पंढरपुर मंदिर से हटाएं सरकार का नियंत्रण, सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हाईकोर्ट में दायर की याचिका

पंढरपुर मंदिर से हटाएं सरकार का नियंत्रण, सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हाईकोर्ट में दायर की याचिका

सुब्रह्मण्यम स्वामी ने महाराष्ट्र के पंढरपुर के विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करवाने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है.

पंढरपुर: महाराष्ट्र में स्थित भगवान विट्ठल और रुक्मिणी के पंढरपुर मंदिर को सरकारीकरण से मुक्त किया जाए. यह मांग करते हुए कानून और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ और सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है. 45 साल तक शासन बनाम बडवे विवाद के केस पर 14 जनवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. नौ साल पहले विट्ठल मंदिर पर पूरा कंट्रोल सरकार के हाथ आ गया था. इसके बाद 17 जनवरी 2014 को सरकार ने मंदिर का पूरा नियंत्रण अपने नियंत्रण में ले लिया.

इसके बाद कोर्ट के निर्देश के मुताबिक मंदिर का मैनेजमेंट सरकार द्वारा नियुक्त समिति द्वारा की जा रही थी. लेकिन आरोप है कि समिति की ओर से भगवान विट्ठल और देवी रुक्मिणी की देखभाल ठीक तरह से नहीं की जा रही. परंपराओं का सही तरह से पालन नहीं हो रहा. इसके अलावा तर्क यह भी है कि सरकार सदा के लिए किसी धार्मिक स्थल को नियंत्रण अपने हाथ में नहीं ले सकती. इन्हीं मुद्दों को उठाते हुए डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इसे सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की है.

‘धर्मनिरपेक्ष सरकार धार्मिक स्थल का कैसे कर सकती है नियंत्रण?’

इस याचिका में तमिलनाडू के सभा नायगर केस की मिसाल दी गई है. सवाल यह किया गया है कि भारत में सेक्युलर डेमोक्रेसी है. ऐसे में एक धर्मनिरपेक्ष सरकार धार्मिक स्थल का नियंत्रण कैसे कर सकती है? याचिका में कहा गया है कि एकाध मंदिर का मैनेजमेंट अगर सही तरह से नहीं किया जा रहा है तो सरकार का अधिकार है कि वह थोड़े समय के लिए उसका नियंत्रण अपने हाथ में ले ले. इसके बाद मंदिर का कारभार व्यवस्थित करके उसे फिर से संबंधित धार्मिक संस्थान को सौंप दिया जाना आवश्यक है.

‘सरकारी समिति नहीं कर रही भगवान विट्ठल-रुक्मिणी का सही देखभाल’

याचिका में यह भी बात उठाई गई है कि त्रावणकोर का केस और विट्ठल मंदिर का केस बिलुकल अलग है. यहां भगवान विट्ठल और देवी रुक्मिणी की देखभाल वर्तमान सरकारी समिति ठीक तरह से नहीं कर पा रही है. याचिका में विट्ठल मंदिर अधिनियम 1973 के तहत यह दावा किया गया है कि सरकार सदा के लिए किसी मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में नहीं ले सकती है. तमिलनाडू के चिदंबरम नटराजन केस की मिसाल देते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया गया है.

‘सरकारी समिति मंदिर की परंपरा के पालन में चूक रही है’

विट्ठल मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला निजी तौर से बडवे बनाम शासन के केस में दिया गया था. स्वामी की याचिका इस मामले में अलग है. यहां बडवे या पुजारियों की ओर से दलील नहीं दी जा रही है. यहां जो सवाल उठाया गया है वो यह कि वर्तमान में मंदिर पर सरकारी नियंत्रण में परंपरा का सही पालन नहीं हो पा रहा है. ऐसे में सरकारीकरण से मुक्त कर मंदिर हिंदू समाज और भक्तों के कब्जे में दिया जाए.

याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि जब से मंदिर सरकारी नियंत्रण में आया है तब से पूर्व से चली आ रही परंपरा खंडित हुई है. भगवान विट्ठल की देखभाल के लिए बडवे समेत सात सेवाधारियों की परंपरा थी. याचिका में मांग की गई है कि मंदिर का नियंत्रण वारकरी संप्रदाय और विट्ठल के भक्तों को सौंपा जाए.

स्वामी की याचिका पर फैसले का असर देश के बाकी मंदिरों पर

विट्ठल मंदिर को लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका की अहमियत इसलिए बढ़ गई है क्योंकि इस केस को लेकर जो फैसला आएगा उसका असर देश के बाकी सरकारी नियंत्रण वाले हिंदू मंदिरों पर भी होगा. अब देखना यह है कि राज्य और केंद्र सरकार की इस मुद्दे को लेकर क्या भूमिका होती है.