बृजबिहारी प्रसाद की बिहार में बोलती थी तूती, अब परिवार राजनीति से साइड
बृजबिहारी प्रसाद को लालू यादव का आंख-कान माना जाता था. सरकार में प्रसाद काफी पावरफुल थे. उनकी हत्या के बाद पत्नी रमा देवी और भाई श्याम बिहारी प्रसाद राजनीति में आए. कुछ साल तक सांसद और विधायक भी रहे, लेकिन अब दोनों राजनीति में अलग-थलग पड़ गए हैं.
बिहार के चर्चित मंत्री बृजबिहारी प्रसाद हत्या केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. कोर्ट ने दो आरोपी मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. पूर्व सांसद सूरजभान समेत 6 आरोपी बरी कर दिए गए हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बृजबिहारी प्रसाद कौन थे और सूरजभान-शुक्ला से उनकी सियासी रंजिश कैसे शुरू हुई थी?
कौन थे बृजबिहारी प्रसाद, राजनीति में कैसे आए?
मोतिहारी के आदापुर में एक गांव है- भेड़ियाही. यहीं पर 20 जुलाई 1949 को बृजबिहारी प्रसाद का जन्म हुआ था. गांव में शुरुआती पढ़ाई लिखाई करने के बाद बृजबिहारी आगे पढ़ने के लिए मुजफ्फरपुर के एमआईटी आ गए.
कहा जाता है कि यहीं पर उसे छात्र राजनीति की तलब लग गई. इससे ज्यादा बृजबिहारी प्रसाद की 1990 के पहले की कोई लिखित कहानी है. हालांकि, यह जरूर कहा जाता है कि राजनीति में आने से पहले बृजबिहारी ठेका पट्टा का काम करते थे.
1990 में लालू यादव की पहल पर उन्हें पूर्वी चंपारण की आदापुर सीट से जनता दल ने टिकट दिया. बृजबिहारी ने इस चुनाव में माले के मुक्ति नारायण राय को करीब 25 हजार वोटों से हराया.
चुनाव बाद जनता दल की सियासी तिकड़म की वजह से लालू यादव मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. बृजबिहारी प्रसाद को भी लालू ने अपने कैबिनेट में शामिल कराया. ग्रामीण विकास विभाग में उपमंत्री बनाए गए.
आनंद की बगावत से बढ़ा बृजबिहारी का दबदबा
1993 में जनता दल में पहली बड़ी बगावत हुई. बगावत का बिगूल फूंका राजपूत नेता आनंद मोहन ने. 1993 के वैशाली चुनाव में आनंद मोहन ने लालू के उम्मीदवार के सामने अपनी पत्नी को उतार दिया. आनंद मोहन उस वक्त सवर्ण रक्षा का झंडा लिए मैदान में उतरे थे. लालू पिछड़ी जाति की राजनीति पर फोकस जमाए हुए थे.
भूमिहार बाहुल्य वैशाली में लालू के साथ खेल हो गया और आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद चुनाव जीत गईं. इस चुनाव के बाद मुजफ्फरपुर के मतगणना केंद्र से आनंद मोहन ने ऐलान कर दिया कि 1995 में लालू को सत्ता से बेदखल कर देंगे.
कहा जाता है कि लालू ने इसके बाद पिछड़ों की गोलबंदी शुरू की. तिरहुत और मिथिलांचल में आनंद मोहन को घेरने के लिए बृजबिहारी को आगे किया गया. इसके बाद बृजबिहारी प्रसाद और आनंद मोहन के बीच शुरू होती है सियासी अदावत.
1995 के चुनाव में प्रचार के दौरान केसरिया से आनंद मोहन के उम्मीदवार छोटन शुक्ला की हत्या हो जाती है. छोटन शुक्ला उस वक्त आनंद मोहन के दाहिने हाथ माने जाते थे. बृजबिहारी प्रसाद हत्या के आरोपी बनाए जाते हैं. यह आरोप उस वक्त बृजबिहारी के प्रमोशन का कारण भी बन जाता है.
1995 में लालू जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बनते हैं, तो अपनी सरकार में बृजबिहारी का कद बढ़ा देते हैं. बृजबिहारी उपमंत्री से सीधे कैबिनेट मंत्री बनाया जाता है. उन्हें विभाग मिलता है विज्ञान और प्रद्यौगिकी का.
हत्या के बाद भाई और पत्नी ने संभाली राजनीति
1998 के जून महीने में पटना के आईजीआईएमएस हॉस्पिटल में बृजबिहारी प्रसाद की हत्या कर दी जाती है. हत्या का आरोप छोटन शुक्ला के भाई मुन्ना शुक्ला, उस वक्त के दबंग नेता सूरजभान और माफिया राजन तिवारी पर लगता है. कहा जाता है कि तीनों की तिकड़ी ने यूपी के मोस्ट वाटेंड अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला के जरिए बृजबिहारी की हत्या करवाई.
बृजबिहारी की हत्या के बाद उनके भाई श्याम बिहारी प्रसाद और पत्नी रमा देवी उनकी विरासत को संभालने सियासी मैदान में उतरते हैं. श्याम बिहारी 2010 तक भाई की सीट आदापुर से विधायकी का चुनाव लड़ते रहे. वे कई बार विधायक भी बने.
वहीं उनकी पत्नी रमा देवी 2019 में शिवहर से लोकसभा की सांसद चुनी गई थीं. 2024 के चुनाव में राजनीतिक समीकरण की वजह से बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया. वर्तमान में रमा देवी राजनीति में अलग-थलग चल रही हैं. उनके पास कोई सियासी पद नहीं है.