Holi 2023: होली से जुड़ी 10 बड़ी बातें जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को जरूर जाननी चाहिए
Holi 2023: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माने जाने वाले जिस रंगोत्सव को आज पूरे देश में मनाया जा रहा है, उससे जुड़ी 10 महत्वपूर्ण बातों को जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
Holi 2023:आज देश-दुनिया में जहां कहीं भी सनातन परंपरा को मानने वाले लोग हैं, वे रंगों के महापर्व होली को बड़ी धूमधाम से मना रहे हैं. खुशी और उमंग से जुड़े इस पावन उत्सव पर लोग सभी गिले शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिल रहे हैं. पौराणिक काल से होली पर रंग खेलने की जो परंपरा चली आ रही है, उसका हमें देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग स्वरूप देखने को मिलता है. कहीं यह फूल से तो कहीं रंग और गुलाल से खेली जाती है तो कहीं खुशियों के रंग के साथ वीरता और शूरता भी देखने को मिलती है. आइए होली के तमाम रंग, परंपराओं और इससे जुड़े नियम को विस्तार से जानते हैं.
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- पंचांग के अनुसार रंगों का महापर्व होली हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. पारंपरिक तरीके से फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन और उसके दूसरे दिन रंगोत्सव मनाया जाता है.
- देश-दुनिया में विभिन्न प्रकार की खेली जाने वाली ब्रज मंडल की होली की शुरुआत फाल्गुन पूर्णिमा से बहुत पहले बसंत पंचमी से ही हो जाती है और यहां पर होली का उत्सव तकरीबन 40 दिनों तक चलता है.
- ब्रज मंडल में होली के मौके पर हर दिन एक अलग ही स्वरूप देखने को मिलता है. मथुरा-वृंदावन और बरसाना में खेली जाने वाली प्रसिद्ध होली में फूलवाली, लड्डूमार, लट्ठमार और अबीर-गुलाल वाली होली काफी प्रसिद्ध है.
- मान्यता है कि होली के लिए प्राचीन काल में होलाका शब्द का प्रयोग हुआ करता था, जिसे अब ‘फगुआ’, ‘धुलेंडी’, ‘दोल’ आदि के नाम से जाना जाता है.
- जिस होली के पर्व को रंगों का महापर्व के रूप में जाना जाता है, उसमें रंग खेलने की शुरुआत करने से पहले अपने आराध्य देवी-देवता के चरणों में अबीर-गुलाल आदि को अर्पित किए जाने की परंपरा है.
- उत्तर भारत समेत देश के तमाम हिस्सों में जहां रंगों के इस पावन पर्व को होली के नाम से तो वहीं इसे पंजाब में होला मोहल्ला और ओडिशा में डोल पूर्णिमा के पर्व में मनाया जाता है. पंजाब में मनाया जाने वाले होला मोहल्ला में तलवारबाजी, घुड़सवारी जैसे वीरता के प्रदर्शन किए जाते हैं तो वहीं ओडिशा में डोल पूर्णिमा के पर्व पर भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है.
- पौराणिक काल से चला आ रहा होली का रंगोत्सव मुगलकाल में भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था. मुगल काल में इसे ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी कहा जाता था.
- होली के पर्व पर नजर दोष लगने का खतरा बना रहता है, ऐसे में इस दिन टोटके या बुरी नजर के दोष से बचने के लिए चौराहों पर की गई पूजा को न डाकें और सिर को ढंककर होली खेलने के लिए निकलें. यदि किसी से बुरी नजर लगने का खतरा हो तो उसकी दी हुई मीठी चीजों, इलायची, लौंग, पान आदि खाने से बचें.
- होली खेलते समय किसी को रंग लगाते समय अपने रिश्तों की मर्यादा को न भूलें और बच्चों को गाल पर और बड़ों के माथे पर या फिर चरणों पर रंग और गुलाल लगाकर इस पावन पर्व को मनाएं. बड़े बुजुर्गों को हमेशा पीले रंग का गुलाल लगाकर उनका सम्मान करें और भूलकर भी किसी को काला रंग न लगाएं और न ही इस रंग के कपड़े पहनें.
- होली का अर्थ होता है जो हो लिया वो हो लिया और अब बीती बात या फिर कहें कटुता और नाराजगी को भुलाकर के रंगों के इस पावन पर्व पर एकदूसरे को रंग लगाकार एक जैसे हो जाओ, यानि एक दूसरे के मित्र बन जाओ. ऐसे में यदि आपसे कोई छोटा व्यक्ति नाराज है तो उसे रंग और गले लगाकर और यदि कोई बड़ा नाराज है तो उसे रंग लगाने के बाद पैर छूकर मना लेना चाहिए.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)