पुर्तगालियों के नामोनिशान मिटाने से क्या बदल जाएगा गोवा का मिजाज?
लगभग 450 साल शासन करने के बाद भारत ने 19 दिसंबर 1961 को पुर्तगालियों से इस हिस्से को वापस ले लिया था. पुर्तगालियों ने यहां स्थानीय लोगों पर खूब अत्याचार भी किए.
आजादी के 62 साल बाद गोवा से पुर्तगाली शासकों के निशान मिटाने के सीएम प्रमोद सावंत के बयान के बाद एक सवाल तेजी से उछला है कि अगर यहां से पुर्तगाली चले गए तो गोवा का स्वरूप कैसा होगा? स्पष्ट है कि गोवा आज भारत का अभिन्न हिस्सा है. इसका पुर्तगाल और पुर्तगालियों से अब कोई लेना-देना नहीं है. हां, उनकी संस्कृति की झलक दिखती है. वह अभी रहेगी भी. उसे जाने में वर्षों लग सकते हैं, हो सकता है न भी जाएं. पर, आज गोवा की तरक्की रोज हो रही है. विकास का खाका अपने इंजीनियर-अफसर खींच रहे हैं. आने वाले दिनों में गोवा की प्राकृतिक सुंदरता बनी रहेगी. तरक्की की रफ्तार में इसका ध्यान रखा जाएगा. इसका स्वरूप और सुंदर होगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए.
सीएम सावंत शिवाजी महराज के राज्याभिषेक के 350वीं वर्षगांठ पर बोल रहे थे. मौका भी था और दस्तूर भी कि वे उनके योगदान को याद करें. समारोह में उन्होंने कहा कि पुर्तगालियों ने गोवा के मंदिरों को बहुत नुकसान पहुंचाया. शिवाजी महराज और उनके सुपुत्र संभा जी महराज की चेतावनी के बाद मंदिरों का नुकसान रुका. सीएम के इस बयान को व्यापक नजरिए से देखने की जरूरत है. यह भी समझना जरूरी है कि लगभग 450 साल शासन करने के बाद भारत ने 19 दिसंबर 1961 को पुर्तगालियों से इस हिस्से को वापस ले लिया था.
गोवा में हिन्दू आबादी सबसे ज्यादा
इतिहास में जाने पर पता चलता है कि पुर्तगालियों ने यहां स्थानीय लोगों पर खूब अत्याचार भी किए. इसके दो पहलू हैं. पहला यह कि सीएम सावंत किस तरह से गोवा को नई यात्रा पर लेकर जाना चाहते हैं, जिसकी चर्चा उन्होंने की? दूसरा यह कि क्या वाकई अब पुर्तगालियों को दोष देने का वक्त है? जवाब होगा-शायद नहीं. ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से देखें तो यह क्षेत्र हिंदुओं का ही रहा है. आज भी गोवा में हिन्दू आबादी सबसे ज्यादा है लेकिन संस्कृति उसकी अपनी है.
गोवा का अपना मिजाज
गोवा का अपना मिजाज है. वहां के हिन्दू हो ईसाई या अन्य जाति-धर्म के स्थानीय लोग. सब मस्ती में हैं. सबकी दिनचर्या पर्यटन और पर्यटकों के इर्द-गिर्द ही है. अब जो भी ईसाई समुदाय के लोग यहां रह रहे हैं, निश्चित उनके पूर्वज पुर्तगाली रहे होंगे लेकिन अब वे पूर्ण रूप से हिन्दुस्तानी हैं. गोवा की जो संस्कृति है, वह समुद्री किनारों, चर्चों, मंदिरों और मांडवी नदी के इर्द-गिर्द ही बसती है. सीएम के बयान के मायने शायद यह बिल्कुल नहीं है कि वे पुराने चर्चों को गिराने जा रहे हैं. या पुर्तगाली परिवारों को खदेड़ने जा रहे हैं.
यह सच है कि गोवा में आज जितने भी चर्च हैं, ज्यादातर का निर्माण पुर्तगालियों ने कराया है. वे अपने आपमें अद्भुत, अनूठे हैं. स्थापत्य कला का जबरदस्त नमूना हैं. जो बंगले हैं, वे भी अलग तरह से दिखते हैं. हर बंगले में आज भी हरियाली है. नारियल के पेड़ हैं. रोशनी के पर्याप्त इंतजाम हैं. शराब-मछली मुख्य पेय-भोजन है. गीत-संगीत का भी यहां के लोग अलग ही आनंद लेते हैं.
विकसित गोवा की परिकल्पना कर रहे CM सावंत
सीएम प्रमोद सावंत नए और विकसित गोवा की परिकल्पना कर रहे हैं. वे उस योजना पर काम करने की शुरुआत करना चाहते हैं, जहां आजाद भारत जब सौ साल का होगा, तब गोवा कैसा दिखेगा? सीएम युवा हैं. उनकी अपनी विकासपरक सोच है. विकास के रास्ते पर चलना चाहते हैं. पेशे से डॉक्टर प्रमोद सावंत की पहचान जमीनी नेता की है. वे आज भी अपने राज्य की जनता के लिए सुलभ हैं. जिस कार्यक्रम में उन्होंने ये तथ्य रखे, असल में वह छत्रपति शिवाजी महराज के राज्याभिषेक की 350 वीं वर्षगांठ पर बोल रहे थे. मौका भी था कि वे शिवाजी महराज के सद्गुणों को याद करें. गोवा में उनके योगदान को याद करें.
पुर्तगालियों ने मंदिरों नुकसान पहुंचाना किया बंद
सर्वविदित है कि शिवाजी महराज कट्टर हिन्दूवादी थे. वे बिल्कुल नहीं चाहते थे कि हिन्दू धर्म-संस्कृति से कोई छेड़छाड़ करे. अगर किसी ने गुस्ताखी की तो वे सजा देने से नहीं चूके. सीएम सावंत ने शायद इसीलिए शिवाजी महराज और उनके सुपुत्र संभा जी महराज को याद किया कि उनकी चेतावनी के बाद ही पुर्तगालियों ने मंदिरों को नुकसान पहुंचाना बंद किया.
यह कार्यक्रम बैतूल किले में आयोजित किया गया था. किला 17वीं शताब्दी का है. इसी मौके पर उन्होंने घोषणा भी की कि वे इस किले को राज्य स्मारक के रूप में विकसित करेंगे. कहने की जरूरत नहीं है कि डॉ प्रमोद सावंत सीएम के साथ ही भाजपा नेता भी हैं. एक राष्ट्रवादी पार्टी के नेता हैं. हिन्दुत्व इस पार्टी का आधार है. उनकी इस बात को पार्टी लाइन से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए.
यूं भी पुर्तगाली अब बचे कहां हैं?
गोवा पर बारीक नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजय श्रीवास्तव कहते हैं कि गोवा की अपनी मस्ती है. संस्कृति है. मिजाज है. वहां के लोग भी बहुत आराम से जीवन जीते हैं. अब वहां जो भी लोग हैं, वह चाहे ईसाई हों, हिन्दू हों या किसी और जाति-धर्म के लोग हों, उनकी सबकी आजीविका का साधन गोवा में ही है.
पुर्तगाल और पुर्तगालियों से अब उन्हें नहीं जोड़ा जा सकता. ऐसे में उनके बिना गोवा की परिकल्पना अधूरी मानी जाएगी. यूं भी पुर्तगाली अब बचे कहां हैं? अब तो वहाँ सिर्फ उनके निशान हैं, जिसे सरकार सँजोकर रखना चाहेगी, मिटाने का विचार उसके मन में नहीं आएगा.