हरियाणा में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर बसपा-इनेलो गठबंधन कहीं लगा न दे ग्रहण?
हरियाणा विधानसभा चुनाव बसपा और इनेलो मिलकर लड़ने की प्लानिंग बन रहे हैं. इसी सिलसिले में इनेलो के महासचिव अभय सिंह चौटाला बसपा सुप्रीमो मायवती से मुलाकात कर चुके हैं. अगर दोनों दल गठबंधन कर चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जाएगा.
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भले ही अभी तीन महीने का समय है, लेकिन सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. लोकसभा चुनाव नतीजों से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और अपनी वापसी के लिए बेताब है, तो बीजेपी सत्ता की हैट्रिक लगाने की कवायद में है. वहीं, बसपा और इनेलो के बीच मिलकर चुनाव लड़ने की प्लानिंग बन गई है, जिसकी औपचारिक घोषणा चार-पांच दिन में हो सकती है. इनोलो और बसपा अगर गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरते हैं तो कांग्रेस की उम्मीदों पर सियासी ग्रहण लग सकता है और बीजेपी के लिए मुफीद हो सकता है, क्योंकि दोनों का वोट बैंक एक ही है.
बसपा प्रमुख मायावती और इनेलो के महासचिव अभय सिंह चौटाला की लखनऊ में मुलाकात हुई है. इस दौरान दोनों दलों के बीच मिलकर चुनाव लड़ने की सहमति बनी है. ऐसे में इनेलो की कोशिश हरियाणा में तीसरा मोर्चा गठन करने की है और सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. बसपा के साथ हरी झंडी मिलने के बाद उसकी अब गैर कांग्रेसी और गैर- भाजपाई दलों को एकजुट करने की कवायद में है. इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष रामपाल माजरा ने ट्वीट पर लिखा है, ‘हम समान विचारधारा के लोगों को एक मंच पर इकट्ठा कर रहे हैं. प्रदेश के सभी गैर भाजपा एवं गैर कांग्रेस संगठनों, जिसमें सियासी संगठनों के साथ-साथ सामाजिक संगठनों से आग्रह है कि वे सभी साथ आएं.’
किसका-कितना वोट शेयर
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को पांच-पांच सीटें मिली हैं. राज्य की 10 लोकसभा सीट में से बसपा 9 सीट पर चुनाव लड़ी, जबकि इनेलो ने सात सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन दोनों ही दल खाता खोलने में नाकाम रहे. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने से दोनों ही दलों का वोट बढ़ा है, जबकि अन्य क्षेत्रीय दलों का वोट घटा है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग पैटर्न पर होते हैं. इनोले और बसपा के साथ आने से हरियाणा का सियासी खेल पूरी तरह से बदल सकता है क्योंकि कांग्रेस और इनेलो-बसपा का सियासी आधार एक ही वोट बैंक पर है.
2014 में इनेलो ने कांग्रेस से ज्यादा विधानसभा सीटें जीती थीं और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी, लेकिन 2019 में हरियाणा के सियासी समीकरण बदल गए थे. इनेलो के दो धड़ों में बंट जाने के चलते सियासी नुकसान उठाना पड़ा था. हरियाणा में 90 विधानसभा सीटें हैं. 2019 में बीजेपी 36.49 फीसदी वोटों के साथ 40 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस 28.08 फीसदी वोट शेयर के साथ 31 सीट पर रह गई थी. कांग्रेस को 16 सीट का फायदा हुआ था तो इनेलो को सियासी घाटा हुई था. बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी.
2019 में चुनाव से पहले टूटा था गठबंधन
बसपा 2019 में भले ही हरियाणा में एक सीट नहीं जीत पाई हो, लेकिन उसे 4.21 फीसदी वोट मिला था. बसपा का सूबे में साढ़े चार से पांच फीसदी के करीब वोट शेयर 1989 से है. इनेलो को पिछले चुनाव में 2.44 फीसदी वोट मिला था, लेकिन उससे पहले 24 फीसदी वोट था. कांग्रेस 2024 में दलित और जाट वोटों के दम पर ही 5 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही है. इसी समीकरण पर कांग्रेस विधानसभा चुनाव लड़ने की भी प्लानिंग बनाई है, लेकिन बसपा और इनेलो के सियासी आधार जाट-दलित है. इसीलिए बसपा-इनेलो के साथ आने कासबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को होगा. बीजेपी के खिलाफ हरियाणा में विपक्षी दलों का वोट बंटता है इसका फायदा बीजेपी को होता है और कांग्रेस को नुकसान पहुंचता है.
हरियाणा की सियासत में बसपा 1989 के लोकसभा चुनाव से किस्मत आजमा रही है. साल 1998 के चुनाव में बसपा ने इनेलो के साथ गठबंधन किया और तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, इनमें से एक सीट उसे मिली थी. 2019 के लिए फिर से दोनों दलों ने आपस में हाथ मिलाया था, लेकिन चुनाव से पहले ही गठबंधन टूट गया था. हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर के वोट पाने की जहां कांग्रेस हर संभव कोशिश कर रही है तो इनेलो-बसपा ने फिर से हाथ मिलाया है. माना जा रहा है कि दोनों के बीच सीट शेयरिंग का 50-40 का फॉर्मूला बन सकता है. इनेलो 50 सीट पर और बसपा 40 सीट पर चुनाव लड़ सकती है. 2019 चुनाव में इनेलो से ज्यादा बसपा को वोट मिला था.
बसपा-इनेलो बिगाड़ सकती हैं कांग्रेस का खेल
इनेलो ने 2024 के लोकसभा चुनाव में 1.74 फीसदी वोट मिले थे और 2019 के विधानसभा चुनाव में 2.44 फीसदी ही वोट हासिल किए थे. बसपा को लोकसभा में इस बार 1.28 फीसदी वोट मिला है और 2019 के विधानसभा चुनाव में 4.21 फीसदी वोट मिला था. 2019 के विधानसभा चुनाव 40 हजार से ज्यादा वोट बसपा को एक सीट पर मिला था और इनेलो को दो सीट पर. 5 हजार से 40 हजार के बीच वोट बसपा को 20 सीट पर तो इनेलो को पांच सीट पर मिला था. हालांकि, दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं और अगर इस बार एक होकर चुनाव लड़ते हैं तो फिर कम से कम 25 से 30 विधानसभा सीट पर सियासी उलटफेर हो सकता है.
हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनाव में करीब 10 सीटें ऐसी हैं जहां जीत-हार का अंतर 2.5 हजार वोटों से भी कम रहा था. इनमें से कुछ सीटों पर तो कांग्रेस को ही शिकस्त मिली है. अगर यह सीटें कांग्रेस जीतती तो वह सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बन सकती थी. ऐसे में 20 विधानसभा सीट पर जीत-हार का अंतर 5 हजार से कम का था. बसपा और इनेलो के साथ मिलकर 2024 के विधानसभा चुनाव लड़ने से कांग्रेस का सियासी खेल गड़बड़ा सकता है, तो बीजेपी को सत्ता की हैट्रिक लगाने का मौका बन सकता है?