SATIRE: भागवत का ब्रह्म ज्ञान, कमंडल में मंडल को उतारने की हो रही तैयारी
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा कि जातियां तो ब्राह्मणों ने बनाई, इस पर मामला और भी गर्मा गया है. पढ़ें यह रोचक SATIRE...
ओ माई गॉड गजब हो गया. गांव के पीपल पर वास करने वाले ब्रह्मदेव भी भी निकल निकल कर आ रहे हैं. ये क्या बोल दिया भागवतजी ने. भेदभाव वाली जाति व्यवस्था के लिए ब्राह्मण जिम्मेदार हैं!! तीनों लोक में तूफान उठ गया है. ब्रह्मलोक में बैठक बुलाई गई है. मर्त्य लोक में भी जल्द ही ब्रह्मर्षि सभा आयोजित होने जा रही है. जनेऊ हाथ में लेकर गायत्री पाठ कर श्राप देने की तैयारी है.
दरसल, पिछले आठ साल में लगा था कि हमारी इंडियन कल्चर और हैरिटेज को मोदीजी औऱ बीजेपी ने रिइन्वेंट कर लिया है. लेकिन सडेनली ब्राह्मिन्स हैव बिकम कलप्रिट ऑफ सोशल डिस्क्रिमिनेशन!! आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कह दिया कि जातियां तो ब्राह्मणों ने बनाई, जो गलत है. अब ये बात उसे बताई जा रही है जो ब्रह्म को जानता है. ब्रह्मम् जानाति इति ब्राह्मण:. ब्राह्मण नाराज हैं कि भागवतजी के ब्रह्मज्ञान के पीछे आखिर क्या राज है.
बताईए आठ साल से बीजेपी के शासनकाल में लगा कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति का पुनरोदय हो गया है. संसद से लेकर सड़कों तक मारपीट के माहौल में जय श्रीराम के नारे लगने लगे हैं. श्रद्धालु पुलिस वाले भी पहले जयकारा लगाते हैं. फिर हुड़दंगियों को शांत कराते हैं. कहते हैं-शांतम् पापम्, शांतम् पापम्. कहीं भी मनुस्मृति दहन नहीं होने दिया जाता. ब्राह्मण शान से लंबी चोटी रखने लगे हैं. लोग तिलक-त्रिपुंड लगा कर घरों से निकलने लगे हैं. मोर के आंसुओं से बच्चे पैदा हो रहे हैं. अर्थव्यवस्था गाय पर आधारित हो गई है. वो स्वतंत्र विचरण के लिए मुक्त कर दिया है. अगर गाय खेत नहीं खा पाती तो किसान की आय दोगुनी हो जाती है. लेकिन एक स्वामी प्रसाद मौर्य की जातिवादी राजनीति का असर देखिए. भागवतजी की भी बोली बदल गई. स्वामी भी चौड़े हो गए, कहने लगे कि भागवतजी ने हमारी बात का समर्थन किया है.
कैसे होगा कॉम्युनिकेशन कंपलीट
भागवतजी ने धर्म की आड़ में महिलाओं, आदिवासियों, दलितों व पिछड़ों को गाली देने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों व ढोंगियों की कलई खोल दी है. मौर्य ने इसके बाद राम चरित मानस से ढोर-गंवार-शूद्र-पशु-नारी वाली चौपाई हटवाने की मुहिम छेड़ दी है. स्वामी की प्रतिक्रिया आने के बाद संघ से संवाद पूरा हो गया. जनसंचार की थ्योरी है कि सूचना का दोनों तरफ से होने पर ही कॉम्युनिकेशन कंपलीट मानना चाहिए. आरएसएस का मंडल वाला संदेश पिछड़ों ने समझ लिया है. लेकिन ब्रह्म को जानने वाले ब्राह्मणों को ये मॉडर्न टैक्नॉलॉजी समझ नहीं आई. कोई दुर्वासा बन कर घूम रहा है तो कोई जमदग्नि. कोई परशुराम बन कर बरसा रहा है मुखाग्नि.
तो ब्राह्मण संघ के नेता सुनील आंबेकर की पंडित शब्द की व्याख्या से और कन्फ्यूज़ हो गए हैं. आंबेकर ने पंडितों को समझाया कि भागवतजी ने ब्राह्मणों को गलत नहीं बताया. उन्होंने तो पंडित शब्द का प्रयोग किया है. जिसका अर्थ होता है विद्वान, तो भागवतजी ने कहा है कि कुछ विद्वान जाति आधारित ऊंच नीच की बात करते हैं. लेकिन मराठी कम जानने वाले पत्रकारों ने अर्थ का अनर्थ कर दिया. आंबेकर समझ रहे हैं कि ब्राह्मण चोटी रखते हैं तो इन्हें चोटिया बनाया जा सकता है. लेकिन ऐसा नहीं है. राम मंदिर बनाने तक और यूपी में सत्ता पर काबिज होने तक ब्राह्मणों के पैर धो कर पिए जा रहे थे. दरसल पोंगा शब्द पुंगव से बना है. पुंगव यानि श्रेष्ठ. लेकिन व्यंग्य में पंडित को पोंगा कहा जाने लगा.
कमंडल को किया जा रहा मॉडीफाई
संघ भी इस अर्थ से अछूता ना रहा. अब 2024 में मंडल का दैत्य बीजेपी को डरा रहा है. तो कमंडल को मॉडीफाई किया जा रहा है. समझा जा रहा कि पोंगे पंडितों को मना लेंगे, और इधर से पिछड़े- दलित के वोट भी उठा लेंगे. इसके लिए रामचरित मानस से भी हाथ धोए जा रहे हैं. ब्राह्मण ध्यान-धारणा और समाधि से भी समझ नहीं पा रहे हैं. मानस में जातिवाद का मुद्दा स्वामी प्रसाद के उठाने पर ही भागवत जी को ये ब्रह्मज्ञान क्यों हुआ. जब ज़रूरत थी तब तो सनातन धर्म में अपना सैनिक हिंदुत्व का मिक्स्चर तैयार कर पंडितों से खूब मार्केटिंग कराई. आज बुरी हो गई पंडिताई. और संघ का मतलब अच्छाई.
एक दुर्वासा कह रहे हैं कि नई चुनावी स्रष्टि पैदा करने वालों को समझा देना. कहना कि ब्राह्मण वशिष्ठ के रूप में वो शक्ति हो जो सिर्फ अपना दंड ज़मीन पर गाड़ देता है तो विश्वामित्र के सारे अस्त्र-शस्त्र चूर हो जाते हैं. धिक बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलं बलं। एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्वस्त्राणि हतानि में. लेकिन अब बौराए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत. दलित-पिछड़ों के वोट बैंक में सेंध लग चुकी है. अब लोकतंत्र के हरण के लिए हिंदुत्व की नहीं मंडल की ज़रूरत है.
पिछड़ों को जिन्न और खुद को अलादीन समझ रही बीजेपी
सो कमंडल में मंडल का प्रेत उतारने की कोशिश चल रही है. पिछड़ों को जिन्न और खुद को अलादीन बीजेपी समझ रही है. और समझे क्यों ना. इससे पहले राजा मांडा ठाकुर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी जातिवादी व्यवस्था को ब्राह्मणवादी व्यवस्था बताया था. जिसके बाद मंडल का जिन्न बोतल से निकल आया था. अब ब्राह्मणों के श्राप की भी बीजेपी को परवाह नहीं. 2024 में सत्ता परिवर्तन की आशंका से आतंकित है. ना मानस पर रहा विश्वास, ना ही ब्राह्मण से कोई आस.
ऐसे में कांग्रेस को भी ब्राह्मणों का फिर से आशीर्वाद मिलने की उम्मीद जगी है. ब्राह्मणों में राम मंदिर के नाम पर जगी बीजेपी के लिए आस्था धूमिल अब पड़ी है. दिग्विजय सिंह पूछ रहे हैं-भागवतजी आजकल कौन सा शास्त्र पढ़ रहे हैं. ज़रा नाम तो बताएं, उस श्लोक का अर्थ हमें भी समझाएं. तो कांग्रेस ने इसे संघ की जातिवादी सोच बताया है. बहरहाल हमारा ब्रह्मज्ञान कहता है कि 2025 में आरएसएस के शताब्दी वर्ष धूमधाम से मनाने की तैयारियां तेज़ हो गई है. इसीलिए संघ-बीजेपी की भाषा बदल गई है. अगले आम चुनाव में जीत के लिए विपक्ष ने जातिजनगणना का मुद्दा तेज़ी से उठाना शुरू कर दिया है. हिंदुत्व के वोटों में बंटवारे के डर से पिछड़ों को मनाना शुरू कर दिया गया है. लेकिन आरएसएस के शीर्ष पर बैठे चितपावनी ब्राह्मणों को चिंता सता रही हैं. पिछड़ों को संघ संचालक बनाने की भी मांग भी अंदर ही अंदर भड़क रही है. ऐसे में आने वाले वक्त में उनकी भी बारी है.