Simaria Ghat Begusarai: हिंदुओं के लिए मोक्ष का द्वार है ‘सिमरिया’ घाट, राजा जनक ने यहां किया था कल्पवास
बिहार के बेगूसराय जिले में स्थित सिमरिया गंगा धाम में लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है कि राजा जनक ने ही इस कल्पवास मेले की शुरुआत की थी.
बिहार के बेगूसराय जिले में स्थित सिमरिया गंगा धाम अपने आप में एक सुखद इतिहास समेटे हुए है. आज भी यह धाम केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे मानचित्र पर अपनी एक खास पहचान रखता है. सिमरिया धाम को जहां एक तरफ मिथिला का द्वार कहा जाता है. वहीं दुसरी तरफ सिमरिया धाम को मुक्ति धाम के नाम से भी जाना जाता है.
मिथिलांचल के लोगों के आत्मा में सिमरिया गंगा धाम का निवास है, तो वहीं सिमरिया के कण-कण में मिथिलांचल की खुशबू व्याप्त है. आज हम बात कर रहे हैं उसी सिमरिया की जो दिनकर की जन्म स्थली के नाम से भी प्रसिद्ध है. दरअसल सिमरिया धाम में कार्तिक मास में एक महीने तक लगने वाला कल्पवास मेले में लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान का लाभ उठाते है. वहीं, हजारों की संख्या में बिहार से लेकर नेपाल तक के कल्पवासी एक महीने तक पर्णकुटी बनाकर यहां पूजा पाठ में लीन रहते हैं.
तपोभूमि के नाम से भी जाना जाता है सिमरिया धाम
इस दौरान सिमरिया की छटा बिल्कुल भक्तिमय रहती है और लोग पूरे महीने तक भागवत सरवन, रामायण पाठ और कई अन्य अनुष्ठान में लगे रहते हैं. मिथिलांचल के लोगों की आस्था सिमरिया धाम के कण-कण में बसी है तो वहीं एक महीने तक गंगाजल का सेवन कर और अल्पाहार की बदौलत से लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है. सर्वमंगला आश्रम के स्वामी चिदात्मन जी महाराज ने बताया कि एक तरफ जहां पौराणिक शास्त्रों में सिमरिया का वर्णन है, तो वहीं इसको राजा विदेह की तपोभूमि के नाम से भी जाना जाता है.
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राजा जनक के द्वारा की गई थी कल्पवास की शुरुआत
ऐसी मान्यता है कि राजा जनक के द्वारा ही यहां कल्पवास की शुरुआत की गई थी और जीवन के अंतिम काल में उन्होंने यही अपने शरीर का परित्याग किया था. लोग एक महीने तक अपने जीवन के मोह-माया से दूर रहकर सिमरिया में वास करते हैं, जिससे कि उनके स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है और आत्मा भी पवित्र होती है. वहीं विभिन्न स्थानों से आए श्रद्धालुओं ने बताया कि मिथिलांचल प्रदेश के लिए सबसे प्रसिद्ध तपोभूमि सिमरिया ही है.
पर्णकुटी बनकर लोग करते हैं पूजा
सिमरिया में लोग सैकड़ों सालों से कल्पवास कर रहे हैं और अन्य महीनों में भी हजारों श्रद्धालु प्रत्येक दिन यहां गंगा में डुबकी लगाने के लिए आते हैं. हालांकि लोगों के द्वारा सरकार से कुछ मांग भी की गई है. मिथिलांचल के लोगों की श्रद्धा को देखते हुए सरकार ने भी सिमरिया का समूल विकास में अपना योगदान दिया है. देश के विभिन्न कोने से लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए (महिला-पुरुष) पर्णकुटी बनाकर मां गंगा और तुलसी चौरा का पूजन एक महीने तक गंगा के तट पर रहकर करते है.
कुटिया बनाकर रहते है भक्त
इसी दौरान विभिन्न साधु-संतों के रामायण, भागवत कथा को सुनकर अपने आपको धन्य करते है. सिमरिया कल्पवास मेला मे भारत के आलावा नेपाल से भी भारी संख्या में श्रद्धालु आते है और गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहते है. लोगों के अनुसार कार्तिक मास का अपना अलग महत्व ही है, जहां लोग गंगा तट पर पूजा-पाठ करते अपने तन मन को पवित्र करते है. मिथिला की सीमा सिमरिया मे दरभंगा, मधुबनी के महिला पुरुष अपने पूर्वजों से जोड़कर सिमरिया गंगा घाट का महत्व बताते है. लोगों का कहना है की हमारे पूर्वजो का आत्मा सिमरिया धाम मे बास करती है.