हम तिल-तिलकर मर रहे हैं और भारत फायदा उठाने में जुटा, पढ़ें आखिर क्यों भड़का यूक्रेन?
रूस से सस्ता कच्चा तेल लेने के मसले पर यूक्रेन ने भारत पर सवाल उठाए हैं. यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने कहा है कि भारत को ये सस्ता तेल तब मिल रहा है, जब यूक्रेन के लोग रूसी आक्रमणता के शिकार हैं और हर रोज मर रहे हैं.
भारत सस्ते दामों पर रूस से तेल खरीद रहा है और कई देश इसे लेकर सवाल उठा रहे हैं. हालांकि भारत ने कई मौकों पर स्पष्ट कर दिया है कि वो अपने हितों को पहले देखेगा. अब यूक्रेन ने भी रूस से तेल आयात करने को लेकर भारत पर उंगली उठाई है. यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने इसे नैतिक रूप से अनुचित बताया है. उन्होंने कहा कि भारत के लिए सस्ती कीमत पर रूसी तेल खरीदने का अवसर है, लेकिन ये इसलिए है कि यूक्रेनियन रूसी आक्रामकता से पीड़ित हैं और हर दिन मर रहे हैं.
कुलेवा ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जिसमें उन्होंने रूस से कच्चे तेल के आयात का बचाव करते हुए कहा कि पिछने नौ महीने में यूरोपीय देशों ने इसकी जितनी खरीद की है, उसका छठा हिस्सा ही भारत ने खरीदा है. यूक्रेन के मंत्री ने कहा कि यूरोपीय संघ पर उंगलियां उठाना और यह कहना काफी नहीं है कि ओह, वे भी वही काम कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी बदलाव ला सकते हैं: कुलेवा
एक चैनल से बात करते हुए कुलेबा ने कहा कि सस्ता रूसी तेल आयात करने के भारत के निर्णय को यूक्रेन में मानवीय पीड़ा के चश्मे से देखा जाना चाहिए. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि भारत को खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को युद्ध को खत्म करने में मदद करने के लिए खास भूमिका निभानी है. भारत वैश्विक रूप से एक बहुत ही महत्वपूर्ण खिलाड़ी है और भारत के प्रधानमंत्री अपनी आवाज से बदलाव ला सकते हैं.
उन्होंने कहा कि हम उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब भारतीय विदेश नीति कुदाल को कुदाल कहेगी और इसे यूक्रेन में संघर्ष या युद्ध न कहकर यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रामकता कहेगी.
यूरोपीय संघ ने रूस से अधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन का आयात किया: जयशंकर
इससे पहले जयशंकर ने रूस से कच्चे तेल के आयात पर कहा कि यह बाजार से जुड़े कारकों से प्रेरित है. फरवरी से नवंबर तक यूरोपीय संघ ने रूस से अधिक मात्रा में जीवाश्म ईंधन का आयात किया है. मैं समझता हूं कि यूक्रेन में संषर्घ की स्थिति है. मैं यह भी समझता हूं कि यूरोप का एक विचार है और यूरोप अपने विकल्प चुनेगा और यह यूरोप का अधिकार है. लेकिन यूरोप अपनी पसंद के अनुसार ऊर्जा जरूरतों को लेकर विकल्प चुने और फिर भारत को कुछ और करने के लिए कहे. पश्चिम एशिया से यूरोप द्वारा तेल खरीदने से भी दबाव पड़ा है.
(भाषा इनपुट के साथ)