होली से जुड़ी अनोखी परंपरा, यहां रंगपंचमी के बाद होती है मेघनाद की पूजा; दी जाती है बकरे की बलि

होली से जुड़ी अनोखी परंपरा, यहां रंगपंचमी के बाद होती है मेघनाद की पूजा; दी जाती है बकरे की बलि

मध्यप्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बैतूल, झाबुआ अलीराजपुर और डिंडोरी में रहने वाले गोंड आदिवासी मेघनाद को अपना देवता मानते है. गोंड आदिवासी मेघनाद को अपना इष्ट देव मानकर उसकी पूजा करते हैं.

होली को रंगों का त्योहार कहा जाता है, लेकिन इस त्यौहार से जुड़ी कई परम्परा आज भी समाज में विद्यमान है. इन्ही परम्पराओं में से एक है मेघनाद की पूजा. मध्यप्रदेश के खंडवा, बुरहानपुर, बैतूल, झाबुआ अलीराजपुर और डिंडोरी में रहने वाले गोंड आदिवासी मेघनाद को अपना देवता मानते है. गोंड आदिवासी मेघनाद को अपना इष्ट देव मानकर उसकी पूजा करते हैं. मेघनाद बाबा को प्रसन्न करने के लिए आदिवासी प्रतिवर्ष रंग पंचमी से तेरस के बीच दो दिवसीय मेले का आयोजन करते हैं.

खंडवा के आदिवासी ब्लॉक खालवा में गोंड आदिवासियों की संख्या ज्यादा है. यहां अधिकतर ग्रामों में रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा की जाती हैं. यहां के लोग मेघनाद के पर्व को बहुत ही खास तरीके से मनाते हैं. हर वर्ष रंगपंचमी के कुछ दिन बाद मेघनाद को प्रसन्न करने के लिए मेले का आयोजन करते हैं, मेले के दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता और बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है.

बड़ी रोचक होती है झंडा दौड़ प्रतियोगिता

मेला स्थल पर झंडा दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. जहां पेड़ के 50 से 60 फीट लंबे तने को तेल और साबुन इत्यादि पोतकर चिकना किया जाता है. खंबे के ऊपर एक लाल कपड़े में नारियल ,बतासे एवं नगद राशि को खंभे के शीर्ष पर बांध दिया जाता है. गांव के साहसी युवा इस चिकने खंभे पर चढ़कर ऊपर बंधा झंडा तोड़ने का प्रयास करते हैं. जहां सज धजकर आई नव युवतियां एवं महिलाएं हाथ में हरे बांस की लकड़ी लेकर युवाओं को ऊपर चढ़ने से रोकती हैं, तथा हरी बांस से ऊपर चढ़ने वाले युवाओं की पिटाई करती हैं.

वहीं ग्रामीण बाजा ढोलक बजाकर युवाओं का उत्साह वर्धन करते हैं .प्रतियोगिता बहुत ही रोचक होती है और जो युवा ऊपर तक पहुंचकर झंडा तोड़ कर ले जाता उसे विजेता घोषित किया जाता है. स्थानीय विधायक और वन मंत्री विजय शाह भी इस मेले में पहुंचकर मेघनाथ बाबा की पूजा अर्चना करते है.

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मेघबाबा को चढ़ाई जाती है मुर्गे या बकरे की बलि

गोंड समाज के अनुयायियों के मुताबिक मेघनाद की पूजा भारत में सिर्फ गोंड प्रजाति के लोग ही करते हैं. मेघनाद बाबा आदिवासियों के महान देवता हैं उन्हें प्रसन्न करने के लिए मेघबाबा को मुर्गे या बकरे की बलि चढ़ाई जाती है. ग्राम के भोमका गोपाल धुर्वे ने बताया कि गोंड समाज के द्वारा रावण पुत्र मेघनाथ को देवता के रूप में पूजा जाता है. जहां मेले के दौरान झंडा दौड़ प्रतियोगिता और बैलगाड़ी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है.

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जनजातीय बहुल खालवा विकासखंड के गांवो में गोंड समाज के देव मेघनाथ बाबा के मेले का आयोजन किया गया. जहां आसपास के ग्रामों से आए श्रद्धालुओं ने तीन लकडियों से बनी मचान (मेघनाथ बाबा के प्रतीक) के नीचे पूजा अर्चना करते हैं. गोंड आदिवासियों का मानना है कि उनके पूर्वज भगवान मेघनाद को खुश करने और अपनी मान-मन्नतें पूरी होने पर बलि चढ़ाने के लिए पूजा की जाती हैं.