Ratan Tata Death: जब गैंगस्टर से हुआ था रतन टाटा का सामना… ऐसे छुड़ाए थे छक्के

Ratan Tata Death: जब गैंगस्टर से हुआ था रतन टाटा का सामना… ऐसे छुड़ाए थे छक्के

रतन टाटा हमेशा अपने स्टाफ के लिए मालिक नहीं, बल्कि परिवार के मुखिया के रूप में नजर आए. एक बार तो वह अपने कर्मचारियों के हितों के लिए एक गैंगस्टर से टकरा गए थे. जमशेदपुर प्लांट की इस घटना का जिक्र खुद रतन टाटा ने ही मीडिया कंपनी को दिए इंटरव्यू में किया था.

टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा भले ही अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनकी गाथा हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गई है. खासतौर पर उनकी कंपनियों में काम करने वाले लोग तो उन्हें कभी भूल ही नहीं पाएंगे. अपने कर्मचारियों के प्रति उनका व्यवहार उन्हें हमेशा जीवंत रखेगा. एक बार तो वह अपने कर्मचारियों के हितों के लिए बहुत बड़े गैंगस्टर से भिड़ गए थे. यह खुलासा उन्होंने खुद पिछले साल मीडिया से बातचीत के दौरान किया था. कहा कि जमशेदपुर में एक गैंगस्टर ने उन्हें हड़काने और प्रभाव में लेने की खूब कोशिश की थी, लेकिन वह भी डटे रहे.

यह वाकया उस समय का है, जब रतन टाटा ने जमशेदपुर में काम शुरू ही किया था. वहां पहुंचने के 15 दिन के अंदर ही ऐसी स्थिति बन गई कि उन्हें इस गैंगस्टर से टकराना पड़ा. दरअसल गैंगस्टर को खबर थी कि कंपनी के यूनियन के पास बहुत पैसा है. इसलिए वह हर हाल में यूनियन पर कब्जा करना चाहते थे. इससे कंपनी में यूनियन के लोग डरे हुए थे. यह खबर मिली तो वह खुद अपने कर्मचारियों के साथ आ गए. उन्होंने डटकर गैंगस्टर का मुकाबला किया. आखिर में गैंगस्टर को वहां से भागना पड़ा.

रतन टाटा को देख गैंगस्टर को भागना पड़ा

पिछले साल रतन टाटा ने एक मीडिया कंपनी को दिए इंटरव्यू में बताया कि टाटा मोटर्स के कारोबार को उस गैंगस्टर ने कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. वह अक्सर कर्मचारियों के साथ मारपीट करता था और उन्हें कंपनी में तालाबंदी के लिए उकसाता था. इसी क्रम में उसने करीब 2 हजार कर्मचारियों को अपने साथ भी मिला लिया था. ऐसे में उन्होंने प्लांट पर पहुंच कर खुद मोर्चा संभाला और वहीं पर डेरा जमा लिया. इससे कर्मचारियों का हौंसला बढ़ा और गैंगस्टर को वहां से भागने के लिए विवश होना पड़ा.

स्टॉफ को मानते थे परिवार का हिस्सा

टाटा की विभिन्न कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों के मुताबिक रतन टाटा स्टॉफ के लिए कभी मालिक के रूप में नजर नहीं आए. वह हमेशा ही एक संरक्षक के रूप रहे. अपनी कंपनी में कोई भी नई नीति लागू करते समय वह हमेशा ही कर्मचारियों के हितों को प्राथमिकता में रखते. कई बार इसके लिए मैनेजमेंट से भी उनका टकराव हुआ. रतन टाटा ऐसे शख्सियत थे, जिन्हें अपनी कंपनियों का मैनेजमेंट ही नहीं, अदना कर्मचारी भी इज्जत करता था. इतनी दौलत-शोहरत हासिल करने के बाद भी वह हमेशा अपना जीवन आम इंसान की तरह जीते रहे. अपने इन्हीं गुणों के दम पर उन्होंने देश के सबसे पुराने कारोबार घराने टाटा ग्रुप को एक नए मुकाम पर पहुंचाया.