भारतीय चिकन और चावल की खाड़ी देशों में भरपूर मांग, अब दुबई ने रखी ये डिमांड
खाड़ी देशों में भारतीय चिकन, बासमती चावल और मछली जैसे प्रोडक्ट्स की इन दिनों जबरदस्त मांग देखने को मिल रही है. ऐसे में अब संयुक्त अरब अमीरात ने भारत सरकार के सामने एक खास मांग रखी है ताकि अरब देशों को ये सामान सस्ते में मिल सकें. पढ़ें ये खबर...
भारत से अरब देशों को जाने वाले चिकन, मछली, झींगा और बासमती चावल को लेकर वहां दीवानगी बढ़ती जा रही है. इनकी डिमांड वहां इतनी ज्यादा है कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने भारत सरकार के सामने एक अनोखी मांग रखी है. ताकि इनकी कीमतों को कम किया जा सके. इतना ही इन देशों में भारत से जाने वाले अन्य समुद्री प्रोडक्ट्स और गेहूं के उत्पादों की भी अच्छी खासी खपत हो रही है.
भारत में एग्रीकल्चर और प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ‘एपीडा’ बनाया गया है. इसलिए यूएई चाहता है कि भारत सरकार इन प्रोडक्ट्स के सर्टिफिकेशन और स्टैंडर्ड की प्रोसेस को आसान करे. साथ ही इनका मेल-मिलान खाड़ी देशों के अनुरूप करे. इससे ना सिर्फ इंडिया का एक्सपोर्ट बढ़ेगा, बल्कि खाड़ी देशों को सस्ते में प्रोडक्ट भी मिल सकेंगे.
पैकेजिंग से दूसरे देशों में बढ़ेगा एक्सपोर्ट
पिछले हफ्ते देश के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अरब देशों के आयातकों के साथ इस संबंध में काफी विस्तृत बातचीत की. इसी दौरान इंपोर्टर्स ने कहा कि भारतीय कंपनियों को अपनी हाई-क्वालिटी पैकेजिंग की वजह से सिर्फ संयुक्त अरब अमीरात ही नहीं बल्कि बहरीन, कुवैत, ओमान सल्तनत, कतर और सऊदी अरब देशों में भी इन प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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इस बारे में कुछ इंपोर्टर्स ने कहा कि भारत के लिए इन देशों में फ्रोजन प्रोडक्ट्स के एक्सपोर्ट की असीम संभावनाएं मौजूद हैं. इसलिए भारत सरकार को इस मामले में अरब देशों के इंपोर्टर्स का समर्थन करना चाहिए.
सरकार घटाए मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस
पीटीआई की खबर में ओमान के एक इंपोर्टर के खिमजी रामदास ग्रुप के हवाले से कहा गया है कि इन जगहों पर भारतीय बासमती चावल की भारी मांग है. ऐसे में सरकार को बासमती चावल के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में कमी लाने पर विचार करना चाहिए. इससे भारत का बासमति चावल का एक्सपोर्ट बढ़ेगा. वैसे भारत सरकार पहले से चावल पर एमईपी को 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 850 डॉलर प्रति टन करने पर विचार कर रही है.
भारत से मिलते हैं हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट
खाड़ी देशों में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स की डिमांड सबसे ज्यादा होती है. इसे लेकर भारत ने भरोसा दिलाया कि वहां पहले एक हलाल मांस सर्टिफिकेशन मौजूद है. वहीं भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) मांस उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है. भारत-यूएई के बीच व्यापार समझौता पिछले साल मई में लागू किया गया था. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2021-22 में 72.9 अरब डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 84.9 अरब डॉलर हो गया है.
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क्या होता है हलाल सर्टिफिकेशन?
जिस तरह हिंदू मान्यताओं में शाकाहार और मांसाहार भोजन को लेकर कई विचार हैं. इसके अलावा प्याज-लहसुन और अंडा खाने को लेकर भी कई मान्यताएं हैं. इसी तरह मुस्लिम धर्म में भी खानपान को लेकर कई मत हैं. इसी में एक है ‘हलाल’ और ‘झटका’. मुस्लिम धर्म में ‘हलाल’ मांस को खाने की अनुमति है, लेकिन ‘झटका’ मांस को लेकर मनाही है. इन दोनों मांस का निर्धारण जानवर को काटने के तरीके से तय होता है.
इसलिए जब कोई कंपनी मुस्लिम आबादी वाले देश में अपने खाने-पीने के प्रोडक्ट्स बेचती है, तब वह ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ लेती हैं. ‘हलाल सर्टिफिकेशन’ असल में एक गारंटी हैं कि उस खाने-पीने की वस्तु को मुस्लिम शरिया कानून के हिसाब से बनाया गया है. उसमें किसी तरह की मिलावट नहीं है. उसमें ऐसे किसी जानवर या उसके बाय-प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं हुआ है, जिसे इस्लाम में ‘हराम’ माना गया है.