दंपति की गुहार, जर्मन कस्टडी से 2 साल की मासूम बेटी को वापस दिलाएं

पीएम मोदी से गुजराती दंपति की गुहार, जर्मन कस्टडी से 2 साल की मासूम बेटी को वापस दिलाएं

एक गुजराती दंपति अपनी 2 साल की बेटी की कस्टडी पाने के लिए जर्मनी में दो साल से संघर्ष कर रहे हैं. अब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई कि उनकी बेटी को उन्हें वापस लौटाएं.

नई दिल्ली: एक भारतीय दंपति अपनी 2 साल की बेटी की कस्टडी पाने के लिए जर्मनी में दो साल से संघर्ष कर रहे हैं. इस गुजराती दंपति ने अब हताश होकर भारतीय अधिकारियों और खासतौर पर पीएम मोदी से उनकी बेटी को उन्हें वापस लौटाने की गुहार लगाई है. बच्ची की मां का कहना है कि उसकी बच्ची को जल्द से जल्द उनके पास वापस दिलवाया जाए. जिससे बच्ची अपने परिवार के कल्चर के साथ ही बड़ी हो और उसका भविष्य उज्जवल हो. गुजरात के रहने वाले भावेश शाह और उनकी पत्नी धारी की कहानी काफी भावुक करने वाली है.

भावेश को जर्मनी में साल 2018 में नौकरी मिली. इसके बाद भावेश और उनकी पत्नी धारा जर्मनी में शिफ्ट हो गए, ताकि वो बेहतर जिंदगी बिता सकें. वहां उनकी एक बेटी का जन्म हुआ. वो चाहते थे कि उनकी बेटी अच्छी शिक्षा और लाइफस्टाइल प्राप्त करे लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसकी कल्पना उन्होंने सपने में भी नहीं की थी. जब उनकी बेटी 6 महीने की थी, तब एक दिन 17 सितंबर 2021 को बच्ची के डायपर उन्हें खून नजर आया. इसके बाद ये कपल उसका चेकअप कराने के लिए उसे बर्लिन के चैरटी नाम के हॉस्पिटल ले गए. जहां उन्हें बताया गया कि उनकी बेटी की तबीयत सही है और उन्हें 4 दिन बाद वापस फॉलोअप के लिए आने को कहा.

दंपति पर चला क्रिमिनल केस

कोविड की वजह से बच्ची के साथ माता-पिता में से एक ही जा सकता था. धारा शाह बच्चे को हॉस्पिटल लेकर गई. हॉस्पिटल प्रशासन ने चाइल्ड फैसिलिटी टीम को ये कहकर बुलाया कि उसके साथ यौन शोषण हुआ है. इसके बाद दंपति पर एक क्रिमिनस केस भी चला, लेकिन ये केस फरवरी 2022 में खारिज हो गया क्योंकि इसमें ये पाया गया कि बच्ची के साथ कुछ भी गलत नहीं हुआ है. लेकिन उन्हें उनकी बेटी वापस नहीं मिली और वो इसके लिए सिविल केस लड़ रहे हैं. इस दौरान बच्ची की उम्र 2 साल से पार हो गई है. माता-पिता का आरोप है कि उन्हें उसकी बच्ची से मिलने तक नहीं दिया जाता है. उनके ऊपर ये आरोप लगाए गए कि वह अपने बच्चे को हाथ से खाना खिलाते हैं और जरूरत से ज्यादा खाना देते हैं. ये सब कल्चर डिफरेंस की वजह से हो रहा है.

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‘जय कृष्णा बोलना गलत समझा जाता है’

भावेश शाह और धारा ने आगे बताया कि वो अपने बच्चे को जय कृष्णा बोलना सिखाते हैं या उसके सामने मंत्रो का उच्चारण करते है तो ये भी वहां गलत समझा जाता है. उन्हें ये कहा जाता है कि उन्हें बच्चे की केयर करना नहीं आता, जिसके लिए उन्हें पैरेंटल फैसिलिटी मे भी भेजा गया. जहां से उन्हें क्लीन चीट मिल चुकी है. वहां की रिपोर्ट की अनुसार पिता दिमागी, शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ है और अपने बच्चे को अच्छे से परवरिश दे सकते हैं. उनका कहना है कि अगर बच्ची उन्हें नहीं मिलती है तो तब उसे गुजराती जैन फैमिली को दे दिया जाए, जिससे कि वो कल्चर के साथ बड़ी हो.

भारत सरकार नें भी खोजी फैमिली

उनका आरोप है कि जर्मनी में कई ऐसे परिवार हैं, जो हमारी बच्ची को अपने साथ रखना चाहते हैं. उसकी परवरिश कर सकते हैं लेकिन उसके बावजूद जर्मनी सरकार बच्ची को चाइल्ड केयर सेंटर में ही रख रही है. भारत सरकार ने भी हिंदुस्तान में एक ऐसी ही गुजराती जैन फैमिली ढूंढी है जो उस बच्ची को हिंदुस्तान मे परवरिश दे सकती है. इसकी रिपोर्ट जर्मनी में संबंधित विभाग को भेजी गई है लेकिन अभी भी यह बच्ची चाइल्ड केयर में ही रह रही है.