सीट शेयरिंग पर कांग्रेस का लचीला रुख, यूपी और बिहार में क्या क्षत्रप दिखाएंगे बड़ा दिल?

सीट शेयरिंग पर कांग्रेस का लचीला रुख, यूपी और बिहार में क्या क्षत्रप दिखाएंगे बड़ा दिल?

बिहार में सीटों को लेकर जो अंदरखाने चर्चा में है, उसके अनुसार जेडीयू और आरजेडी 15-15 सीटों वहीं शेष 10 सीटों में कांग्रेस और वामदलों को समाहित करने की योजना है. वहीं यूपी में कांग्रेस को सपा 10 से 12 सीटें ही छोड़ना चाहती है, जबकि कांग्रेस 20 से कम सीटों पर मानने के लिए तैयार नहीं होगी. ऐसे में समझौता कैसे होगा?

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए बने विपक्षी गठबंधन INDIA सीट शेयरिंग को लेकर मंथन करने में जुटा है. कांग्रेस सीट बंटवारे को लेकर लचीला रुख अपनाने का संकेत दे चुकी है. जयराम रमेश ने कहा था कि कांग्रेस खुले मन और बंद मुंह से सीट शेयरिंग पर बात करेगी. INDIA गठबंधन में एक बात साफ है कि जिस राज्य में जो भी क्षत्रप मजबूत है, उनकी अगुवाई में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय होगा. ऐसे में सभी की निगाहें यूपी और बिहार में INDIA गठबंधन की सीट बंटवारे पर हैं और सवाल यह उठता है कि क्षेत्रीय दल क्या कांग्रेस को सीट देने में बड़ा दिल दिखा पाएंगे?

INDIA गठबंधन की चौथी बैठक 19 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया गया तो वहीं, 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सीट शेयरिंग भी चर्चा का बड़ा विषय रहा. ऐसे में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश और बिहार में सीट के बंटवारे को लेकर शह-मात का खेल शुरू हो गया है. यूपी में कांग्रेस 22 से 25 सीट पर चुनाव लड़ने का दम भर रही है तो बिहार में कांग्रेस ने 9 से 10 सीटें मांग रही है. इन दोनों ही राज्यों में विपक्षी गठबंधन की अगुवाई का जिम्मा क्षेत्रीय दलों के कंधों पर है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस को कितनी सीटें मिल पाती हैं?

यूपी में कांग्रेस को सपा कितनी सीटें छोड़ेगी

उत्तर प्रदेश में INDIA गठबंधन का हिस्सा सपा, कांग्रेस और आरएलडी है. सूबे में विपक्षी गठबंधन को लीड करने का जिम्मा अखिलेश यादव के कंधों पर है. कांग्रेस साढ़े तीन दशक से यूपी की सत्ता से बाहर है और उसका पूरा दारोमदार सपा और आरएलडी पर है. इस तरह सीट शेयरिंग का फॉर्मूले में कांग्रेस छोटे भाई की भूमिका में रहेगी. सूत्रों की मानें तो यूपी में कांग्रेस कम से कम 22 से 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है और आरएलडी भी 10 से 12 सीटें मांग रही है. सपा न ही कांग्रेस के मुताबिक सीटें देने के मूड में है और न ही आरएलडी की डिमांड के लिहाज से. सपा की रणनीति है कि कांग्रेस को 12 से 15 सीटें और आरएलडी के 6 से 7 सीटें ही छोड़ने के लिए तैयार है.

पिछले चुनाव का प्रदर्शन होगा आधार

राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि सीट के बंटवारे को लेकर पूर्व के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन सबसे बड़ा आधार होगा और ऐसे में गठबंधन में कांग्रेस को 10 से 15 सीटों के बीच ही संतोष करना पड़ सकता है. कांग्रेस 2009 में जीती हुई लोकसभा सीटों पर अपनी दावेदारी कर रही है, जिसमें रायबरेली अमेठी, कानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी, उन्नाव, सहारनपुर, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, बरेली, झांसी जैसी सीटें है. कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ रायबरेली ही जीत सकी थी. अमेठी, फतेहपुर सीकरी और कानपुर ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही थी. सहारनपुर, बाराबंकी, लखनऊ, उन्नाव और वाराणसी उन लोकसभा सीटों में शामिल है, जहां पर पार्टी को डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिले थे. ऐसे में ये आसानी से कहा जा सकता है कि पूरे प्रदेश में 8 से 10 ऐसी सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस गठबंधन में सकारात्मक भूमिका निभा सकती है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कुछ दिनों पहले कहा था कि लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे में कांग्रेस का पूरा सम्मान किया जाएगा. कांग्रेस की ओर से यूपी में जहां भी अच्छा व्यक्ति और बेहतर समीकरण दिखेगा, उसे टिकट मिलेगा, लेकिन सीट की संख्या से सम्मान को नहीं जोड़ना चाहिए. सपा की मंशा साफ है कि वह यूपी को कांग्रेस में उसकी हैसियत के हिसाब से ही सीटें देने के पक्ष में है. कांग्रेस को सपा यूपी में 10 से 12 सीटें ही छोड़ना चाहती है, लेकिन कांग्रेस 20 से कम सीटों पर मानने के लिए तैयार नहीं होगी. ऐसे ही आरएलडी के साथ है. आरएलडी पश्चिमी यूपी में कम से कम 10 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है, जिसका डिमांड भी कर रही है.

अखिलेश यादव आरएलडी के लिए 5 से 6 सीटें ही छोड़ना चाहते हैं और बाकी सीटों पर सपा उम्मीदवार उतारने की तैयारी है. इसके अलावा दलित नेता चंद्रशेखर आजाद को सपा सिर्फ एक सीट छोड़ना चाहती है, उसके लिए भी नगीना सीट के बजाय बुलंदशहर सीट दे रही है, जो आरएलडी कोटे से होगी. इस पर भी पेंच फंसा हुआ है. ऐसे में सीट शेयरिंग पर कैसे सहमति बनेगी.

बिहार में सीट शेयरिंग में कांग्रेस के क्या हाथ आएगा

बिहार में विपक्षी गठबंधन में आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां एक साथ हैं. बिहार में INDIA गठबंधन में सीट शेयरिंग करने का जिम्मा नीतीश कुमार और आरजेडी के हाथों में है. राज्य में कुल 40 लोकसभा सीटें है. जेडीयू के फिलहाल 16 सांसद है, लेकिन महागठबंधन की सरकार में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने बिहार में 10 सीटों की डिमांड की है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस 9 से 10 सीट पर चुनाव लड़ेगी, एक- दो सीट का कोई मतलब नहीं है. कहा कि 29 दिसंबर को गठबंधन समिति की बैठक में सीटों को लेकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की तरफ से अपनी बात रखी जाएगी. सिंह ने कहा कि खड़गे और राहुल गांधी ने विस्तार से बात सुनी. उन्होंने कुछ बातें बताई, हम इस पर रूपरेखा तैयार करके आगे बढ़ेंगे. एक सवाल पर उन्होंने कहा कि पिछली बार हम राष्ट्रीय जनता दल और वाम दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. इस बार जदयू भी है. एक दो सीट आगे-पीछे होने में कोई तकलीफ नहीं है. हम सामंजस्य बनाकर लड़ेंगे.

बिहार में सीटों को लेकर अंदरखाने चर्चा जारी

बिहार में सीटों को लेकर जो फॉर्मूला अभी अंदरखाने चर्चा में है, उसके अनुसार जेडीयू और आरजेडी 15-15 सीटों तथा शेष 10 सीटों में कांग्रेस और वामदलों को समाहित करने की योजना है. इनमें माले की दावेदारी दो सीटों और भाकपा की दो सीट पर है. इस हिसाब से कांग्रेस को 5-6 सीटें ही मिलने की उम्मीद दिख रही है. आरजेड़ी नेता तेजस्वी यादव भी कांग्रेस को बिहार में बहुत ज्यादा सियासी स्पेश देने के मूड में नहीं है. ऐसे में कांग्रेस की मन की मुराद कैसे पूरी होगी, क्योंकि उसे जेडीयू और आरजेडी के रहमोकरम पर ही रहना होगा. बिहार में कांग्रेस 90 के दशक से बाहर है और क्षेत्रीय दलों के बैसाखी के सहारे ही अपनी सियासी जमीन तलाश रही है. ऐसे में देखना होगा कि कांग्रेस को छत्रप बिहार में कितनी सीटें छोड़ते हैं?