इंसान का कर्म ही उसकी भाग्य की रेखाओं को बनाता है, पढ़ें इससे जुड़ी 5 अनमोल सीख
क्या वाकई इंसान के भाग्य जो लिखा हो वही उसे नसीब होता है या फिर उसकी सफलता और असफलता में कर्म का भी कोई रोल होता है? भाग्य से जुड़े संशय को दूर करने के लिए पढ़ें सफलता के मंत्र.
जीवन की आपाधापी में हर किसी की कोशिश होती है कि वह खूब मेहनत करके सुख-सौभाग्य को प्राप्त कर सके, लेकिन ऐसी ख्वाहिश कुछ लोगों की समय पर पूरी हो जाती है तो वहीं कुछ को इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है. जीवन से जुड़ी सफलता-असफलता के लिए लोग अक्सर भाग्य से जोड़ देते हैं. फिर वहीं से उनके मन में इस बात को लेकर संशय पैदा होता है कि कर्म और भाग्य में कौन बड़ा है. एक इंसान को जीवन में मनचाही सफलता को पाने के लिए आखिर इन दोनों में से किस चीज की ज्यादा जरूरत होती है. आखिर किसके बगैर उसके प्रयास सफल नहीं हो सकते हैं.
कर्म और भाग्य के बीच इसी संशय को दूर करते हुए किसी महापुरुष ने लिखा है कि इंसान का भाग्य लोहे की तरह होता है, जो अक्सर वहीं खिंच कर जाता है, जहां कर्म रूपी चुंबक होता है. कहने का मतलब यह है कि व्यक्ति को भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए. जीवन में कर्म ही एक मात्र जरिया है जिसके जरिए आप अपने भाग्य को संवार सकते हैं. सही मायने में कहा जाए तो इंसान का संचित कर्म ही उसका ही भाग्य होता है. आइए जीवन से जुड़े भाग्य के बारे में जानने के लिए पढ़ते हैं सफलता के मंत्र.
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- बुरे कर्म करके अच्छे भाग्य की कामना करना बेकार है क्योंकि यदि हमारे कर्म अच्छे हैं तो हमारा भाग्य भी सुंदर ही होगा.
- अपना भाग्य हमेशा अपने हाथों द्वारा किए गए कर्म के जरिए लिखना होता है क्योंकि ये कोई लेटर नहीं है जो आप किसी किसी से लिखवा लेंगे.
- ईश्वर कभी भी किसी के भाग्य को नहीं लिखता है. यह तो जीवन के हर मोड़ पर हमारी सोच, हमारा व्यवहार और हमारा कर्म ही इसे निर्धारित करता है.
- जीवन में हमेशा उन्नति उन्हीं लोगों की होती है जो हमेशा प्रयत्नशील होते हैं, सिर्फ और सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठने वाले लोग हमेशा दीन-हीन बने रहते हैं.
- भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर इंसान का भाग्य हमेशा सोया ही रहता है, लेकिन जिस पल आप साहसपूर्वक उठ खड़े हाते हैं कर्म के करने के लिए आपका भाग्य भी उठ खड़ा होता है.
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