न जाल न पिंजड़े… क्या अब गुड्डे-गुड़ियों से पकड़े जाएंगे बहराइच के आमदखोर भेड़िए?

न जाल न पिंजड़े… क्या अब गुड्डे-गुड़ियों से पकड़े जाएंगे बहराइच के आमदखोर भेड़िए?

यूपी के बहराइच जिले में अभी भी 'ऑपरेशन भेडिया' जारी है. वन विभाग, पुलिस और PAC की टीमें इनको पकड़ने में लगी हुई हैं. अभी तक चार भेड़िए पकड़ गए हैं, जबकि दो भेड़िए क्षेत्र में टहल रहे हैं. बीते रविवार की रात इन्होंने एक बच्ची की जान ले ली, जबकि एक बुजुर्ग महिला को घायल कर दिया.

उत्तर प्रदेश का बहराइच जिला इस समय सुर्खियों में है. सुर्खियों में इसलिए नहीं है कि यहां के लोगों ने कोई नया कीर्तिमान स्थापित किया है, बल्कि यहां के लोग डरे-सहमे हुए हैं भेड़ियों से. वो भेड़िए जो अब आमदखोर हो चुके हैं. रात होते ही अपने शिकार की तलाश में निकल जाते हैं. इन भेड़ियों के शिकार भी कोई जानवर नहीं, बल्कि इंसान होते हैं. करीब दो महीने से लगातार इनका हमला जारी है. अब तक 9 मासूम सहित कुल 10 लोगों की जान ये ले चुके हैं, जबकि वन विभाग ने चार आदमखोर भेड़ियों को पकड़ा भी है. अभी भी दो भेड़िए क्षेत्र में टहल रहे हैं.

बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र के करीब 35 गांवों इन आदमखोर भेड़ियों का आतंक है. भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग की 17 टीमें लगी हुई हैं. वहीं PAC के 200 जवान तैनात किए गए हैं. ग्रामीणों की 100 टुकड़ियां दिन-रात जागकर गांवों में गश्त कर रही हैं. ड्रोन कैमरों से निगरानी रखी जा रही है. खेतों में जाल लगाए गए हैं. जगह-जगह लोहे के पिजड़े रखे गए हैं, ताकि इन भेड़ियों को किसी तरह पकड़ा जा सके. हालांकि ये सब इंतजाम शायद नाकाफी साबित हो रहे हैं, तभी तो अब गुड्डे-गुड़ियों का खेल भी शुरू हो चुका है.

बच्चों के पेशाब में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़िया

दरअसल, इन आमदखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग बच्चों की पेशाब में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़ियों का इस्तेमाल कर रहा है. इन गुड्डे-गुड़ियों को दिखावटी चारे के रूप में नदी के किनारे भेड़ियों के आराम स्थल और मांद के पास लगाया गया है. गुड्डे-गुड़ियोें को बच्चों की पेशाब से भिगोया गया है, ताकि इनसे बच्चों जैसी गंध आए और भेड़िए इनकी तरह खींचे चले आएं.

‘ऑपरेशन भेड़िया’ के नोडल अधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि हमलावर भेड़िए लगातार अपनी जगह बदल रहे हैं. अमूमन ये रात में शिकार करते हैं और सुबह होते-होते अपनी मांद में लौट जाते हैं. ऐसे में ग्रामीणों और बच्चों को बचाने के लिए हमारी रणनीति है कि इन्हें भ्रमित कर रिहायशी इलाकों से दूर किसी तरह इनकी मांद के पास लगाए गए जाल या पिंजड़े में फंसाने के लिए आकर्षित किया जाए.

Operation Bhediya

गुड्डे-गुड़ियों से पकड़े जाएंगे भेड़िए!

नोडल अधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि इसके लिए हम थर्मल ड्रोन से भेड़ियों की लोकेशन के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं. फिर पटाखे जलाकर, शोर मचाकर या अन्य तरीकों से इन्हें रिहायशी गांव से दूर सुनसान जगह ले जाकर जाल के नजदीक लाने की कोशिश कर रहे हैं. भेड़िए अधिकांश बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं, इसलिए जाल और पिंजरे के पास हमने बच्चों के आकार की बड़ी-बड़ी ‘टेडी डॉल’ लगाई हैं.

नोडल अधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि ‘टेडी डॉल’ को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर इन पर बच्चों के मूत्र का छिड़काव किया गया है और फिर जाल के पास और पिजड़ों के अंदर इस तरह से रखा गया है कि ये गुड्डे-गुड़िए देखने से भेड़ियों को इनसानी बच्चा बैठा होने या सोता होने का भ्रम हो. अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि बच्चे का मूत्र भेड़ियों को ‘टेडी डॉल’ में नैसर्गिक इनसानी गंध का एहसास दिलाकर अपने नजदीक आने को प्रेरित कर सकता है.

क्या बोले IFS अधिकारी रमेश कुमार पांडे?

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड निदेशक और कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार के DFO रह चुके वरिष्ठ IFS अधिकारी रमेश कुमार पांडे ने तराई के जंगलों में काफी वर्षों तक काम किया है. इन दिनों वह भारत सरकार के वन मंत्रालय में महानिरीक्षक (वन) के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं. रमेश कुमार पांडे ने कहा कि ‘भेड़िये, सियार, लोमड़ी, पालतू और जंगली कुत्ते आदि जानवर कैनिड नस्ल के जानवर होते हैं. भेड़ियों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ब्रिटिश काल में यह इलाका कैनिड प्रजाति में शामिल इन भेड़ियों का इलाका हुआ करता था.

Bahraich News

रमेश कुमार पांडे ने बताया कि भेड़िया आबादी में खुद को आसानी से छिपा लेता है. उस जमाने में भेड़ियों को पूरी तरह से खत्म करने की कवायद हुई थी. बहुत बड़ी संख्या में उन्हें मारा भी गया था, तब भेड़ियों को मार डालने योग्य जंगली जानवर घोषित किया गया था और इन्हें मारने पर सरकार से 50 पैसे से लेकर एक रुपए तक का इनाम मिलता था. हालांकि ब्रिटिश शासकों की लाख कोशिशों के बावजूद ये जीव अपनी चालाकी से छिपते-छिपाते खुद को बचाने में कामयाब रहे और आज भी बड़ी संख्या में नदियों के किनारे के इलाकों में मौजूद हैं.

सीतापुर में भी हो चुका भेड़ियों का हमला

बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में मार्च से ही इंसानों पर भेड़ियों के हमले हो रहे हैं. बारिश के मौसम में 17 जुलाई से हमले बढ़े हैं. भेड़ियों के हमले से अब तक 9 बच्चे सहित 10 लोगों की मौत हो चुकी है. 30 से अधिक लोग हमलों में घायल हुए हैं. बीते रविवार रात इन भेड़ियों के अलग-अलग हमलों में ढाई साल की एक बच्ची की मौत हो गई, जबकि एक बुजुर्ग महिला गंभीर रूप से घायल हो गई. इसके अलावा पड़ोसी सीतापुर जिले में भी भेड़ियों के हमले हुए हैं. खास बात यह है कि भेड़िए अब नए इलाकों में हमले कर रहे हैं.

6 भेड़ियों का झुंड, अब तक 4 पकड़े गए

वहीं देवीपाटन मंडल के कमिश्नर शशिभूषण लाल सुशील ने बताया कि आदमखोर भेड़ियों के झुंड में शामिल छह में से चार भेड़िए बीते डेढ़ महीने में पकड़े जा चुके हैं. बाकी बचे हुए दो भेड़ियों के हमले अब भी जारी हैं. शशिभूषण लाल सुशील ने बताया कि रविवार रात भी इनके हमलों से एक बच्ची की मौत हो गई, जबकि एक बुजुर्ग महिला घायल है. शशिभूषण लाल सुशील ने बताया कि थर्मल ड्रोन और सामान्य ड्रोन के जरिए इन भेड़ियों की तलाश की जा रही है.