राम मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति श्याम वर्ण की क्यों?

राम मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति श्याम वर्ण की क्यों?

आज जिस मूर्ति की तस्वीर सामने आई है. वह मूर्ति श्याम रंग की है, जिसको लेकर लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि अयोध्या के राम मंदिर के लिए श्याम वर्ण की मूर्ति का चयन क्यों किया गया? आइए जानते हैं कि क्यों इस मूर्ति का चयन किया गया.

रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े अनुष्ठान 22 जनवरी को दोपहर 12:20 से शुरू होकर एक बजे तक समाप्त होगा, हालांकि उससे पहले आज एक तस्वीर सामने आई है, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह वही मूर्ति है, जो गर्भगृह में रखी गई है. मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच है. कमल के फूल के साथ इसकी लंबाई 8 फीट और वजन 200 किलोग्राम है. मूर्ति का निर्माण श्याम शिला पत्थर को तराश कर हुआ है. जिस मूर्ति की फोटो सामने आई है, उसको मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है. दरअसल, रामलला की तीन मूर्तियों का निर्माण हुआ है, जिसमें से एक को मूर्तिकार सत्यनारायण पांडे ने राजस्थानी शिला से बनाया है, जबकि मूर्तिकार गणेश भट्ट और अरुण योगीराज ने कर्नाटक के श्याम शिला से दो मूर्तियों का निर्माण किया था.

रामलला की प्रतिमा का निर्माण करने का जिम्मा कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज को सौंपा गया था. अरुण योगीराज प्रसिद्ध मूर्तिकार योगीराज शिल्पी के बेटे हैं और उनके दादा को वाडियार घराने के महलों में खूबसूरती देने के लिए माना जाता था. अरुण मैसूर महल के कलाकारों के परिवारों से आते हैं. अरुण पूर्वजों की तरह मूर्तिकार नहीं बनना चाहते थे, बल्कि 2008 में मैसूर विश्वविद्यालय से एमबीए किया.

श्याम रंग की श्रीराम की मूर्ति अरुण योगीराज ने है बनाई

इसके बाद वह एक प्राइवेट कंपनी के लिए काम करने लगे, लेकिन उनके दादा ने भविष्यवाणी की थी कि अरुण बड़े होकर मूर्तिकार बनेंगे. 37 साल बाद यह सच हुआ और अरुण योगीराज ने सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई, जिसे इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति स्थल पर स्थापित किया गया है. इसके साथ ही केदारनाथ में स्थापित आदि शंकराचार्य की 12 फीट ऊंची प्रतिमा भी उन्होंने ही बनाई है.

आज जिस मूर्ति की तस्वीर सामने आई है. यह मूर्ति श्याम रंग की है, जिसको लेकर लोगों के मन में जिज्ञासा में सवाल उठ रहा है कि क्यों राम मंदिर में श्याम वर्ण की मूर्ति का चयन किया गया. रामायण में भी कहा गया है कि प्रभु श्रीराम श्याम वर्ण के थे और इसलिए इसको ज्यादा महत्व दिया गया. भगवान राम श्याम और शिव गौर वर्ण के हैं.

भगवान श्रीराम की स्तुति मंत्र में कहा गया है:

नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम सीतासमारोपित वामभागम्। पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।

अर्थात नीलकमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, सीता जी जिनके वाम भाग में विराजमान हैं, जिनके हाथों में अमोघ बाण और सुंदर धनुष है, उन रघुवंश के स्वामी श्रीरामचंद्र जी को मैं नमस्कार करता हूं. अर्थात् परमात्मा श्रीराम श्याम वर्ण के हैं.

वहीं, महादेव शिव की अन्य स्तुति में कहा गया है:

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

जिसका अर्थ है, जो कपूर जैसे धवल उज्जवल वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं, भुजंग जिनका हार है, वह भगवान शिव माता पार्वती सहित सदैव मेरे हृदय में निवास करें. स्तुति के अनुसार यह निश्चित हो जाता है कि महादेव शिव गौर वर्ण के हैं.

महादेव शिव भगवान श्रीराम के हैं आराध्य

भगवान श्रीराम महादेव शिव के आराध्य हैं और महादेव शिव भगवान श्रीराम के आराध्य है. उनके इसी परस्पर भाव के कारण रामेश्वरम तीर्थ की व्याख्या हमारे ऋषि, मुनियों, संतों ने कुछ इस प्रकार की है, रामस्य ईश्वर: स: रामेश्वर: अर्थात जो राम के ईश्वर हैं, वे रामेश्वर हैं. किंतु महादेव शिव जब माता पार्वती को राम कथा सुनाते हैं, तब वह रामेश्वरम की व्याख्या कुछ इस प्रकार करते हैं, राम ईश्वरो यस्य सः रामेश्वरः अर्थात श्रीराम जिसके ईश्वर है, वही रामेश्वर हैं. महादेव और श्रीराम का एक-दूसरे के प्रति आराध्या भाव इतना गहरा है कि दोनों ही एक-दूसरे के रंग में रंगे हुए हैं.

इसलिए कर्पूर गौर वाले महादेव शिव को कुछ भक्त अपने अनुभव के अनुसार नीला चित्र कर देते हैं और नीलांबुज श्यामल को मलंग वाले परमात्मा श्रीराम को गौर वर्ण दर्शा देते हैं. भक्ति के चित्र की भाव दशा के अनुसार ही भगवान का चित्र भर कर आता है, किंतु परमात्मा को आनंद तब मिलेगा, जब उनकी श्रेष्ठतम रचना मनुष्य उनके चित्र को पूजने तक नहीं, बल्कि उनके चरित्र को अपने अंदर ढाले.