यूपी में यादव सियासत पर गहराया संकट, सपा परिवार तक सीमित, BJP-BSP ने नहीं दी तवज्जो

यूपी में यादव सियासत पर गहराया संकट, सपा परिवार तक सीमित, BJP-BSP ने नहीं दी तवज्जो

सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में सूबे की कुल 80 में से 62 सीट पर चुनाव लड़ रही है और बाकी सीट सहयोगी दल की हैं. सपा ने इस बार पांच यादव प्रत्याशी उतारे हैं. सपा अपने गठन के बाद पहली बार इतने कम यादवों को लोकसभा चुनाव में टिकट दिया है. बसपा प्रमुख मायावती ने इस बार चार यादव समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं.

उत्तर प्रदेश की सियासत पूरी तरह से ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमट गई है. पिछड़ा वर्ग में सबसे बड़ी आबादी यादव वोटर है, जिस दम पर मुलायम सिंह यादव तीन बार और उनके बेटे अखिलेश यादव एक बार सीएम बने. सपा ने लोकसभा चुनाव में पहली बार सैफई परिवार के बाहर के किसी ‘यादव’ को टिकट नहीं दिया है. सपा ने यादव समुदाय से पांच प्रत्याशी उतारे हैं और सभी मुलायम परिवार से हैं, जबकि बीजेपी ने सिर्फ दिनेश लाल यादव निरहुआ को टिकट दिया है. सपा के बराबर ही बसपा प्रमुख मायावती ने यादव प्रत्याशी दिए हैं.

यूपी के सियासी इतिहास में नब्बे के दशक के बाद पहली बार यादव समुदाय की सियासत हाशिए पर खड़ी नजर आ रही है. यादव समुदाय के दम पर सत्ता के शिखर पर पहुंचे मुलायम सिंह की यादव सियासत की नीति से यह काफी अलग है. सपा अभी तक हर एक लोकसभा चुनाव में सैफई परिवार के अलावा पांच से छह सीटों पर यादव उम्मीदवार उतारती रही है, लेकिन पहली बार है कि जब आधा दर्जन से कम प्रत्याशी दिए हैं और सभी यादव परिवार के सदस्य हैं. माना जा रहा है कि अखिलेश यादव सपा को यादव परस्त वाली छवि से बाहर निकालने की कवायद में है.

सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में सूबे की कुल 80 में से 62 सीट पर चुनाव लड़ रही है और बाकी सीट सहयोगी दल की हैं. सपा ने इस बार पांच यादव प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें कन्नौज सीट पर खुद अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं तो मैनपुरी सीट से उनकी पत्नी डिंपल यादव मैदान में हैं. आजमगढ़ सीट से धर्मेंद्र यादव, बदायूं से शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव और फिरोजाबाद सीट से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा किसी भी सीट पर सपा ने कोई भी यादव समुदाय का प्रत्याशी नहीं दिया है.

सपा अपने गठन के बाद पहली बार इतने कम यादवों को लोकसभा चुनाव में टिकट दिया है. सपा का गठन 1992 में हुआ और पहली बार साल 1996 का लोकसभा चुनाव लड़ी थी. 1996 के चुनाव में सपा ने 8 यादव प्रत्याशी उतारे थे. इसके बाद 1998 में 10, 1999 में 9, 2004 में 9, 2009 में 11, 2014 में 13 और 2019 में 11 यादव समुदाय के प्रत्याशी दिए थे. इस तरह सपा अपने गठन के बाद से 2014 तक अधिकतम 13 यादव प्रत्याशी दिए, तो 8 प्रत्याशी सबसे कम रहे, लेकिन इस बार सिर्फ पांच यादव प्रत्याशी उतारकर अखिलेश यादव ने अलग राजनीतिक दांव चला है.

2014 में सपा ने 13 यादव समुदाय के प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिनमें मुलायम सहित पांच लोग विजेता रहे. इसी तरह 2019 में 11 यादवों को टिकट मिला था, जिसमें पांच सीटें मिलीं. मुलायम और अखिलेश यादव के अलावा सभी यादव प्रत्याशी चुनाव हार गए थे. 2014 में मुलायम परिवार के अलावा कोई भी यादव यूपी से लोकसभा चुनाव नहीं जीत सका था. माना जा रहा है कि यही वजह है कि सपा इस बार सैफई परिवार से बाहर किसी भी यादव को चुनाव में नहीं उतारा है. पूर्वांचल में आजमगढ़ सीट छोड़कर किसी भी सीट पर यादव प्रत्याशी नहीं दिया है, जबकि कई सीटों पर यादव वोटर प्रभावी है.

बसपा कहीं सपा के लिए न कर दे खेला?

वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने इस बार चार यादव समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं. बसपा ने मैनपुरी सीट से शिव प्रसाद यादव, रायबरेली से ठाकुर प्रसाद यादव, सीतापुर से महेंद्र यादव और बलिया से ललन यादव को लोकसभा का टिकट दिया है. 2004 में सूबे की सत्ता पर मुलायम सिंह यादव के काबिज रहते हुए बसपा के टिकट पर चार यादव समुदाय के सांसद बने थे. इतना ही नहीं बसपा का पहला सांसद भी यादव समुदाय से चुने गए थे.

मायावती का कोर वोट बैंक यादव समुदाय कभी नहीं रहा, उसके बाद भी यादव सांसद बसपा से चुने जाते रहे हैं. हालांकि, बसपा के टिकट पर यादव सांसद पूर्वांचल इलाके से जीतते रहे हैं. इसीलिए बसपा ने इस बार इटावा बेल्ट में सिर्फ एक टिकट दिया है और बाकी दो टिकट अवध और एक पूर्वांचल क्षेत्र में दिया है. मैनपुरी सीट को छोड़ दें तो दूसरी किसी भी सीट पर बसपा के प्रत्याशी की यादव समुदाय के आमने-सामने की फाइट नहीं है. ऐसे में यादव वोटों का झुकाव अगर बसपा के यादव प्रत्याशियों की तरफ हुआ तो सपा के लिए खेला हो जाएगा.

बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 8 फीसदी वोटर्स यादव समुदाय के हैं, जोकि ओबीसी समुदाय की कुल आबादी का 20 फीसदी हैं. इस तरह ओबीसी समुदाय में सबसे बड़ी आबादी यादव वोटर्स की है, लेकिन सपा उत्तर प्रदेश के इटावा, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजाबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर, रायबरेली और कुशीनगर को यादव बहुल माना जाता है. सूबे के 44 जिलों में 9 फीसदी वोटर यादव हैं, जबकि 10 जिलों में ये वोटर 15 फीसदी से ज्यादा है. पूर्वांचल, अवध और बृज के इलाके में यादव वोटर सियासत की दशा और दिशा तय करते हैं.

मुलायम के दौर में बढ़ा वर्चस्व

सूबे में यादव समाज में मंडल कमीशन के बाद ऐसी गोलबंदी हुई कि ये सपा का कोर वोटर बन गया. इन्हीं यादव वोटरों के दम पर मुलायम सिंह यादव तीन बार और अखिलेश यादव एक बार सूबे के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि, सपा के राजनीतिक आगाज से पहले ही रामनरेश यादव जनता पार्टी से यूपी के मुख्यमंत्री रहे थे. बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया, लेकिन यादव समुदाय के नेता के तौर पर मुलायम सिंह जैसी पकड़ नहीं बना सके.

वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि सपा के यूपी की सत्ता में रहने के दौरान यादव समाज सियासी तौर पर ही नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से काफी मजबूत हुआ. मुलायम और अखिलेश सरकार में यादवों की तूती बोलती है. हालांकि, सपा पर सत्ता में रहते हुए यादव परस्त होने का आरोप भी झेलना पड़ा है. इसके चलते गैर-यादव ओबीसी जातियां सपा से छिटककर बीजेपी और दूसरे दलों के साथ चली गईं, जिसके चलते अब अखिलेश इस बार यादव समुदाय से किनारा कर रहे हैं ताकि यादव परस्त छवि को तोड़ सकें.

यादव परस्त छवि तोड़ पाएगी सपा

2014 के बाद से यूपी में बीजेपी ने ऐसी सियासी बिसात बिछाई कि यादव वर्चस्व वाली राजनीति को तगड़ा झटका लगा. माना जा रहा है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब यादव परस्त छवि को तोड़ने में जुटे हैं, जिसके लिए उन्होंने सिर्फ पांच यादव समुदाय से प्रत्याशी उतारे हैं. पूर्वांचल में सिर्फ धर्मेंद्र यादव को टिकट दिया है जबकि बाकी सीटों पर गैर-यादव ओबीसी पर दांव खेला है. सपा ने जिन सीट पर यादव प्रत्याशी उतारे हैं, वो सभी मुलायम-अखिलेश परिवार से हैं.

यादव महासभा के अध्यक्ष अनुराग यादव कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में यादव सियासत को हाशिए पर ढालने का काम किया जा रहा है. यूपी के सभी दलों ने यादव समुदाय को निराश किया है, उनकी आबादी के लिहाज से किसी भी दल ने टिकट नहीं दिया है. सपा ने पांच टिकट दिए हैं और पांचों मुलायम परिवार के सदस्य हैं. इन्हें यादव समुदाय के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. अखिलेश यादव इस पीडीए के फॉर्मूले को लेकर चल रहे हैं, जिसके चलते यादव समुदाय से किनारा करके दूसरी ओबीसी जातियों को तवज्जो दिया है. उन्हें यह पता है कि यादवों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है, क्योंकि दूसरे दलों ने भी कोई खास टिकट नहीं दिए हैं.

सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले पर सियासी बिसात बिछाने में जुटी है. अब तक सपा की घोषित टिकटों में महज 7 फीसदी यादव चेहरे हैं. 2014 के अनुपात में यह आधा और 2019 के मुकाबले महज एक-तिहाई है. इसके जिन पांच टिकट यादवों को मिले हैं, वे सभी मुलायम परिवार के ही हैं. पार्टी अब तक यादवों से अधिक टिकट कुर्मी-पटेल को दे चुकी है. सपा के लिए कहीं यादव समुदाय को नजर अंदाज करना सियासी तौर पर महंगा न पड़ा जाए.

मुलायम ने तैयार की सियासी जमीन

सैफई परिवार को सियासत में लाने का काम मुलायम सिंह यादव ने किया. मुलायम सिंह बकायदा सियासी जमीन तैयार करके परिवार को सौंपते रहे हैं. आजमगढ़, मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद, बदायूं और संभल ऐसी संसदीय सीटें हैं, जहां की राजनीति मुलायम परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही हैं. मुलायम सिंह ने विधायकी से लोकसभा की सियासत में किस्मत आजमाई. 1996 में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और संभल सीट से चुनाव लड़े और जीतने में सफल रहे. इसके बाद से मुलायम परिवार के सदस्यों का संसद पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ.

2004 में मुलायम सिंह बने सीएम

1998 में मुलायम सिंह संभल से दोबारा चुने गए. इसके बाद 1999 में मुलायम सिंह मैनपुरी और कन्नौज सीट से चुनाव लड़े और दोनों सीट से जीतने में सफल रहे. इसके बाद मुलायम सिंह ने कन्नौज सीट छोड़ी दी थी, जहां से अखिलेश यादव सांसद बने. 2004 में मुलायम परिवार से तीन लोग चुनाव लड़े. मुलायम सिंह मैनपुरी, अखिलेश यादव ने कन्नौज और रामगोपाल यादव ने संभल सीट से किस्मत आजमाई. तीनों ही सदस्य जीतने में सफल रहे. 2004 में मुलायम सिंह यादव ने यूपी के मुख्यमंत्री बनने पर मैनपुरी सीट छोड़ दी, जिसके बाद धर्मेंद्र यादव सांसद बने.

धीरे-धीरे मैदान में उतरा मुलायम परिवार

2009 के चुनाव में मुलायम परिवार से चार सदस्य चुनाव लड़े. मुलायम सिंह ने मैनपुरी और धर्मेंद्र यादव ने बदायूं सीट से चुनाव लड़ा. अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद और कन्नौज सीट से किस्मत आजमाई. दोनों ही सीटें जीतने में सफल रहे, जिसके बाद अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद सीट को छोड़ दिया तो वहां से उनकी पत्नी डिंपल यादव ने चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सकीं. 2014 में मुलायम परिवार के पांच सदस्यों ने चुनाव लड़ा और पांचों ने जीत दर्ज की.

2019 में कैसा रहा परिवार का प्रदर्शन

मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़े थे. डिंपल यादव कन्नौज, धर्मेंद्र यादव बदायूं, अक्षय यादव फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़े. मुलायम सिंह ने मैनपुरी सीट छोड़ दी, जिसके बाद तेज प्रताप यादव चुनाव जीतने में सफल रहे. 2014 में मुलायम परिवार से छह सदस्य संसद में एक साथ रहे. पांच लोकसभा सदस्य और रामगोपाल यादव राज्यसभा सदस्य थे. 2019 में मुलायम परिवार से छह सदस्य लोकसभा चुनाव लड़े थे, जिनमें से आजमगढ़ से अखिलेश यादव और मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव ही जीत सके थे. कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव और शिवपाल यादव चुनाव हार गए थे.

2024 के लोकसभा चुनाव में सैफई परिवार के क्षत्रप अपनी-अपनी ही सीट पर फंसे हुए हैं. वे अन्य सीटों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. बीजेपी ने इस बार सैफई परिवार के उम्मीदवारों को उनके घर में ही घेरे रखने की रणनीति बनाई है, तो दूसरी तरफ यादव वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. ऐसे में देखना है कि यादव समुदाय इस बार क्या सियासी रुख अपनाता है, क्योंकि डोरे तो सभी डाल रहे हैं. इस शह-मात के खेल में यादव सियासत क्या करवट लेती है?