लालू मिलते नहीं और नीतीश मुलाकात के लिए जा रहे घर, आनंद मोहन के साथ कैसा हो रहा खेल?

लालू मिलते नहीं और नीतीश मुलाकात के लिए जा रहे घर, आनंद मोहन के साथ कैसा हो रहा खेल?

लालू यादव जानते हैं कि आनंद मोहन पर एक दलित अधिकारी की हत्या के सजायाफ्ता मुजरिम हैं. ऐसे में जाहिर तौर पर अगर आनंद मोहन के साथ लालू यादव खड़े दिखेंगे तो उनकी पिछड़ी जाति वाली छवि को नुकसान पहुंचेगा. लालू प्रसाद यादव इस बार के लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहते हैं.

बिहार की राजनीति में एक बार फिर आनंद मोहन चर्चा में हैं. दरअसल बाहुबली नेता और पूर्व सांसद आनंद मोहन के पिता एवं स्वतंत्रता सेनानी रामबहादुर सिंह की मूर्ति का 27 अक्टूबर को सहरसा जिले में स्थित पैतृक गांव में अनावरण होना है. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि जिस आनंद मोहन को लेकर पिछले काफी समय से लालू प्रसाद यादव हमलावर हैं, उन्हें नीतीश कुमार क्यों पुचकारते हुए दिखाई दे रहे हैं?

नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच चल रहे इस खेल को समझना है तो बिहार के राजनीति समीकरण को जानना जरूरी हो जाता है. लालू यादव को जातीय गणित का मास्टर माइंड कहा जाता है. लालू यादव बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं कि वोटों को कैसे साधा जाता है. लालू के इस जादू को जानना हो तो लालू प्रसाद यादव के उस दौर को जरूर याद करना चाहिए, जिस समय आरजेडी सबसे बुरे दौर से गुजर रही थी. उस वक्त उन्हें मात्र 22 सीट मिली थीं लेकिन उनका वोट 25 प्रतिशत के आसपास था.

नाराजगी से ज्यादा राजनीति बन रही वजह

जातीय गोलबंदी की बात हो या वोटों को अपने आसपास बांधना हो, इस कला में लालू प्रसाद यादव का कोई तोड़ नहीं है. बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव एक स्टार हैं. लालू यादव ने पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से आनंद मोहन को नकारा है उससे पता चलता है कि वो आनंद मोहन के परिवार से किस हद तक नाराज हैं. लालू यादव ने जब कभी भी आनंद मोहन और उनके परिवार पर हमला बोला है तो उसके पीछे उनकी नाराजगी से ज्यादा राजनीति छिपी दिखती है. दरअसल लालू यादव पिछड़ी जाति के मसीहा बने रहना चाहते हैं. यही कारण है कि जब राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने ठाकुर का कुंआ कविता पढ़ीं और उस पर जिस तरह से आंनद मोहन ने प्रतिक्रिया दी, तो लालू यादव ने मनोज झा का साथ दिया.

आनंद मोहन ने जो प्रतिक्रिया दी थी वो पूरी तरह से ठाकुरों की तरफ से थी. ठाकुर मतलब राजपूत समाज यानि अगड़ा समाज. मनोज झा का समर्थन कर लालू प्रसाद यादव ने बता दिया है की उनकी राजनीति ओबीसी पॉलिटिक्स के इर्द-गिर्द ही घूमती है. इसके साथ ही उन्होंने साफ संदेश दे दिया कि वो आनंद मोहन और उनके परिवार को किसी भी सूरत में तवज्जो देना नहीं चाहते हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है.

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आनंद मोहन से क्यों दूरी बना रहे लालू यादव

लालू यादव जानते हैं कि आनंद मोहन पर एक दलित अधिकारी की हत्या के सजायाफ्ता मुजरिम हैं. ऐसे में जाहिर तौर पर अगर आनंद मोहन के साथ लालू यादव खड़े दिखेंगे तो उनकी पिछड़ी जाति वाली छवि को नुकसान पहुंचेगा. लालू प्रसाद यादव इस बार के लोकसभा चुनाव में दलितों के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहते हैं. ऐसे में वो नहीं चाहते कि दलितों के बीच उनकी छवि खराब हो. यही कारण है कि वो आनंद मोहन के साथ खड़े दिखाई नहीं दे रहे हैं. लालू प्रसाद यादव जानते हैं कि अगर दलितों के 19 प्रतिशत वोट बैंक में सेंधमारी नहीं की गई तो इसका नुकसान सीधे तौर पर महागबंधन को होगा.

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आखिर आनंद मोदी के करीब क्यों आ रहे नीतीश

अब यहां जानना जरूरी हो जाता है कि नीतीश कुमार आखिर आनंद मोहन को इतना पुचकार क्यों रहे हैं. नीतीश कुमार के राजनीति करने के तरीकों को देखें तो वो अति पिछड़ों के साथ ही एंटी यादव की भी पॉलिटिक्स करते रहे हैं. अब जब उन्होंने लालू यादव के साथ गठबंधन किया है तो उनके सामने बड़ी चुनौती ये है कि वो अति पिछड़ों को कैसे साधेंगे. दरअसल नीतीश कुमार को अगड़ों से भी वोट मिलता है. आनंद मोहन सिंह के लिए नियमों में परिवर्तन इसलिए किया गया है क्योंकि नीतीश कुमार राजपूतों के 4 प्रतिशत वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहते हैं. बिहार की जातीय जनगणना में राजपूत 4 प्रतिशत के आसपास दिखाए गए हैं. दरअसल राजपूत समाज पिछले 10 सालों से बीजेपी के पक्ष में वोट करता रहा है, जबकि जेडीयू से राजपूत समाज अब छिटकता दिख रहा है. नीतीश जानते हैं कि अगर राजपूत समाज में सेंधमारी होती है तो इसका सीधा नुकसान बीजेपी को होगा.

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दोनों नेता अपने वोट बैंक साध रहे

यहां जानना होगा कि दोनों नेता एक साथ है और अपने-अपने वोट बैंक को साधने में लगे हुए हैं. दोनों ही नेता जानते हैं कि चुनाव के दौरान अपने-अपने वोट बैंक को समेटा गया तो इसका सीधा फायदा इंडिया गठबंधन को होगा. यही कारण है कि लालू यादव दलितों के वोटबैंक में सेंधमारी करना चाह रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार राजपूतों में सेंधमारी चाहते हैं.