मंदिरों पर बुलडोजर चलाने के लिए इतने उत्साहित क्यों? सिसोदिया ने LG पर लगाए कई गंभीर आरोप
मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, 2015-16 में दिल्ली सरकार ने शिक्षा अधिनियम में संशोधन को मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा था. अगर संशोधन को मंजूरी दे दी गई होती तो हम निजी स्कूलों को विनियमित करने में सक्षम होते.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रविवार को उपराज्यपाल द्वारा असंवैधानिक तरीकों से की गई हालिया कार्रवाइयों पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि एलजी के आरोप पूरी तरह निराधार और ओछी राजनीति से प्रेरित हैं. एक तरफ उन्होंने दिल्ली सरकार की हर एक फाइल रोक रखी है, वहीं दूसरी तरफ वे सरकार पर पूरी दिल्ली में मंदिरों को तोड़े जाने से जुड़ी फाइलों में देरी करने का आरोप लगा रहे हैं.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि एलजी का यह व्यवहार उनकी प्राथमिकताओं पर संदेह पैदा करता है. एलजी दिल्ली में मंदिरों पर बुल्डोजर चलाने के लिए इतना उत्साहित क्यों है? यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपराज्यपाल इतने संवेदनशील मामले पर राजनीति कर रहे हैं, जो दिल्ली के दर्जनों पुराने मंदिरों से जुड़ा है. जबकि धार्मिक ढांचों में कोई संशोधन करने का निर्णय भी जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता, उन्हें गिराने की अनुमति देना तो बहुत दूर की बात है.
साथ ही डिप्टी सीएम ने पूछा कि क्या एलजी के लिए सरकारी स्कूल के शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने से ज्यादा जरूरी मंदिरों को तोड़ना है? एलजी खुद को दिल्ली का “लोकल गार्जियन” कहते हैं, तो वह जनहित की परियोजनाओं को मंजूरी क्यों नहीं देते हैं?
दिल्ली सरकार को शांतिपूर्वक करने दें काम
उन्होंने कहा, “उपराज्यपाल के पास प्रिंसिपलों, डीईआरसी चेयरमैन, कानूनी सलाहकारों की नियुक्ति के लिए अनुमोदन लंबे समय से लंबित है. एलजी राजनीति करने के बजाय इस दिशा में काम करें. मैं एलजी से विनती करता हूं कि वो बिना कोई बाधा डाले चुनी हुई दिल्ली सरकार को शांतिपूर्वक काम करने दें.”
7 साल से गृह मंत्रालय में दबी है फाइल
मनीष सिसोदिया ने आगे कहा कि यह कोई अकेला मामला नहीं है, 2015-16 में दिल्ली सरकार ने शिक्षा अधिनियम में संशोधन को मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय को भेजा था. अगर संशोधन को मंजूरी दे दी गई होती तो हम निजी स्कूलों को विनियमित करने में सक्षम होते. लेकिन गृह मंत्रालय सात साल से फाइल को दबाए बैठा है. एलजी खुद को दिल्ली का “लोकल गार्जियन” कहते हैं. इसके बाद भी वो गृह मंत्रालय से उस फाइल को मंजूरी क्यों नहीं दिलाते? क्या इसलिए कि वे बच्चों को अच्छी शिक्षा देने से ज्यादा जरूरी धार्मिक ढांचे को गिराना मानते हैं?