Film Studios: 43 साल पहले 25 स्टूडियो थे, अब 6 भी नहीं, क्यों खत्म हो रही बॉलीवुड की पहचान
साल 1980 तक मुंबई में करीब 25 फिल्म स्टूडियोज हुआ करते थे, जिनकी संख्या अब करीब 43 साल बाद आधे दर्जन से भी कम रह गई है. सालों पहले जहां कभी सितारों से सेट गुलज़ार रहा करते थे, अब वहां पर इमारते खड़ी हो गई हैं. कई स्टूडियो के मालिक ने अपने स्टूडियो को रियल स्टेट वालों को बेच दिया. पढ़िए किरण डी. तारे का लेख.
पिछले महीने अगस्त में मैं पहली बार मलाड (पश्चिम) में मौजूद फिल्म स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज़ गया था, पर स्टूडियो की हालत देखकर मेरा तो दिल ही टूट गया. कभी ये एशिया के बेहतरीन स्टूडियोज़ में से एक हुआ करता था. मैंने सोचा था भले ही इसे बंद हुए आधी सदी गुज़र गई हो पर ये अभी भी शान से खड़ा होगा. पर मैंने जो देखा, उससे मुझे बेहद दुख हुआ.
आज बॉम्बे टॉकीज़ खंडहर में तब्दील हो चुका है. इसके आस-पास छोटी दुकानें हैं. गंदगी है. वहां स्टूडियो का छोटा सा ऑफिस था, जोकि टिन की शीट से ढका हुआ था. जो खंडहर मैंने देखा वो अब एक ट्रस्ट की देखरेख में हैं. इस ट्रस्ट को इसीलिए बनाया गया था ताकि बॉम्बे टॉकीज़ का खयाल रखा जा सके. मैंने जब ट्रस्ट के मैनेजर से स्टूडियो के बारे में और जानकारी लेनी चाही तो उनका रिस्पॉन्स काफी ठंडा था. उन्होंने कहा, “मुझे कुछ नहीं पता.” इतना कहकर वो फिर से अपने मोबाइल फोन में बिज़ी हो गए.
गुम होती भव्यता और स्टूडियोज़ का संघर्ष
मुंबई में मौजूद फिल्म स्टूडियोज़ के खस्ताहाल होने की चर्चा तब शुरू हुई जब अगस्त में आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई ने आत्महत्या कर ली. वो आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे. उन्होंने 200 करोड़ रुपये का लोन लिया था, ताकि अपना एनडी स्टूडियो चला सके, लेकिन वो लोन लौटा नहीं पाए. इसकी वजह थी स्टूडियो से उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं होना.
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि साल 1980 तक मुंबई में करीब 25 फिल्म स्टूडियोज़ हुआ करते थे. पर अब उनमें से आधे दर्जन से भी कम पूरी तरह से काम कर पा रहे हैं.
विदेशी लोकेशन्स की मांग बढ़ने और आर्थिक घाटे के चलते इस काम में काफी नुकसान हो रहा था. इसका नतीजा ये निकला कि ज्यादातर स्टूडियो के मालिकों ने अपनी प्रॉपर्टी को रियल स्टेट डेवेलपर को बेच दिया. इस लिस्ट में सबसे ताज़ा नाम आरके स्टूडियोज का है, जिसे 2018 में करीब 250 करोड़ रुपये में बेच दिया गया.
यहां देखें पूरी कहानी: क्यों खत्म हो रहे फिल्म स्टूडियोज़?
मैं राजकमल स्टूडियो में भी गया. वहां जाना खुशनुमा रहा. भले ही स्टूडियो का तीन चौथाई हिस्सा अब रियल स्टेट के काम में इस्तेमाल हो रहा है, फिर भी उनके पास एक मंज़िल शूट के लिए और साउंड रिकॉर्डिंग और डबिंग के लिए एक कमरा था. इसके अलावा वहां किताबों और जरनल्स से भरी एक बेहतरीन लाइब्रेरी भी मौजूद है.
बदलती इंडस्ट्री में चैलेंज
राजकमल स्टूडियो के मालिक किरण शांताराम ने कहा, “हमने अपने स्टूडियो का एक हिस्सा 1990 की शुरुआत में ही रियल स्टेट को बेच दिया था. बनाए गए सेट्स की ज़रूरत खत्म होती जा रही थी, क्योंकि प्रोड्यूसर्स असली लोकेशन्स पर शूट करने को प्राथमिकता देने लगे थे. अब मुझे लगता है कि मेरा फैसला सही थी.”
डायरेक्टर और स्क्रीनराइटर कमाल अमरोही के बेटे और फिल्म प्रोड्यूसर ताजदार अमरोही ने स्टूडियो को लेकर अलग ही कहानी बयां की. उन्हें 100 एकड़ में बना अपना आइकॉनिक स्टूडियो रियल स्टेट वालों को बेचना पड़ा. उन्होंने कहा कि उन्हें बेचने के लिए धमकी दी गई थी. उन्हें वसूली के लिए फोन कॉल आते थे. उन्होंने दावा किया कि एक बार उन्हें फिरौती के लिए किडपैन भी कर लिया गआ था.
अमरोही ने कहा, “अगर आप चाहते हैं कि कोई रातों को चैन की नींद न सोए, तो उससे कहिए कि वो ग्लैमरस स्टूडियो खोल ले. मैं अब किसी को भी कभी स्टूडियो खोलने की सलाह नहीं दूंगा.”
कई स्टूडियो मालिकों खत्म हो रहे इस बिज़नेस में भी उम्मीद की किरण दिखाई देती है. फिल्मालाय स्टूडियो में पार्टनर सुबीर मुखर्जी कहते हैं कि अगली पीढ़ी को स्टूडियो का खयाल रखना होगा और इस लीगेसी को आगे लेकर जाना होगा. मैं उम्मीद करता हूं कि सुबीर के ये शब्द सच साबित हों.