मैनपुरी जेल से अतीक का रिकॉर्ड गायब, 15 साल पहले किया गया था शिफ्ट

मैनपुरी जेल से अतीक का रिकॉर्ड गायब, 15 साल पहले किया गया था शिफ्ट

जेल सुपरिटेंडेंट कोमल मंगलानी कहते हैं कि जेल मैनुअल के हिसाब से अपराधी बाहर से आते है, तो उन अपराधियों का डाटा सिर्फ दो साल तक ही सुरक्षित रखा जाता है. उसके बाद डाटा डिस्पोज कर दिया जाता है.

मैनपुरी: बहुजन समाज पार्टी (बसपा)विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या के आरोपी अरबाज के एनकाउंटर के बाद यूपी में एक बार फिर माफिया और पूर्व सांसद अतीक अहमद का नाम गूंजा है. इस हत्याकांड के बाद गुजरात की साबरमती जेल में बंद अतीक अहमद को लेकर उत्तर प्रदेश प्रशासन भी अपने रिकॉर्ड खंगालने में जुट गया है. इस बीच मैनपुरी जिला कारागार की बड़ी लापरवाही सामने आई है. साल 2008 में अतीक को बांदा से मैनपुरी जेल शिफ्ट किया गया था. उस वक्त अतीक से मिलने वालों की लंबी कतार थी, लेकिन 15 साल पुराने दस्तावेज गायब पाए गए.

मामले पर जेल सुपरिटेंडेंट कोमल मंगलानी कहते हैं कि जेल मैनुअल के हिसाब से अपराधी बाहर से आते है, तो उन अपराधियों का डाटा सिर्फ दो साल तक ही सुरक्षित रखा जाता है. उसके बाद डाटा डिस्पोज कर दिया जाता है. जेल सुपरिटेंडेंट ने यह भी बात भी कही कि फिलहाल, हम पुराने डाटा को खंगालने का काम कर रहे हैं, जैसे ही मिलता है, उसके बाद उपलब्ध करा दिया जाएगा.

उमेश हत्याकांड से फिर यूपी में गूंजा अतीक का नाम

आपको बता दें कि 24 फरवरी को उमेश पाल और उनके एक सुरक्षाकर्मी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस हमले में एक अन्य सुरक्षाकर्मी गंभीर रूप से घायल हुआ जिसे रविवार को लखनऊ के लिए रेफर कर दिया गया था. इस हत्याकांड को लेकर उमेश पाल की पत्नी जया पाल ने 25 फरवरी को धूमनगंज थाना में एफआईआर दर्ज कराई जिसमें पूर्व सांसद अतीक अहमद, अतीक के भाई अशरफ, अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन, अतीक के दो बेटों, अतीक के साथी गुड्डू मुस्लिम और गुलाम और 9 अन्य साथियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 147, 148, 149, 302, 307, 506, 120-बी, 34, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 की धारा तीन और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 1932 की धारा सात के तहत मामला दर्ज कराया था.

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तांगा चलाने वाले का बेटा बना माफिया

मालूम हो कि प्रयागराज के चकिया निवासी 10वीं फेल अतीक अहमद 17 साल की उम्र में क्राइम की दुनिया में कदम रखा. पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर परिवार का पेट पालते थे, लेकिन अतीक जल्दी अमीर बनने की चाहत रहने लगा. इसी कड़ी में रंगदारी, लूट, अपहरण के रास्ते गरम खून वाला अतीक आगे बढ़ने लगा. साल 1979 में पहला हत्या का मुकदमा उसपर दर्ज हुआ. पुलिस के लिए अपराध का अभिप्राय बने चांद बाबा की शरण में अतीक चला गया. साल 1986 में पुलिस ने अतीक को पहली बार गिरफ्तार किया. तीन साल बाद अतीक को राजनीति में उतरने का मौका मिला. साल 1991 और 1993 में अतीक निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरा और जीत हासिल की. साल 1996 में अतीक को समाजवादी पार्टी का साथ मिला और विधायक की कुर्सी हासिल की थी. कई खौफनाक वारदातों को अंजाम देकर अतीक अपराध की दुनिया का बादशाह बन गया.

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