सर्दी में भी गर्मी का अहसास! दिसंबर में महज दो दिन…फरवरी में मई जैसी ‘आग’

सर्दी में भी गर्मी का अहसास! दिसंबर में महज दो दिन…फरवरी में मई जैसी ‘आग’

आने वाले 20-25 सालों में ग्लेशियर और सिकुड़ते चले जाएंगे. अप्रैल 2022 दुनिया भर में छठा सबसे गर्म अप्रैल था. 1975 से 2000 तक पूरे क्षेत्र के ग्लेशियरों पर हर साल 10 इंच बर्फ कम हुई है.

मौसम में तेजी से बदलाव एक बड़ी समस्या खड़ी करता चला जा रहा है. आमतौर पर दिसंबर के महीने में कड़ाके सर्दियों का अहसास होता था. हाड़ कंपा देने वाली ठंड घर से निकलना दूभर कर देती थी, लेकिन ये सब अब कहानी जैसा प्रतीत होने लगा है. पिछले साल दिसंबर असमान्य रूप से गर्म रहा है. पूरे महीने शीत लहर नहीं थी. अब फरवरी में दिन में आसमान से ‘आग’ बरसने लग गई. सूर्य का तेज लोगों के पसीने छुड़ा रहा है. मौसम विभाग का कहना है तापमान आने वाले 4-5 दिनों में 10 से 12 डिग्री बढ़ सकता है.

मौसम विभाग का कहना है कि मैदानी और पहाड़ी इलाकों में तापमान बढ़ता जा रहा है. पिछले 50 सालों में मैदानी इलाकों में 0.5 और पहाड़ों पर 0.3 डिग्री सैल्सियस ऊपर गया है. यही हालात रहे तो आने वाले समय में पहाड़ अपना मूल स्वरूप खोते चले जाएंगे और बड़ी आपदा को भी दावत मिल सकती है. उत्तराखंड में हालात ऐसे हैं कि केदारनाथ को छोड़ दिया जाए तो तीनों धामों में फरवारी देखने को भी नहीं मिली है, जहां औसतन 20 फीसदी बर्फ गिरती थी.

अब जलवायु परिवर्तन का असर साफ देखने को मिलने लगा है. इस बार पहाड़ों पर बर्फबारी भी कम हुई है. जम्मू-कश्मीर में 30 फीसदी, हिमाचल में 21 फीसदी और उत्तराखंड में 33 फीसदी बर्फ गिरी है, जोकि औसत से कम है. वहीं, मौसम विभाग ने कुल मिलाकर 70 फीसदी बर्फबारी रिकॉर्ड की है. पहाड़ों पर ठंड ऊपर की सतह की तरफ चढ़ती जा रही है. यही वजह है कि बर्फबारी कम हो रही है.

सर्दियों में भी पहाड़ों पर पिघलना शुरू हो जाएगी बर्फ

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 20-25 सालों में ग्लेशियर और सिकुड़ते चले जाएंगे और सर्दियों के समय पहाड़ पर जमी बर्फ भी पिघलना शुरू हो जाएगी. हिमालय क्षेत्र में विशेष रूप से हिंदू कुश हिमालय में तापमान तेजी से बढ़ रहा है. 1901 से 2014 तक लगभग 0.1 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक बढ़ना था, लेकिन 1951 से 2014 तक लगभग 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक बढ़ा है, जोकि चिंता का विषय है.

अप्रैल 2022 दुनिया भर में छठा सबसे गर्म अप्रैल था. कॉपरनिकस के आंकड़ों के अनुसार, अंटार्कटिक समुद्री बर्फ तेजी से पिघल रही है. अप्रैल में बर्फ का स्तर 1991-2020 के औसत से 13 प्रतिशत कम दर्ज किया गया था. अंटार्कटिका से लेकर हिमालय तक अधिक तापमान और हीट वेव लगातार बढ़ रही हैं. इसके अलावा, पिछले पांच दशकों के दौरान बर्फ का पिघलना और ग्लेशियरों टूटना आपदाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय जल संसाधनों के लिए एक बड़े खतरा पैदा है.

साल 2000 से तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में लैमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी के शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च की थी. इसमें बताया गया था कि हिमालय के 2,000 किलोमीटर से अधिक के 650 ग्लेशियरों की सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण किया था. उन्होंने पाया था कि 1975 से 2000 तक पूरे क्षेत्र के ग्लेशियरों पर हर साल 10 इंच बर्फ कम हुई है. इसके बाल साल 2000 से आंकड़ा दोगुना हो गया और 20 इंच बर्फ कम होना शुरू हो गई. रिसर्च में यह भी पता चला कि फॉसिल फ्यूल के जलने से निकलने वाले धुएं ने बर्फ को तेजी से पिघलाया और बड़ा फैक्टर तापमान बढ़ना भी रहा.