‘कारों के श्मशान’ में Tata-Maruti की दिलचस्पी, 3 घंटे में मिट्टी में मिल जाती हैं कारें

‘कारों के श्मशान’ में Tata-Maruti की दिलचस्पी, 3 घंटे में मिट्टी में मिल जाती हैं कारें

आपने कभी 'कारों का श्मशान' देखा है, दिल्ली से सटे नोएडा में कारों का ऐसा एक श्मशान है, जहां 35 घंटे की मेहनत के बाद तैयार होनी वाली कारें मात्र 3 घंटे में मिट्टी में मिल जाती हैं. इतना ही नहीं इसमें टाटा और महिंद्रा की गहरी दिलचस्पी भी है. चलिए जानते हैं इसके बारे में...

‘कारों का श्मशान’, एक ऐसी जगह जहां कारों का अंतिम संस्कार किया जाता है. वेल्डिंग से लेकर पेंटिंग तक जिन कारों को तैयार करने में 18 से 35 घंटे और सैकड़ों को कर्मचारियों की मेहनत लगती है. उन कारों को महज 200 मिनट यानी करीब 3 घंटे के अंदर मिट्टी में मिला दिया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये करोड़ों रुपये का कारोबार है और टाटा-मारुति जैसी बड़ी कंपनियों की इसमें दिलचस्पी है.

दरअसल यहां बात हो रही हैं व्हीकल स्क्रैपिंग सेंटर की, जहां पुरानी कारों में से उपयोगी सामान निकाल उन्हें रिसाइक्लिंग के लिए भेज दिया जाता है. वहीं बचे हुए स्टील के खांचे को फिर से पिघलाने के लिए स्टील इंडस्ट्री के पास भेजकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया वैसी है जैसे मिट्टी से बने इंसान का मिट्टी में ही मिल जाना होता है.

भारत में व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी लागू हो चुकी है. देशभर में अलग-अलग जगहों पर स्क्रैपिंग सेंटर खुल रहे हैं. सरकार देशभर में 72 ऐसे स्क्रैपिंग सेंटर खोलने की मंजूरी दी है, इनमें से 38 अभी चालू हो चुकी हैं. ये सभी व्हीकल स्क्रैपिंग सेंटर्स 16 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में खुलने हैं. इनमें 34 अकेले उत्तर प्रदेश में, 6 हरियाणा में, 5-5 बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश में खोले जाने हैं.

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कैसे होता है कार का अंतिम संस्कार?

किसी स्क्रैपिंग सेंटर में कार को मिट्टी में मिलाने का एक पूरा प्रोसेस है. स्टेप-बाय-स्टेप एक-एक काम होता जाता है और आखिर में कार मिट्टी में मिल जाती है.

  1. स्क्रैपिंग सेंटर में सबसे पहले कार के टायर रिमूव किए जाते हैं.
  2. इसके बाद कार में इंजन ऑयल और अन्य लिक्विड पार्ट को हटाया जाता है.
  3. फिर कार के एयरबैग्स, बैटरी, प्लास्टिक के सामान और कांच को निकाला जाता है.
  4. कार के इलेक्ट्रिक डिवाइस को निकाल कर सभी को रिसाइक्लिंग के लिए भेज देते हैं.
  5. फिर कार से प्लेटिनम, रोह्डियम और पैलेडियम जैसी महंगी धातुओं को अलग किया जाता है.
  6. अब बचता है स्टील का खांचा, जिसे एक क्रशर से दबाकर फ्लैट कर दिया जाता है. इसके बाद ये स्टील फिर से पिघलने के लिए स्टील इंडस्ट्री को भेज दी जाती है.

मारुति-टाटा की है दिलचस्पी

दिल्ली से सटे नोएडा में मारुति सुजुकी ने टोयोटा ग्रुप के साथ जॉइंट वेंचर में ऐसा ही एक कार स्क्रैपिंग सेंटर खोला है. 3 एकड़ में फैले इस स्क्रैपिंग सेंटर में मारुति की ऑल्टो से लेकर हुंडई सैंट्रो और ओमनी कारों तक के ढेर लगे देखे जा सकते हैं. सालाना 10,000 कारों की स्क्रैपिंग फैसेलिटी डेवलप करने पर करीब 15 से 20 करोड़ की लागत आती है. ये स्क्रैप सेंटर ऑटो इंडस्ट्री के लिए नए वरदान बन रहे हैं. कंपनियों को कई क्रिटिकल कंपोनेंट इन्हीं जगहों से मिलने वाले हैं.

इतना ही नहीं टाटा ग्रुप की भी इन स्क्रैपिंग सेंटर में दिलचस्पी है. गुजरात में ऐसा ही एक स्क्रैपिंग सेंटर कंपनी ने लगाया है. टाटा ने इसे Re.Wi.Re ब्रांड नाम से देशभर में स्क्रैपिंग सेंटर खोलने की योजना बनाई है. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने भी वाहन को कबाड़ में बदलने के सेंटर खोले हैं. महिंद्रा एसेलो ने Cero ब्रांड नाम से इन सेंटर्स को खोला है. कंपनी की प्लानिंग 100 शहरों में अपनी प्रेजेंस बनाने की है. वहीं रोसमेर्टा कंपनी 200 करोड़ रुपये की लागत से ऐसी 10 स्क्रैपिंग फैसिलिटी लगा रही है.