मकड़ी के आकार वाला रहस्मयी मंदिर जिसके पांचवे प्रहर का खुद महादेव ने किया निर्माण
देवों के देव कहलाने वाले महादेव का एक ऐसा अनोखा मंदिर, जिसके पांचवे परिसर का निर्माण खुद भगवान शिव ने किया. पढ़ें बेहद खूबसरत वास्तुकला वाले प्राचीन शिवाला से जुड़े पौराणिक रहस्य?
देश का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा जहां पर पूजा से शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देवता भगवान शिव के मंदिर न हों. प्रत्येक राज्य में एक न एक ऐसा शिवालय मौजूद है, जो न सिर्फ उस राज्य बल्कि देश के मंदिरों से अलग बनाता है. तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थित जम्बुकेश्वर मंदिर एक ऐसा ही शिवालय है जो अपनी बेहतरीन वास्तुकला के लिए जाने जाता है. इस प्राचीन शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण लगभग 1800 साल पहले हिन्दू चोल राजवंश के राजा कोकेंगानन ने करवाया था. हिंदू मान्यता के अनुसार शिव का यह मंदिर जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और इस मंदिर के प्रांगण में हमेशा जल के चलते नमी बनी रहती है.
अनूठी है जम्बूकेश्वर मंदिर की वास्तुकला
दक्षिण भारत के जिन मंदिरों के स्थापत्य कला की चर्चा हमेशा होती है, उनमें जम्बूकेश्वर मंदिर भी शामिल है. द्रविण शैली में बने जम्बूकेश्वर मंदिर के गर्भगृह का आकार चौकोर है. भगवान शिव के इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें देवी-देवताओं की मूर्तियां एक साथ नहीं बल्कि एक-दूसरे के विपरीत स्थापित किया गया है. मंदिरों के भीतर ऐसी व्यवस्था उपदेशा स्थालम कहलाती है. भगवान शिव और माता पार्वती के साथ यहां पर भगवान ब्रह्मा और विष्णु की भी मूर्तियां हैं. मंदिर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की मूर्तियों को उकेरा गया है. चतत्वों में जल तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाले इस मंदिर के भीतर पांच प्रांगण बने हुए हैंं. मंदिर के पांचवें परिसर की सुरक्षा के लिए एक विशाल दीवार बनी हुई है, जिसे स्थानीय लोग विबुडी प्रकाश के नाम से जानते हैं. दो फीट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा विबुडी प्रकाश लगभग एक मील तक फैला हुआ है. पांच परिसरों वाले इस मंदिर के चौथे परिसर में 769 खंबों वाला क हाल है, जबकि तीसरे परिसर में दो विशाल गोपुरम बने हुए हैं. जम्बूकेश्वर मंदिर के चौथे परिसर में एक जलकुंडल है.
जम्बूकेश्वर मंदिर का पौराणिक इतिहास
इस शिव मंदिर से जुड़ी कथा के अनुसार क बार माता पार्वती ने किसी बात को लेकर भगवान शिव को लेकर हंसी उड़ाई तो महादेव ने उन्हें इसकी सजा स्वरूप पृथ्वी पर जाकर तप करने का आदेश दिया. मान्यता है कि इसके बाद माता पार्वती अकिलन्देश्वरी के रूप में जम्बू वन पहुंची और एक पेड़ के नीचे शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा शुरू कर दिया. इसके बाद महादेव उनके तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने इसी स्थान पर उन्हें ज्ञान प्रदान किया. जंबूकेश्वर मंदिर में मूर्तियों की स्थापना एक-दूसरे के विपरीत की गई है. मंदिर के प्रांगण में विवाह नहीं होते हैं क्योंकि इस स्थान में महादेव ने गुरू के माता पार्वती को ज्ञान प्रदान किया था. चूंकि माता पार्वती ने यहां पर शिव साधना की थी, इसलिए यहां पर पुजारी महिलाओं जैसे कपड़े पहनकर भगवान जंबूकेश्वर की पूजा करते हैं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)