Jagannath Rath Yatra 2023: बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र संग निकली जगन्नाथ की सवारी, अब 7 दिन बाद घर लौटेंगे भगवान
प्राचीन पुरी नगरी में रथयात्रा प्रारंभ होते ही उनके भगवान जगन्नाथ के भक्तों का उनके दर्शन एवं पूजन का इंतजार खत्म हो गया है. रथयात्रा से जुड़ी पूजा, पंरपरा और मान्यताओं को जानने के लिए पढ़ें ये लेख.
पूरे जगत के नाथ कहलाने वाले भगवान जगन्नाथ आज अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ नगर भ्रमण करने के लिए निकल चुके हैं. भगवान की इस भव्य रथयात्रा में शामिल होने वाले तीन रथों को खींचने, उनका दर्शन करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु भी विश्व की प्रचाीन नगरी पुरी में पहुंच गये हैं. वैष्णव परंपरा से जुड़े जिस रथयात्रा महापर्व में शामिल होना ही अक्षय पुण्य दिलाने वाला माना गया है, उसमें की जाने वाली सेवा, पूजन, और दर्शन आदि का महत्व और इससे जुड़े रोचक तथ्यों को आइए विस्तार से जानते हैं.
- भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में द्वितीया तिथि के दिन बड़े धूम-धाम से निकाली जाती है और यह महापर्व पूरे 10 दिनों तक चलता है.
- पुरी की इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा का रथ साथ-साथ चलता है.
- रथयात्रा के दौरान खींचे जाने वाले इन रथों के निर्माण की प्रक्रिया कई महीने पहले से अक्षय तृतीया से प्रारंभ हो जाती है. खास बात यह कि हर साल नये रथ का निर्माण होता है और पुराना रथ तोड़ दिया जाता है.
- रथयात्रा में भगवान बलभद्र या फिर कहें बलराम का रथ सबसे आगे और उससे पीछे देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगत के नाथ यानि भगवान जगन्नाथ का रथ चलता है. रथयात्रा में निकलने वाले भगवान बलभद्र के रथ का नाम तालध्वज है, जिस पर उनके साथ भगवान राम और भगवान श्री कृष्ण भी सवार होते हैं. भगवान बलभद्र का रथ हरे रंग का होता है और इस रथ में 14 पहिए होते हैं.
- भगवान बदलभद्र के पीछे चलने वाले देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन या फिर दर्पदलन कहलाता है. इस दिव्य रथ में देवी सुभद्रा के साथ भगवान सुदर्शन विराजते हैं. देवी सुभद्रा का रथ काले रंग का होता है और इस रथ में 12 पहिए होते हैं.
- रथयात्रा में सबसे पीछे चलने वाले जिस रथ पर स्वयं भगवान जगन्नाथ विराजते हैं, उसे नंदीघोष के नाम से जाना जाता है. इस रथ में उनके साथ मदनमोहन देवता भी विराजते हैं. भगवान जगन्नाथ का रंग पीला होता है और इसमें 16 पहिए जुड़े होते हैं.
- पुरी में रथयात्रा निकलने से पहले भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की विधि-विधान से पूजा होती है. इस दौरान पुरी के राजा सोने के झाड़ू से रथ की और इसके मार्ग की सफाई करते हैं. रथ यात्रा से जुड़ी यह परंपरा ‘छर पहनरा’ के नाम से जानी जाती है.
- पुरी की यह प्रसिद्ध रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ के धाम से तकरीबन ढाई किमी दूर गुंडिचा मंदिर तक जाती है. हिंदू मान्यता के अनुसार मां गुंडिचा को भगवान जगन्नाथ की मौसी माना जाता है. यही कारण है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर तक की यह रथयात्रा गुंडिचा यात्रा भी कहलाती है.
- भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर्व से तीसरे दिन यानि हेरा पंचमी पर मां लक्ष्मी जगत के नाथ को खोजते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचती हैं, जहां पर द्वैतापति द्वार को बंद कर देते हैं, जिससे नाराज होकर मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ के रथ नंदीघोष का पहिया तोड़कर वापस अपने धाम को लौट जाती हैं.
- भगवान जगन्नाथ की यह भव्य रथ यात्रा का कार्यक्रम कल शाम को खत्म होगा, जबकि यह महाउत्सव पूरे 10 दिनों तक चलेगा. भगवान जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर में अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ सात दिनों तक रुकेंगे और 28 जून 2023 यानि आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को वापस अपने धाम को लौटेंगे. गुंडिचा माता के मंंदिर से जगन्नाथ मंदिर की वापसी वाली इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं.
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(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)