हिंडनबर्ग से कैसे निपटेंगे गौतम अडानी? ये 5 तरीके बदल सकते हैं तकदीर

हिंडनबर्ग से कैसे निपटेंगे गौतम अडानी? ये 5 तरीके बदल सकते हैं तकदीर

किस्मत कब पलटी मार जाए...इसे मौजूदा वक्त में उद्योगपति गौतम अडानी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. अब जब हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद उनके सितारे गर्दिश में हैं तो ये 5 तरीके उनकी तकदीर बदलने में कारगर हो सकते हैं. बता रहे हैं आर. श्रीधरन

संकट में फंसे अरबपति उद्योगपति गौतम अडानी अमेरिका में हिंडनबर्ग रिसर्च के साथ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस चुके हैं. इसकी वाजिब वजह भी है भई…आखिर हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट ने ना सिर्फ गौतम अडानी, बल्कि अडानी ग्रुप की पूरी दुनिया ही एक हफ्ते में बदल दी. इस रिपोर्ट के आने के बाद अडानी ग्रुप को 118 अरब डॉलर की मार्केट वैल्यू का नुकसान हुआ है. अब अडानी समूह को हिंडनबर्ग रिसर्च से हर्जाने के रूप में 150 अरब डॉलर चाहिए. लेकिन क्या संकट से बाहर आने का सही तरीका होगा? हम आपको बता रहे हैं वो 5 चीजें जो गौतम अडानी को तत्काल में निवेशकों का भरोसा दोबारा हासिल में मदद कर सकती हैं, जिससे अडानी ग्रुप अब Adani 2.0 बन सकता है. बता रहे हैं आर. श्रीधरन

बताया जा रहा है कि हिंडनबर्ग के खिलाफ केस लड़ने के लिए अडानी ग्रुप अमेरिका की सबसे महंगी लॉ फर्म वाचटेल, लिप्टन, रोसेन एंड काट्ज के साथ डील कर रहा है; इस कंपनी की सफलता को ऐसे समझ सकते हैं कि जब एलन मस्क ने Twitter Deal के 44 अरब डॉलर देने से मना कर दिया था, तब ट्विटर ने भी इसी फर्म की सहायता ली थी. माना जाता है कि वाचटेल के वकील काफी महंगे होते हैं. यह लॉ फर्म अमेरिका की सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली लॉ कंपनियों में से एक है. इस लॉ फर्म में काम करने वालों को औसतन हर साल 80 करोड़ डॉलर मिलते हैं.

हिंडनबर्ग से कानूनी लड़ाई का फायदा नहीं

जब तक अडानी समूह को हिंडनबर्ग रिसर्च से हर्जाने के 150 अरब डॉलर (मार्केट कैप का नुकसान और दूसरे मद में घाटा होने के लिए) असल में हासिल नहीं हो जाते, इस कानूनी लड़ाई का उसे तत्काल फायदा नहीं होने वाला है. उल्टा हिंडनबर्ग रिसर्च चाहेगा कि अडानी की कंपनियों में उसके दो साल के शोध में जो दस्तावेज सामने आए हैं उससे कहीं अधिक दस्तावेज (सुनवाई के दौरान सामने आने वाले कागजात) अडानी ग्रुप से जमा करवा ले, जिसका वह बाद में इस्तेमाल कर सके.

अडानी ग्रुप के काम के हैं ये 5 तरीके

ऐसे में हिंडनबर्ग रिसर्च के साथ उलझे रहने के बजाय अडानी ग्रुप के पास ये 5 अन्य तरीके हैं, जो निवेशकों और लोगों में कंपनी को लेकर दोबारा भरोसा पैदा कर सकें.

  1. बनाएं Adani 2.0: सबसे पहले गौतम अडानी अपने कारोबार को कंसोलिडेट करने का काम कर सकते हैं. इसका मतलब केवल मजबूत कंपनियों को साथ रखने का काम कर सकते हैं. बीते एक दशक में अडानी ग्रुप ने आश्चर्यजनक रूप से तेज ग्रोथ की है. अडानी ग्रुप हवाई अड्डों और बंदरगाहों, सीमेंट, ऊर्जा, बिजली, खाद्य तेल और मीडिया सहित कई प्रमुख क्षेत्रों में काम करता है. समूह के लिए ये मौका अपने कुछ व्यवसायों से बाहर आ जाने और कुछ पर ध्यान केंद्रित करने का एक अच्छा समय हो सकता है. (ऐसा करने से ग्रुप वास्तविक या काल्पनिक कॉरपोरे प्रतिद्वंद्वियों के निशाने पर से कुछ वक्त के लिए हट सकता है.)
  2. उधार चुकता करनाः खबर है कि अडाणी समूह पर 40 बिलियन डॉलर से अधिक का कुल ऋण है. यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से अधिक है. सच्चाई यह है कि यह पैसा ठोस संपत्ति बनाने/खरीदने में खर्च किया गया है. बेवजह बर्बाद नहीं किया गया है. इनसे लगातार कैश फ्लो आता रह सकता है. अडानी ग्रुप कुछ संपत्तियों (कुछ व्यवसायों के अलावा) को बेच कर कर्ज के बोझ को कम करके ब्याज के भुगतान के जोखिम को कम कर सकता है.
  3. ग्रुप को प्रोफेशनल बनाए: जैसा कि हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि समूह के कई प्रमुख कामकाज की देखरेख अडानी और उनके परिवार के सदस्य ही करते हैं. यह सच्चाई है कि परिवार के लोग जो ऊर्जा खर्च कर सकते हैं और जोखिम उठा सकते हैं, वह प्रोफेशनल्स नहीं उठा सकते. मगर हर बड़े और बढ़ते समूह में कभी ना कभी ऐसा वक्त आता है जब परिवार के सदस्यों को केवल अपने उपयुक्त भूमिका ही निभानी होती है. अडानी ग्रुप का जबरदस्त उदय गौतम अडानी की ऊर्जा के बिना संभव नहीं था. लेकिन बड़े वैश्विक और घरेलू निवेशकों के साथ अब देश के सबसे बड़े समूहों में से एक बनने के बाद अडानी को अपनी कंपनियों में भारत और दूसरी जगहों के प्रतिष्ठित पेशेवरों को प्रमुख पदों पर रखना चाहिए और कंपनियों के बोर्ड में परिवार के प्रतिनिधित्व को कम करना चाहिए.
  4. कॉरपोरेट गवर्नेंस को सुधारें: ब्रिटेन में पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भाई जो जॉनसन के एलारा कैपिटल पीएलसी (हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह से जुड़ी एक फर्म) के डायरेक्टर पद से हटने पर खूब हो हल्ला मचा. हकीकत ये है कि कंपनियों के बोर्ड में ऐसे लोगों की मौजूदगी कंपनी की पहुंच को सत्ता के गलियारों तक तो बनाती ही है. साथ ही उसे एक विश्वसनीयता भी प्रदान करती है. अधिकांश वैश्विक कंपनियां इसी तरह से काम करती हैं. इसलिए, अडानी समूह को अपनी कंपनियों के बोर्ड में भारत और दूसरे देशों के वरिष्ठ न्यायाधीशों, नौकरशाहों और सिविल सोसाइटी का एक लाइन-अप तैयार करना चाहिए.
  5. नए ऑडिटर को अप्वॉइंट करें: एक अरबों डॉलर की कंपनी का ऑडिटर एक 24 साल व्यक्ति को बनाने से निवेशकों का विश्वास हासिल नहीं किया जा सकता. भले वह 24 साल का ऑडिटर कितना भी प्रतिभाशाली क्यों ना हो. हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी समूह के बारे में बताई गई कमजोरियों में से एक यह भी है. ऐसे में बिना समय गंवाए अडानी को निवेशकों का विश्वास पाने के लिए शाह और धनधरिया को हटा कर तुरंत बिग फोर ऑडिट फर्मों में से एक को अपना ऑडिटर नियुक्त करना चाहिए.

अंत में, गौतम अडानी के पास दो विकल्प हैं. पहला या तो वह अपनी सारी मेहनत और पैसा हिंडनबर्ग के पीछे कानूनी लड़ाई में जाया कर दें, जहां पैसे वापस आने की कोई गारंटी नहीं है. दूसरा वह अडानी ग्रुप को Adani 2.0 बनाने में ऊर्जा और संसाधनों का उपयोग करें. मैं कोई अमेरिकन-ऑस्ट्रेलियन टॉप मैनेजमेंट कंसल्टेंट पीटर ड्रकर नहीं हूं, लेकिन कुछ मुझे लगता है कि दूसरा वाला विकल्प ज्यादा बेहतर है – भले ही यह सबसे आसान विकल्प नहीं हो.

Disclaimer: यहां सुझाए गए विकल्प लेखक के निजी विचार हैं. TV9 Network का इससे कोई संबंध नहीं है.