महंगाई से आम लोगों की जेब पर आग, 30 साल के निचले स्तर पर पहुंची सेविंग
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेस लिमिटेड के अनुसार HH नेट फाइनेंशियल सेविंग वित्त 2023 की पहली छमाही में 30 साल के निचले स्तर पर आ गई है, जो जीडीपी का लगभग 4 फीसदी है.
भारतीय बढ़ती कीमतों की वजह से काफी परेशान दिखाई दे रहे हैं. यह कीमतें कंपनियों की ओर से इनपुट कॉस्ट में इजाफे की वजह से कर रही है. जिसका असर लोअर से मिड इनकम वाली आबादी पर साफ देखने को मिल रहा है, जिन्होंने कंजंप्शन कम कर दी है. इस आबादी की सेविंग पर बात करें तो 30 साल के निचले स्तर पर आ गई है.
हाल की तिमाहियों में सेविंग में कमी आने के साथ कंजंप्शन में यह ब्रॉड-बेस्ड मॉडरेशन भारत में के-शेप्ड की इकोनॉमिक रिकवरी को दिखा रहा है. भारतीय रिज़र्व बैंक की पॉलिसी रेट में लगातार बढ़ोतरी करने के बाद भी महंगाई में कमी नहीं आई है. नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने हाल की एक रिपोर्ट में कहा कि कुल मिलाकर, पोस्ट-कोविड, आर्थिक सुधार जेब में मजबूत हो सकता है, लेकिन यह कुल मिलाकर कमजोर ही है.
इस वजह से प्रभावित हो रही सेविंग
भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) महंगाई जनवरी में 6.5 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो दिसंबर में 5.72 प्रतिशत और पिछले साल नवंबर में 5.88 फीसदी थी. इसके अलावा, भारत की महंगाई वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में 7.2 प्रतिशत सालाना औसत रही है, जो पिछले दो वर्षों में 5.8 प्रतिशत थी. हाई इनपुट प्राइस और बढ़ती प्रोडक्शन कॉस्ट से निपटने के लिए, विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियां कीमतों को कंज्यूमर्स पर डाल रही हैं.
जिसकी वजह से पूरे भारत के मिडिल और लोअर मिडिल क्लास में कंजंप्शन और सेविंग प्रभावित हो रही है. इंडिया रेटिंग्स की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि के-शेप्ड की रिकवरी के कारण भारत में औद्योगिक विकास सुस्त रहने की उम्मीद है, जो न तो कंजंप्शन की मांग को बढ़ा रहा है और ना ही सैलरी हाइक में मदद कर रहा है.
डॉमेस्टिक सेविंग 30 साल के लोअर लेवल पर
टेलीकॉम, ऑटो, फ्यूल और एफएमसीजी जैसे विभिन्न सेक्टर के जरूरी सामानों की कीमतों में इजाफा होने से कंज्यूमर पर ज्यादा भार पड़ा है, जिसकी वजह से सेविंग में कमी आई है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेस लिमिटेड के अनुसार देश के लोगों की सेविंग 30 साल के लोअर लेवल पर चली गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि HH नेट फाइनेंशियल सेविंग वित्त 2023 की पहली छमाही में 30 साल के निचले स्तर पर आ गई है, जो जीडीपी का लगभग 4 फीसदी है.
वित्त वर्ष 2022 में यह सेविंग जीडीपी का 7.3 फीसदी और वित्त वर्ष 2021 में कुल जीडीपी का करीब 12 फीसदी थी. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में घरेलू कुल बचत घटकर जीडीपी का केवल 15.7 प्रतिशत रह गई, जो तीन दशकों में सबसे कम है. हालांकि, जहां फाइनेंशियल सेविंग प्रभावित हुई है, वहीं सोने और संपत्ति जैसी फिजिकल सेविंग जस की तस देखने को मिली है.
कंजंप्शन में स्लोडाउन
भारत की आर्थिक वृद्धि में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जो कि वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत से कम थी. जिसके पीछे आरबीआई रेपो रेट में इजाफा और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कमजोरी को कारण माना जा रहा है. ईटी की रिपोर्ट में सोसाइटी जेनरल के इंडिया इकोनॉमिस्ट इकोनॉमिस्ट कुणाल कुंडू कहते हैं कि घरेलू खपत में कमजोरी जिसे हम लंबे समय से उजागर कर रहे हैं, वह डेटा में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है. इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि महामारी की शुरुआत के लगभग तीन साल बाद खपत में वास्तविक रूप से कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है और प्री कोविड लेवल से बमुश्किल ऊपर है.
ग्रामीण खर्च में इजाफा खपत में कमी
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के विश्लेषण के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष के 9वें महीने में ग्रामीण खर्च में 5.3 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि कंजंप्शन तीसरी तिमाही में सिर्फ 4.6 फीसदी देखने को मिला जो तीन तिमाहियों में सबसे कम है. एजेंसी का तर्क है कि यह मंदी, वास्तविक कृषि जीवीए में चार-तिमाही कम वृद्धि, गैर-कृषि मजदूरी में निरंतर गिरावट और दोपहिया वाहनों की बिक्री में नौ-तिमाही कम वृद्धि के कारण है. इसके अलावा, किसानों के व्यापार की शर्तों में गिरावट देखी गई और वास्तविक कृषि निर्यात में भी गिरावट आई.