आजादी से 5 साल पहले स्वतंत्र हो गई थी UP की ये तहसील, 8 सेनानियों ने अंग्रेजों को खदेड़ कर फहराया था तिरंगा

आजादी से 5 साल पहले स्वतंत्र हो गई थी UP की ये तहसील, 8 सेनानियों ने अंग्रेजों को खदेड़ कर फहराया था तिरंगा

अगस्त क्रांति की लहर बलिया के साथ पड़ोसी जिले गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में भी थी. जब बलिया वालों ने डीएम को कुर्सी से उतार फेंका था, ठीक उसी समय मोहम्मदाबाद के लोगों ने भी तहसील पर कब्जा करते हुए तिरंगा लहरा दिया था. हालांकि इस दौरान 8 सेनानियों को गोली लगी थी.

आजादी का आंदोलन साल 1942 में अपने चरम पर था. मुंबई में महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा दिया. इसी संबंध में वह 8 अगस्त को वहां एक रैली को संबोधित करने वाले थे. इसी बीच अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, सरदार पटेल समेत तमाम बड़े नेताओं को अरेस्ट कर लिया. यह खबर जैसे ही बलिया पहुंची, लोग आक्रोशित हो गए. यह आक्रोश केवल बलिया ही नहीं, पड़ोसी जिले गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में भी देखा गया. एक तरफ बलिया में 19 अगस्त को चित्तू पांडे ने बलिया के डीएम को खदेड़ कर कलक्ट्रेट पर तिरंगा फहराया, वहीं दूसरी ओर मोहम्मदाबाद में भी शिवपूजन राय, श्रृषेश्वर राय, वंश नारायण राय पुत्र ललिता राय, वशिष्ठ नारायण राय, वंशनारायण राय पुत्र रघुपति राय, नारायण राय, राजदयाल राय, रामबदन उपाध्याय आदि सेनानियों ने तहसील पर कब्जा कर अंग्रेजों से मुक्त करा लिया था.

गांधी जी के आह्वान पर मोहम्मदाबाद तहसील क्षेत्र में शेरपुर गांव के उत्साही युवा 11 अगस्त 1942 को इस आंदोलन में शामिल हुए थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक 18 अगस्त 1942 की सुबह डॉ. शिवपूजन राय की अगुवाई में हजारों की संख्या लोग मोहम्मदाबाद तहसील पर झंडा फहराने पहुंच गए थे. अंग्रेज तहसीलदार ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन जब सफल नहीं हुआ तो गोली चलवा दी. इस गोलीकांड में एक एक कर 8 सेनानी शहीद हो गए और आखिरकार बचे हुए सेनानियों ने तहसील पर कब्जा कर लिया. इन सेनानियों में से एक सीताराम राय को जीवित शहीद का दर्जा मिला था.

Shahid

शहीद स्मारक में लगी शहीदों की सूची

मरा हुआ जानकर नदी में फेंक गए अंग्रेज

दरअसल इन्हें अंग्रेजों ने मरा हुआ जानकर नदी में फेंक दिया था, जबकि उनकी सांसें चल रही थीं. आजादी के बाद वह 18 अगस्त के कार्यक्रमों में काफी समय तक शामिल भी होते रहे हैं. हालांकि इन 8 शहीदों में से आज तक महज इन 2 शहीदों शिवपूजन राय और वंशनारायण राय का ही तस्वीरें उपलब्ध हो पाई हैं. इनकी मूर्ति शहीद पार्क में लगी हैं. वहीं बाकी 6 लोगों की कोई तस्वीर उपलब्ध नहीं होने की वजह से लोग केवल इनका नाम भर जानते हैं. जिस तहसील भवन पर सेनानियों ने कब्जा कर तिरंगा फहराया था, उस भवन में साल 1992 तक तहसील का संचालन भी होता रहा.

1992 में तहसील भवन बना शहीद स्मारक

हालांकि 1980 में जब यहां पूर्व प्रधामंत्री राजीव गांधी आए और उन्हें इस तहसील भवन की कहानी बताई गई तो उन्होंने तत्काल तहसील को कहीं और ले जाने और इस भवन को शहीद स्मारक घोषित करने के आदेश कर दिए थे. आखिरकार नई तहसील बनने के बाद साल 1992 में तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल बोरा ने इस शहीद भवन का लोकार्पण किया. हालांकि बाद के समय यह शहीद भवन उपेक्षा का शिकार हो गया और अब तो इसके टाइल्स तक उखड़ने लगे हैं. इस समय इस शहीद भवन के दो कमरों में लाइब्रेरी का संचालन किया जा रहा है.