90 लाख की फर्जी एफडी और बन गए शराब की 7 दुकानों के मालिक, मामला खुलने पर पुलिस भी हैरान

90 लाख की फर्जी एफडी और बन गए शराब की 7 दुकानों के मालिक, मामला खुलने पर पुलिस भी हैरान

हरदोई में आबकारी विभाग ने एक बड़े घोटाले का खुलासा किया है. विभागीय अधिकारियों के मुताबिक इस संबंध में 10 लोगों को नामजद करते हुए 6 मुकदमे दर्ज कराए गए हैं. आरोप है कि इन लोगों ने क्लोन एफडी लगाकर अपनी हैसियत ज्यादा दिखाई और दुकानों का लाइसेंस हासिल कर लिया.

उत्तर प्रदेश के हरदोई में अजीब तरह की धोखाधड़ी का मामला सामने आया है. यहां शराब कारोबारियों ने अफसरों की आंख में धूल झोंक कर एक दो नहीं, शराब की 7 दुकानें हथिया ली हैं. इसके लिए शराब कारोबारियों ने जो हैसियत प्रमाण पत्र जमा किया है, वो भी फर्जी है. बैंक में प्रमाण पत्रों की जांच कराने के बाद आबकारी विभाग के अफसरों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है. छह अलग अलग मुकदमों में 6 नामजद समेत 10 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया गया है.

इसी के साथ आबकारी विभाग ने इन सभी 7 दुकानों का लाइसेंस सीज कर दिया है. आबकारी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक यह फर्जीवाड़ा जिले के रसूखदार शराब कारोबारियों ने अंजाम दिया है. अधिकारियों के मुताबिक लाइसेंस हासिल करने के लिए विभाग में छह दुकानों के लिए बतौर हैसियत प्रमाण पत्र जमा की गई एफडी नकली है. यह सभी क्लोन एफडी एफडी बैंक ऑफ इंडिया से बनी हैं. इन सभी एफडी की कुल कीमत 90 लख रुपए बताई जा रही है.

आबकारी विभाग ने किया खुलासा

मामला सामने आने के बाद आबकारी विभाग में तो हड़कंप मचा ही है, शराब कारोबारियों में खलबली मच गई है. हरदोई के जिला आबकारी अधिकारी कुंवर पाल के मुताबिक शराब कारोबारी कुलदीप अग्रवाल ने बेगमगंज व सुमई में दुकान का लाइसेंस हासिल करने के लिए क्लोन एफडी लगाई थी. इसी प्रकार सुरेश अग्रवाल ने सर्कुलर रोड और कुलदीप अग्रवाल व राजकुमार अग्रवाल ने नुमाइश चौराहा और माधवगंज में नवीन गल्ला मंडी में क्लोन एफडी लगाकर दुकानों का नवीनीकरण कराया था.

विभागीय अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप

इसी प्रकार रजनीश सिंह निवासी गोवर्धनपुर और कुलदीप अग्रवाल व राजकुमार अग्रवाल के द्वारा भी फर्जी एफडी लगाकर दुकाने हासिल करने का आरोप है. उन्होंने बताया कि इन सभी दुकानें सील कर इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया है. अधिकारियों के मुताबिक किसी भी दुकान का आवंटन करते समय सभी दस्तावेजों की जांच होती है. बावजूद इसके, इतनी बड़ी गड़बड़ी हो गई. जाहिर है कि यह काम विभागीय कर्मचारियों की मिली भगत के बिना संभव ही नहीं.